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उप्र में अनुभव की 'आर्टिकल 15' को लेकर ब्राह्मणों में नाराजगी - आयुष्मान खुराना

अनुभव सिन्हा की बहुप्रतीक्षित थ्रिलर 'आर्टिकल 15' जो कथित तौर पर बदायूं बलात्कार और हत्या के मामले से प्रेरित है, वह परेशानी का सबब बनती दिख रही है. आयुष्मान खुराना की इस फिल्म की शूटिंग लखनऊ और उसके आसपास हुई है. ब्राह्मण इस तथ्य से परेशान हैं कि कहानी "ट्विक" कर दी गई है. आरोपी पुरुषों को ब्राह्मण के रूप में चित्रित करने के इरादे से, उन्हें लगता है कि यह समुदाय को बदनाम करेगा.

Anubhav Sinha's 'Article 15' upsets Brahmins in UP
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Published : Jun 5, 2019, 1:12 PM IST

Updated : Jun 5, 2019, 6:15 PM IST

मुंबई : अनुभव सिन्हा की बहुप्रतीक्षित थ्रिलर फिल्म 'आर्टिकल 15' मुसीबत में फंसती नजर आ रही है. यह कथित तौर पर बदायूं दुष्कर्म और हत्या से जुड़े मामले से प्रेरित है.

28 जून को रिलीज होने वाली फिल्म ने उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी मोल ले ली है. आयुष्मान खुराना की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म की शूटिंग लखनऊ और उसके आसपास हुई है.

ब्राह्मण इस तथ्य से परेशान हैं कि कहानी को आरोपी पुरुषों को ब्राह्मण के रूप में चित्रित करने के इरादे से तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है. उन्हें लगता है कि इससे समुदाय की बदनामी होगी.

पिछले हफ्ते रिलीज हुई इस फिल्म के ट्रेलर में एक गांव की दो युवा लड़कियों का बेरहमी से दुष्कर्म और हत्या करते हुए दिखाया गया है, उनके शव एक पेड़ से लटके हुए हैं. यह दिखाता है कि लड़कियों के परिवार जो हाशिए पर हैं और जिन्हें मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, उन्हें निशाना बनाया गया क्योंकि उन्होंने अपने दैनिक वेतन में 3 रुपये की बढ़ोतरी की मांग की थी.

फिल्म में दर्शाया गया है कि क्षेत्र में जातिगत समीकरण कितना हावी है. ट्रेलर में यह भी उल्लेख किया गया है कि अपराध एक 'महंतजी के लड़के' द्वारा किया गया है. महंतजी को ब्राह्मण समुदाय के प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है और इससे ब्राह्मण समुदाय नाराज हो गया है.

फिल्म में आयुष्मान खुराना इस मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी की भूमिका में हैं, जो एक ब्राह्मण है. बदायूं दुष्कर्म और हत्या का मामला 2014 में हुआ था. उस समय उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार सत्ता में थी.

आरोपियों के नाम पप्पू यादव, अवधेश यादव, उर्वेश यादव, छत्रपाल यादव और सर्वेश यादव थे. छत्रपाल और सर्वेश पुलिसकर्मी थे. पुलिस विभाग पर आरोप लगाया गया था कि वह इस मामले में आरोपियों के प्रति समाजवादी पार्टी के राजनीतिक दबाव के कारण नरमी दिखा रही है.

ब्राह्मण संगठन परशुराम सेना के सदस्य व एक युवा छात्र नेता कुशल तिवारी ने कहा, "अगर फिल्म बदायूं की घटना पर आधारित है, तो आरोपियों को ब्राह्मणों के तौर पर दिखाने की आवश्यकता कहां थी? यह स्पष्ट है कि इरादा ब्राह्मण समुदाय को बदनाम करना है. हमने इस मुद्दे के बारे में जागरूकता पैदा करना शुरू कर दिया है और हम यहां फिल्म की रिलीज की अनुमति नहीं देंगे."

तिवारी ने कहा कि अगर ठाकुर 'पद्मावत' की रिलीज को रोक सकते हैं, तो ब्राह्मण इस फिल्म को लेकर अपने सम्मान के लिए क्यों नहीं लड़ सकते हैं? उन्होंने कहा, "हम सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू कर रहे हैं और हम फिल्म निर्देशक अनुभव सिंह से भी संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह फोन नहीं उठा रहे हैं."

उन्होंने आगे कहा कि जब फिल्म की शूटिंग मार्च और अप्रैल में लखनऊ में हो रही थी, तब उन्हें कहानी की जानकारी नहीं थी और इसलिए उन्होंने विरोध नहीं किया.

इस बीच, फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा से संपर्क नहीं किया जा सका, लेकिन फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मनोज पाहवा ने एक समाचार एजेंसी को बताया, "फिल्म पूरी तरह से बदायूं में हुए जघन्य अपराध पर आधारित नहीं है, जहां दो लड़कियों का दुष्कर्म हुआ था और फंदे से लटका दी गईं. यह फिल्म केवल उस घटना से प्रेरित है और इसका नाम 'आर्टिकल 15'है, जो सभी को समानता का अधिकार देता है."

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मुंबई : अनुभव सिन्हा की बहुप्रतीक्षित थ्रिलर फिल्म 'आर्टिकल 15' मुसीबत में फंसती नजर आ रही है. यह कथित तौर पर बदायूं दुष्कर्म और हत्या से जुड़े मामले से प्रेरित है.

28 जून को रिलीज होने वाली फिल्म ने उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी मोल ले ली है. आयुष्मान खुराना की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म की शूटिंग लखनऊ और उसके आसपास हुई है.

ब्राह्मण इस तथ्य से परेशान हैं कि कहानी को आरोपी पुरुषों को ब्राह्मण के रूप में चित्रित करने के इरादे से तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है. उन्हें लगता है कि इससे समुदाय की बदनामी होगी.

पिछले हफ्ते रिलीज हुई इस फिल्म के ट्रेलर में एक गांव की दो युवा लड़कियों का बेरहमी से दुष्कर्म और हत्या करते हुए दिखाया गया है, उनके शव एक पेड़ से लटके हुए हैं. यह दिखाता है कि लड़कियों के परिवार जो हाशिए पर हैं और जिन्हें मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, उन्हें निशाना बनाया गया क्योंकि उन्होंने अपने दैनिक वेतन में 3 रुपये की बढ़ोतरी की मांग की थी.

फिल्म में दर्शाया गया है कि क्षेत्र में जातिगत समीकरण कितना हावी है. ट्रेलर में यह भी उल्लेख किया गया है कि अपराध एक 'महंतजी के लड़के' द्वारा किया गया है. महंतजी को ब्राह्मण समुदाय के प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है और इससे ब्राह्मण समुदाय नाराज हो गया है.

फिल्म में आयुष्मान खुराना इस मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी की भूमिका में हैं, जो एक ब्राह्मण है. बदायूं दुष्कर्म और हत्या का मामला 2014 में हुआ था. उस समय उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार सत्ता में थी.

आरोपियों के नाम पप्पू यादव, अवधेश यादव, उर्वेश यादव, छत्रपाल यादव और सर्वेश यादव थे. छत्रपाल और सर्वेश पुलिसकर्मी थे. पुलिस विभाग पर आरोप लगाया गया था कि वह इस मामले में आरोपियों के प्रति समाजवादी पार्टी के राजनीतिक दबाव के कारण नरमी दिखा रही है.

ब्राह्मण संगठन परशुराम सेना के सदस्य व एक युवा छात्र नेता कुशल तिवारी ने कहा, "अगर फिल्म बदायूं की घटना पर आधारित है, तो आरोपियों को ब्राह्मणों के तौर पर दिखाने की आवश्यकता कहां थी? यह स्पष्ट है कि इरादा ब्राह्मण समुदाय को बदनाम करना है. हमने इस मुद्दे के बारे में जागरूकता पैदा करना शुरू कर दिया है और हम यहां फिल्म की रिलीज की अनुमति नहीं देंगे."

तिवारी ने कहा कि अगर ठाकुर 'पद्मावत' की रिलीज को रोक सकते हैं, तो ब्राह्मण इस फिल्म को लेकर अपने सम्मान के लिए क्यों नहीं लड़ सकते हैं? उन्होंने कहा, "हम सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू कर रहे हैं और हम फिल्म निर्देशक अनुभव सिंह से भी संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह फोन नहीं उठा रहे हैं."

उन्होंने आगे कहा कि जब फिल्म की शूटिंग मार्च और अप्रैल में लखनऊ में हो रही थी, तब उन्हें कहानी की जानकारी नहीं थी और इसलिए उन्होंने विरोध नहीं किया.

इस बीच, फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा से संपर्क नहीं किया जा सका, लेकिन फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मनोज पाहवा ने एक समाचार एजेंसी को बताया, "फिल्म पूरी तरह से बदायूं में हुए जघन्य अपराध पर आधारित नहीं है, जहां दो लड़कियों का दुष्कर्म हुआ था और फंदे से लटका दी गईं. यह फिल्म केवल उस घटना से प्रेरित है और इसका नाम 'आर्टिकल 15'है, जो सभी को समानता का अधिकार देता है."

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मुंबई : आयुष्मान खुराना स्टारर फ़िल्म "आर्टिकल 15" का ट्रेलर रिलीज़ किया गया. इस फ़िल्म के निर्माता अनुभव सिन्हा हैं, जिन्हें फ़िल्म "मुल्क" और "रा-वन" से प्रसिद्धि मिली थी. यह फ़िल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित होने का दावा करती है. ट्रेलर को देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि इस फ़िल्म की कहानी यूपी में बदायूं के गांव में दो युवा लड़कियों की हत्या कर उन्हें पेड़ से लटका देने वाली घटना पर आधारित है.

एक ख़बर में, फ़िल्म के एक कलाकार मनोज पाहवा के हवाले से लिखा गया है, “यह फ़िल्म बदायूं में हुए जघन्य अपराध पर पूरी तरह से आधारित नहीं है. जहां दो लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया और उन्हें फांसी दे दी गई. हम कह सकते हैं कि यह फ़िल्म उस घटना से प्रेरित है और हमने इसमें कुछ अंश शामिल किए हैं.”

जैसा कि ट्रेलर की शुरुआत भारतीय संविधान के अर्टिकल 15 के संदर्भ से होती है, जो सभी को समानता का अधिकार देता है. ऐसा लगता है जैसे यह फिल्म इस तथ्य से प्रेरित है कि घरों में समानता का अर्थ ब्राह्मणों को खलनायक के रूप में दिखाने में है. 

ट्रेलर के दृश्य यह भी बताते हैं कि कैसे क्षेत्र के लोगों को लगता है कि दलितों को मजदूरी में बढ़ोतरी की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है और उनकी स्थिति यह है कि "उच्च जाति" के लोगों को जो उपयुक्त लगता है, वो उन्हें (दलितों) वही दर्जा देते हैं.

बदायूं मामले से "प्रेरित" होने के अपने प्रयास में, फ़िल्म ने तथ्यों के साथ व्यापक स्तर पर छेड़छाड़ की. यूपी की तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार के लिए शर्म की बात है कि इस मामले को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में व्यापक रूप से देखा गया. क्योंकि इसे दलितों के खिलाफ उच्च जाति के अत्याचार के रूप में उजागर किया गया था.

बाद में सीबीआई ने कहा था कि उन्होंने अपनी जाँच में पाया कि 14 और 15 साल की दो लड़कियों ने आत्महत्या की थी. उनका न तो बलात्कार हुआ था और न ही उनकी हत्या हुई थी. इसके बाद पांचों आरोपियों को क्लीन चिट दे दी गई.

अनुभव सिन्हा, वही व्यक्ति है जो स्वयं के धन को लूटने के प्रयास में उजागर हो चुका है. इसके अलावा उसने पाकिस्तानियों से अपनी मुल्क फ़िल्म को अवैध रूप से देखने का अनुरोध किया था. सिन्हा ने अपनी फ़िल्म में व्यापक रूप से सार्वजनिक अपराध करने और इसे जातिवाद के रंगों में रंगने का ख़ूब प्रयास किया है.

अदृश्य महंत जी (संभावित रूप से योगी आदित्यनाथ) जो एक ब्राह्मण हैं. उन्हें फ़िल्म में बुराई के रूप में चित्रित किया गया. साथ ही इस फ़िल्म का मुख्य विषय उच्च जातियों और ब्राह्मणों के अत्याचारों पर केंद्रित है. हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में, उत्तर प्रदेश ने दिखा दिया कि उसने जाति और समुदाय के अपने पुराने राजनीतिक साधनों को अब त्याग दिया है.

सपा-बसपा का गठबंधन जिसकी पूरी राजनीति जातिगत विभाजन और विरोध पर आधारित है. जनता ने उसे ख़ारिज कर दिया और भाजपा ने विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दों पर चुनाव लड़ा था उसे (भाजपा) जनता ने भारी जनादेश के साथ चुना.

ऐसे समय में जब लोग अपनी ग़लती को सुधारने के लिए तैयार हैं और आगे की तरफ बढ़ रहे हैं, इस तरह की फ़िल्में जातिगत पहचान के पुराने ढकोसले को अपने गले से नीचे उतारने का एक बेशर्म प्रयास है, जिसकी जितनी निंदा की जाए वो कम है. 


Conclusion:
Last Updated : Jun 5, 2019, 6:15 PM IST
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