मुंबई : हिंदी सिनेमा के मशहूर सिंगर मोहम्मद रफी का नाम सिनेमा जगत में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है. दुनिया उनकी गायकी की दीवानी है. रफी साहब को गुजरे भले ही कई दशक बीत गए हैं मगर उनके संगीत का असर आज की पीढ़ी तक जिंदा है. लोग रफी साहब के गाने शिद्दत से सुनते हैं.
रफी ने हर एक मिजाज के गानों को बेहद खूबसूरती से गाया. वे स्वाभाव से भी काफी सरल थे. वे धर्म और मजहब से ऊपर इंसानियत के कद्रदार थे. तभी उन्होंने दुनियाभर में कंसर्ट्स किए और हर भाषा में गाने गाए. उन्होंने कई सारे भजन भी गाए जो आज भी हमें सुकून से भर देते हैं.
- 31 जुलाई 1980 को मोहम्मद रफी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. तो चलिए आज हम आपको उनकी जिदंगी के कुछ पहलूओं से वाकिफ करता हैं....
मोहम्मद रफी जिन्हें दुनिया रफी या तो रफी साहब के नाम से पुकारते हैं. रफी साहब भारत के ऊँचे और विख्यात गायकों में से एक थे. इन्होंने अपनी आवाज की मधुरता और परास की अधिकता के लिये अपने समकालीन गायकों के बीच एक अलग पहचान बनाई थीं. इनसे प्रेरणा पाकर कुछ ओर गायक भी निकले परन्तु रफी जैसा कोई नहीं रहा. रफी साहब ने 1940 से 1980 तक कुल मिलाकर 26,000 गानों का निर्माण किया था जो कि एक वर्ल्ड रिकार्ड्स हैं.
रफी साहब ने हिंदी गानों के अलावा गजल, भजन, देशभक्ति गीत, कब्बाली आदि भाषाओँ में गीत गाये थे. मोहम्मद साहब ने बॉलीवुड के कई अभिनेताओं पर भी गानें फिल्माए हैं जो इस प्रकार हैं- गुरु दत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत-भूषण, जोनी वाकर, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना, बिग बी, धर्मेन्द्र और ऋषि कपूर तथा गायक किशोर कुमार के ऊपर भी गाने गा चुके हैं.
- कुछ यूं हुआ संगीत और आत्मा का मिलन....
मोहम्मद रफीक साहब का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था. पहले रफी साहब का परिवार पाकिस्तानी में रहता था लेकिन बाद में जब रफी साहब छोटे थे तब इनका पूरा परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया. उस समय इनके परिवार में कोई भी संगीत के बारे में नहीं जानता था.
रफी जी छोटे थे तब इनके बड़े भाई की नाई की दूकान थीं. इनके बड़े भाई मोहम्मद हामिद ने इनके संगीत के प्रति रूचि को देखकर रफी साहब को उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास ले गए और संगीत की शिक्षा लेने को कहा था. रफी जी ने पहला गाना 13 साल की उम्र में सार्वजनिक प्रदर्शन में गाया था. उनके गायन ने श्याम सुंदर जो कि उस समय के फेमस संगीतकार थें और काफी प्रभावित हुए और इसी महफिल में रफी जी को गाने का निमंत्रण दिया था.
- किसी पहचान के मोहताज नहीं है रफी साहब.....
मोहम्मद रफी साहब को नौशाद द्वारा गाये गीत 'तेरा खिलौना टुटा ' फिल्म – अनमोल घड़ी से प्रथम बार हिंदी जगत में ख्याति मिली थीं. इसके बाद रफी जी ने शहीद, मेला और दुलारी में भी गाने गाये जो काफी पॉपुलर हुए. बैजू बावरा के गानों ने रफी जी को फेमस गायक के रूप में स्थापित किया था. बाद में नौशाद ने रफी को अपने निर्देशन में कई गीत गाने को दिए थे और इसी समय शंकर जय किशन को उनकी आवाज काफी अच्छी लगी थीं.
जयकिशन उस समय राजकपूर के लिये संगीत देते थे लेकिन राज कपूर को केवल मुकेश की आवाज पसंद थी. चाहे मुझे जंगली कहे फिल्म -जंगली, एहसान तेरा होगा मुझ पर फिल्म- जंगली, ये चाँद से रौशन चेहरा फिल्म- कश्मीर की कली, दीवाना हुआ तेरा फिल्म- कश्मीर की कली. इन गानों से रफी की ख्याति बहुत ही ज्यादा बढ़ गयी थीं.
- रफी साहब के सदाबहार गीत....
ओ दुनिया के रखवाले, ये है बाम्बे मेरी जान, सर जो तेरा चकराए, हम किसी से कम नहीं, चाहे मुझे कोई जंगली कहे, मै जट यमला पगला, चढ़ती जवानी मेरी, हम काले हुए तो क्या हुआ दिलवाले हैं, ये हैं इश्क-इश्क, परदा है परदा, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों (देशभक्ति गीत), नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुठी में क्या है, चक्के पे चक्का (बच्चों का गीत), ये देश हैं वीर जवानो का, मन तड़पत हरी दर्शन को आज (शास्त्रीय संगीत), सावन आए या ना आए. ऐसे कई गीतों ने लोगों के जुबां पर आज गुनगुनाया जाता है.
संगीत के क्षेत्र में कई गायक आये है और कई गायक आयेंगे लेकिन जो आवाज और गानों में धुन रफी साहब ने दी है उनको भुला पाना नामुमकिन है. आज भी वर्तमान में जब हिंदी गानों की रीमिक्स बनने लगी है तब भी रफी साहब के गाने बहुत प्रसिद्ध है. ये कहना गलत नहीं होगा कि भले ही ये सितारा आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन इनके गीतों की रोशनी से हिंदी सिनेमा हमेशा ही जगमगता रहेगा.