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भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया एक खास लाइटर

अमेरिका में भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के एक दल की अगुवाई में नासा द्वारा वित्त पोषित शोधकर्ताओं ने तेज चार्जिंग बैटरी वाले एक लाइटर को विकसित किया है जो स्पेससूट या एक मंगल रोवर के लिए उपयुक्त है.

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Published : Sep 3, 2020, 10:42 PM IST

Updated : Feb 16, 2021, 7:31 PM IST

न्यूयॉर्क : भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के एक दल ने एक खास तरह का लाइटर बनाया है, जो स्पेससूट या एक मंगल रोवर के लिए उपयुक्त है. दक्षिण कैरोलिना के क्लेमसन विश्वविद्यालय में क्लेम्सन नेनोमेट्रिअट्स इंस्टीट्यूट (सीएनआई) के शैलेन्द्र चिलुवाल, नवाज सपकोटा, अप्पाराव एम राव और रामकृष्ण पोदिला, इन बैटरियों को बनाने वाली टीम का हिस्सा थे.

कॉलेज ऑफ साइंस डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी में सहायक प्रोफेसर पोडिला ने कहा कि, अमेरिकी उपग्रहों में इन नई क्रांतिकारी बैटरियों का इस्तेमाल जल्द ही किया जा सकता है.

अधिकांश उपग्रह मुख्य रूप से अपनी शक्ति सूर्य से प्राप्त करते हैं लेकिन, उपग्रहों को ऊर्जा एकत्र करने में सक्षम होना पड़ता है जब वे पृथ्वी की छाया में होते हैं.

पोडिला ने यह भी कहा कि, 'हमें बैटरी को जितना संभव हो उतना हल्का बनाना होगा क्योंकि जितना अधिक उपग्रह का वजन होता है, उतना ही अधिक उसके मिशन की लागत होती है.'

नासा द्वारा वित्त पोषित यह शोध अमेरिकन केमिकल सोसाइटी जर्नल एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में दिखाई दिया. पोडिला ने कहा कि समूह की सफलताओं को समझने के लिए, लिथियम-आयन बैटरी में ग्रेफाइट एनोड की कल्पना, कार्ड के डेक के रूप में की जा सकती है, जिसमें प्रत्येक कार्ड ग्रेफाइट की एक परत का प्रतिनिधित्व करता है और जब तक कि बिजली की जरूरत नहीं होती तो इसका उपयोग चार्ज को स्टोर करने के लिए किया जाता है. पोडिला के अनुसार ग्रेफाइट ज्यादा चार्ज नहीं कर सकता है.

टीम ने सिलिकॉन के साथ काम करने का विकल्प चुना, जो अधिक चार्ज पैक कर सकता है, जिसका अर्थ है कि लाइटर कोशिकाओं में अधिक ऊर्जा संग्रहीत की जा सकती है.
ग्रेफाइट से बने कार्डों के एक डेक के बजाय, नई बैटरियों में 'बकीपेपर' नामक कार्बन नैनोट्यूब मटेरियल की परतों का उपयोग किया जाता है, जिसके बीच में सिलिकॉन नैनोपार्टिकल्स होते हैं.

सीएनआई में स्नातक छात्र और अध्ययन पर पहले लेखक शैलेंद्र चिलुवाल ने समझाया कि, 'कार्बन नैनोट्यूब की फ्रीस्टैंडिंग शीट सिलिकॉन नैनोकणों को एक-दूसरे के साथ विद्युत रूप से जुड़ी रहती है.'

भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया एक लाइटर
भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया एक लाइटर


हल्की बैटरी जो तेजी से चार्ज होती है और बहुत अधिक दक्षता प्रदान करती है. यह न केवल बैटरी से चलने वाले सूट पहने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वरदान होगी, बल्कि उन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए भी होगी जिन्हें अंतरिक्ष यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाना है.

सीएनआई के निदेशक और नासा अनुदान पर प्रमुख अन्वेषक राव ने कहा कि, 'लिथियम आयन बैटरी में एनोड के रूप में सिलिकॉन इस क्षेत्र में शोधकर्ताओं के लिए 'पवित्र ग्रैल' की तरह है.' राव ने यह भी कहा कि, नई बैटरियां जल्द ही इलेक्ट्रिक वाहनों में अपना रास्ता तलाश लेंगी.

पॉडिला ने कहा कि, 'हमारा अगला लक्ष्य इस लैब आधारित तकनीक का बाजार में ले जाने के लिए औद्योगिक भागीदारों के साथ सहयोग करना है.'

पढ़ेंः गूगल दिखाएगा फोटोज पर लाइसेंस वाला बैज

न्यूयॉर्क : भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के एक दल ने एक खास तरह का लाइटर बनाया है, जो स्पेससूट या एक मंगल रोवर के लिए उपयुक्त है. दक्षिण कैरोलिना के क्लेमसन विश्वविद्यालय में क्लेम्सन नेनोमेट्रिअट्स इंस्टीट्यूट (सीएनआई) के शैलेन्द्र चिलुवाल, नवाज सपकोटा, अप्पाराव एम राव और रामकृष्ण पोदिला, इन बैटरियों को बनाने वाली टीम का हिस्सा थे.

कॉलेज ऑफ साइंस डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी में सहायक प्रोफेसर पोडिला ने कहा कि, अमेरिकी उपग्रहों में इन नई क्रांतिकारी बैटरियों का इस्तेमाल जल्द ही किया जा सकता है.

अधिकांश उपग्रह मुख्य रूप से अपनी शक्ति सूर्य से प्राप्त करते हैं लेकिन, उपग्रहों को ऊर्जा एकत्र करने में सक्षम होना पड़ता है जब वे पृथ्वी की छाया में होते हैं.

पोडिला ने यह भी कहा कि, 'हमें बैटरी को जितना संभव हो उतना हल्का बनाना होगा क्योंकि जितना अधिक उपग्रह का वजन होता है, उतना ही अधिक उसके मिशन की लागत होती है.'

नासा द्वारा वित्त पोषित यह शोध अमेरिकन केमिकल सोसाइटी जर्नल एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में दिखाई दिया. पोडिला ने कहा कि समूह की सफलताओं को समझने के लिए, लिथियम-आयन बैटरी में ग्रेफाइट एनोड की कल्पना, कार्ड के डेक के रूप में की जा सकती है, जिसमें प्रत्येक कार्ड ग्रेफाइट की एक परत का प्रतिनिधित्व करता है और जब तक कि बिजली की जरूरत नहीं होती तो इसका उपयोग चार्ज को स्टोर करने के लिए किया जाता है. पोडिला के अनुसार ग्रेफाइट ज्यादा चार्ज नहीं कर सकता है.

टीम ने सिलिकॉन के साथ काम करने का विकल्प चुना, जो अधिक चार्ज पैक कर सकता है, जिसका अर्थ है कि लाइटर कोशिकाओं में अधिक ऊर्जा संग्रहीत की जा सकती है.
ग्रेफाइट से बने कार्डों के एक डेक के बजाय, नई बैटरियों में 'बकीपेपर' नामक कार्बन नैनोट्यूब मटेरियल की परतों का उपयोग किया जाता है, जिसके बीच में सिलिकॉन नैनोपार्टिकल्स होते हैं.

सीएनआई में स्नातक छात्र और अध्ययन पर पहले लेखक शैलेंद्र चिलुवाल ने समझाया कि, 'कार्बन नैनोट्यूब की फ्रीस्टैंडिंग शीट सिलिकॉन नैनोकणों को एक-दूसरे के साथ विद्युत रूप से जुड़ी रहती है.'

भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया एक लाइटर
भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया एक लाइटर


हल्की बैटरी जो तेजी से चार्ज होती है और बहुत अधिक दक्षता प्रदान करती है. यह न केवल बैटरी से चलने वाले सूट पहने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वरदान होगी, बल्कि उन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए भी होगी जिन्हें अंतरिक्ष यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाना है.

सीएनआई के निदेशक और नासा अनुदान पर प्रमुख अन्वेषक राव ने कहा कि, 'लिथियम आयन बैटरी में एनोड के रूप में सिलिकॉन इस क्षेत्र में शोधकर्ताओं के लिए 'पवित्र ग्रैल' की तरह है.' राव ने यह भी कहा कि, नई बैटरियां जल्द ही इलेक्ट्रिक वाहनों में अपना रास्ता तलाश लेंगी.

पॉडिला ने कहा कि, 'हमारा अगला लक्ष्य इस लैब आधारित तकनीक का बाजार में ले जाने के लिए औद्योगिक भागीदारों के साथ सहयोग करना है.'

पढ़ेंः गूगल दिखाएगा फोटोज पर लाइसेंस वाला बैज

Last Updated : Feb 16, 2021, 7:31 PM IST
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