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नेपोटिज्म पर बोले अभय देओल, कहा-'इससे बचने के लिए सामाजिक बदलाव जरूरी'

अभय देओल ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर अभिनेता धर्मेंद्र के साथ अपनी तस्वीर का कोलाज साझा करते हुए नेपोटिज्म को लेकर अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है. उनका मामना है कि नेपोटिज्म हर जगह है और इससे बचने के लिए सामाजिक बदलाव जरूरी है.

nepotism is just the tip of the iceberg says abhay deol
नेपोटिज्म पर बोले अभय देओल, कहा-'इससे बचने के लिए सामाजिक बदलाव जरूरी'
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Published : Jul 11, 2020, 1:57 PM IST

मुंबई : अभिनेता अभय देओल इन दिनों अपने सोशल मीडिया हैंडल पर काफी एक्टिव रहते हैं और हर मुद्दे पर अपने विचार को बेझिझक सबके सामने रखते हैं.

सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद अभय ने 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' के लिए नॉमिनेट ना होने पर सवाल किए थे. वहीं अब अभिनेता को लगता है कि नेपोटिज्म हर जगह है.

अभय ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम अकांउट पर दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र के साथ खुद की एक तस्वीर साझा की है.

जिसके साथ कैप्शन में उन्होंने लिखा, 'मेरे अंकल, जिन्हें मैं प्यार से डैड कहता हूं. एक आउटसाइडर थे, जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा नाम बनाया. मुझे खुशी है कि पर्दे के पीछे क्या होता है उस पर अब एक एक्टिव बहस चल रही है. नेपोटिज्म बस इसका एक छोटा सा हिस्सा है. मैंने अपने परिवार के साथ केवल एक फिल्म की, मेरी पहली फिल्म, मैं आभारी हूं कि मैंने ये सौभाग्य प्राप्त किया है. मैं अपने करियर का रास्ता बनाने के लिए काफी आगे तक आया, डैड ने हमेशा प्रोत्साहित किया. मेरे लिए वह प्रेरणा थे.'

'नेपोटिज्म हमारी संस्कृति में हर जगह है, चाहे वह राजनीति हो, व्यवसाय हो या फिल्म. मैं इसके बारे में अच्छी तरह से जानता था और इसने मुझे अपने पूरे करियर में नए निर्देशकों और निर्माताओं के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया. इस तरह मैं ऐसी फिल्में बनाने में सक्षम हो गया, जिन्हें "आउट ऑफ द बॉक्स" माना जाता था. मुझे खुशी है कि उन कलाकारों और फिल्मों में से कुछ को जबरदस्त सफलता मिली.'

अभय ने आगे लिखा, 'नेपोटिज्म हर देश में है, भारत में नेपोटिज्म ने एक और आयाम हासिल कर लिया है. जाति दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में यहां बड़ा रोल प्ले करती है. आखिरकार, ये "जाति" है जो ये तय करती है कि एक बेटा अपने पिता के काम को आगे चलाता है, जबकि बेटी से शादी करके, एक हाउस वाइफ होने की उम्मीद की जाती है.'

'अगर हम बदलाव के लिए सच में गंभीर हैं तो बाकी आयामों को छोड़कर हमें सिर्फ एक आयाम या एक इंडस्ट्री पर ही फोकस नहीं रखना होगा. ऐसा करना अपूर्ण होगा. हमें सांस्कृतिक बदलाव चाहिए. आखिर हमारे फिल्म निर्माता, राजनेता और व्यापारी कहां से आते हैं? वे सभी लोगों की तरह ही हैं. वे उसी प्रणाली के अंदर बड़े होते हैं जैसे हर कोई. वे अपनी संस्कृति का प्रतिबिंब हैं. हर जगह प्रतिभा चमकने का मौका चाहती है. जैसा कि कुछ हफ्तों में हमनें पाया है कि कई सारे रास्ते हैं जिससे एक आर्टिस्ट या तो सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ता है या फिर उसे खींच कर नीचे गिरा दिया जाता है. '

एक्टर ने आगे लिखा, 'मुझे खुशी है कि आज अधिक अभिनेता सामने आ रहे हैं और अपने अनुभवों के बारे में बोल रहे हैं. मैं सालों से मेरे बारे में मुखर रहा हूं, लेकिन एक आवाज के रूप में मैं अकेले केवल इतना ही कर सकता था. जो इंसान बोलता है उसे बदनाम करना आसान है. और मुझे समय-समय पर ये मिलता है. लेकिन एक समूह के रूप में ये मुश्किल हो जाता है. शायद ये हमारा टर्निंग मोमेंट है.'

वर्कफ्रंट की बात करें तो, अभय को आखिरी बार नेटफ्लिक्स की फिल्म 'चॉपस्टिक्स' और 'व्हाट आर द ऑड' में देखा गया था. उन्होंने 2019 की फिल्म 'हीरो' से तमिल डेब्यू किया.

अभय ने 2005 में इम्तियाज अली की "सोचा ना था" से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की.

पढ़ें : सुशांत आत्महत्या मामले में हाई प्रोफाइल मैनेजर रेशमा शेट्टी से हुई पूछताछ

जिसके बाद उन्हें "अहिस्ता अहिस्ता", "देव डी", "हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड", "एक चालीस की लास्ट लोकल", "मनोरमा सिक्स फीट अंडर", "रांझणा", "जिंदगी ना मिलेगी दोबारा" और" हैप्पी भाग जाएगी'' जैसी फिल्मों में भी देखा गया.

मुंबई : अभिनेता अभय देओल इन दिनों अपने सोशल मीडिया हैंडल पर काफी एक्टिव रहते हैं और हर मुद्दे पर अपने विचार को बेझिझक सबके सामने रखते हैं.

सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद अभय ने 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' के लिए नॉमिनेट ना होने पर सवाल किए थे. वहीं अब अभिनेता को लगता है कि नेपोटिज्म हर जगह है.

अभय ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम अकांउट पर दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र के साथ खुद की एक तस्वीर साझा की है.

जिसके साथ कैप्शन में उन्होंने लिखा, 'मेरे अंकल, जिन्हें मैं प्यार से डैड कहता हूं. एक आउटसाइडर थे, जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा नाम बनाया. मुझे खुशी है कि पर्दे के पीछे क्या होता है उस पर अब एक एक्टिव बहस चल रही है. नेपोटिज्म बस इसका एक छोटा सा हिस्सा है. मैंने अपने परिवार के साथ केवल एक फिल्म की, मेरी पहली फिल्म, मैं आभारी हूं कि मैंने ये सौभाग्य प्राप्त किया है. मैं अपने करियर का रास्ता बनाने के लिए काफी आगे तक आया, डैड ने हमेशा प्रोत्साहित किया. मेरे लिए वह प्रेरणा थे.'

'नेपोटिज्म हमारी संस्कृति में हर जगह है, चाहे वह राजनीति हो, व्यवसाय हो या फिल्म. मैं इसके बारे में अच्छी तरह से जानता था और इसने मुझे अपने पूरे करियर में नए निर्देशकों और निर्माताओं के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया. इस तरह मैं ऐसी फिल्में बनाने में सक्षम हो गया, जिन्हें "आउट ऑफ द बॉक्स" माना जाता था. मुझे खुशी है कि उन कलाकारों और फिल्मों में से कुछ को जबरदस्त सफलता मिली.'

अभय ने आगे लिखा, 'नेपोटिज्म हर देश में है, भारत में नेपोटिज्म ने एक और आयाम हासिल कर लिया है. जाति दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में यहां बड़ा रोल प्ले करती है. आखिरकार, ये "जाति" है जो ये तय करती है कि एक बेटा अपने पिता के काम को आगे चलाता है, जबकि बेटी से शादी करके, एक हाउस वाइफ होने की उम्मीद की जाती है.'

'अगर हम बदलाव के लिए सच में गंभीर हैं तो बाकी आयामों को छोड़कर हमें सिर्फ एक आयाम या एक इंडस्ट्री पर ही फोकस नहीं रखना होगा. ऐसा करना अपूर्ण होगा. हमें सांस्कृतिक बदलाव चाहिए. आखिर हमारे फिल्म निर्माता, राजनेता और व्यापारी कहां से आते हैं? वे सभी लोगों की तरह ही हैं. वे उसी प्रणाली के अंदर बड़े होते हैं जैसे हर कोई. वे अपनी संस्कृति का प्रतिबिंब हैं. हर जगह प्रतिभा चमकने का मौका चाहती है. जैसा कि कुछ हफ्तों में हमनें पाया है कि कई सारे रास्ते हैं जिससे एक आर्टिस्ट या तो सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ता है या फिर उसे खींच कर नीचे गिरा दिया जाता है. '

एक्टर ने आगे लिखा, 'मुझे खुशी है कि आज अधिक अभिनेता सामने आ रहे हैं और अपने अनुभवों के बारे में बोल रहे हैं. मैं सालों से मेरे बारे में मुखर रहा हूं, लेकिन एक आवाज के रूप में मैं अकेले केवल इतना ही कर सकता था. जो इंसान बोलता है उसे बदनाम करना आसान है. और मुझे समय-समय पर ये मिलता है. लेकिन एक समूह के रूप में ये मुश्किल हो जाता है. शायद ये हमारा टर्निंग मोमेंट है.'

वर्कफ्रंट की बात करें तो, अभय को आखिरी बार नेटफ्लिक्स की फिल्म 'चॉपस्टिक्स' और 'व्हाट आर द ऑड' में देखा गया था. उन्होंने 2019 की फिल्म 'हीरो' से तमिल डेब्यू किया.

अभय ने 2005 में इम्तियाज अली की "सोचा ना था" से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की.

पढ़ें : सुशांत आत्महत्या मामले में हाई प्रोफाइल मैनेजर रेशमा शेट्टी से हुई पूछताछ

जिसके बाद उन्हें "अहिस्ता अहिस्ता", "देव डी", "हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड", "एक चालीस की लास्ट लोकल", "मनोरमा सिक्स फीट अंडर", "रांझणा", "जिंदगी ना मिलेगी दोबारा" और" हैप्पी भाग जाएगी'' जैसी फिल्मों में भी देखा गया.

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