हैदराबाद: गणेश चतुर्थी देशभर में खुशी और समृद्धि के साथ मनाया जाता है. आज हम इको फ्रेंडली मूर्तियों की बात कर हैं, लेकिन यह काफी नहीं है. आज प्रकृति को बचाने के लिए और अधिक कदम उठाने की जरूरत है. प्रकृति को बचाने के लिए 360 डिग्री का दृष्टिकोण आवश्यक है.
हम इन दिनों बहुत सुनते रहते हैं; प्रकृति बचाओ, जीवन बचाओ. इसके लिए हमने मूर्तियों का आकार और सामग्री बदल दी है.
असल में, पीओपी में मैग्नीशियम, जिप्सम, फॉस्फोरस और सल्फर जैसे रसायन होते हैं, जो आमतौर पर इन मूर्तियों को सजाने के लिए और उन्हें रंग करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. इनमें पारा, कैडमियम, आर्सेनिक, लेड और कार्बन जैसे तत्व भी होते हैं.
जब इन मूर्तियों को समुद्र, तालाबों, झीलों आदि जैसे सामान्य जल स्रोतों में विसर्जित किया जाता है, तो इसे उच्च मात्रा में धातु और अन्य रसायन निकलते हैं जिससे वह दूषित हो जाती हैं, जिससे मछली और पौधों को काफी हानि होती है.
इसके अलावा जो जीव पानी में रहते हैं उनको भी इससे नुकसान होता है, इसलिए हम इको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियां बनाने पर जोर देते हैं.
आज चॉकलेट गणेश, मोदक गणेश, पत्तों से बने गणेश, मिट्टी के पात्र, मिट्टी, आटा, हल्दी, लाल मिट्टी और उर्वरक, और पौधे के बीज से बने गणेश बाजारों में उपलब्ध हैं. साथ ही यह ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं.
प्रकृति को बचाने के लिए कई मूर्तिकारों ने भी इको फ्रेंडली मूर्ति बनाना शुरू कर दिया है और यह बाजारों में भी उपलब्ध हैं.
हाल ही एक खबर सामने आई थी कि मध्य प्रदेश के इंदौर में एक महिला ने कोरोना महामारी के कारण गणेश चतुर्थी के लिए भगवान गणेश की मूर्ति को चॉकलेट का उपयोग करके बनाकर दूध में डुबोने की योजना बनाई थी.
इसके अलावा मल्हार फाउंडेशन और दीपक बाबा हंडे मित्र मंडल वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे गणेश भक्तों को नि:शुल्क पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियों की पेशकश करने का कार्य शुरू किया है.
चूंकि इन मूर्तियों को मूर्तिकारों से खरीदा गया है, जिनके काम कोरोना के कारण बंद हो गए इससे उनको भी मदद मिलेगी. मुख्य रूप से महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में आमतौर पर 10 दिवसीय गणेश चतुर्थी उत्सव मनाया जाता है.
हालांकि इको फ्रेंडली की अवधारणा केवल मूर्तियों के लिए ही नहीं है. अगरबत्ती, प्रसाद, सिंदूर, पूजा सामग्री (वस्तुएं) आदि जैसी अन्य चीजों के बारे में अभी भी प्लास्टिक में पैक किया जाता है और लाखों भक्त भगवान को चढ़ाते हैं और यह बहुत प्रदूषण पैदा करता है.
यदि हम लागत पर नजर डालें, प्लास्टिक में पैक की जाने वाली अगरबत्तियों की कीमत 10 रुपये होती है, जबकि जूट के बैग या अन्य पैकेजिंग सामग्री की कीमत 30 रुपये या 50 रुपये होती है, जिसे आम लोग सहन नहीं कर सकते और इको फ्रेंडली विचारधारा किसी तरह दूर हो जाती है.
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अगर हम बात करें तो इको फ्रेंडली गणेश को हमें समझना होगा कि इको फ्रेंडली का मतलब क्या है और कीमतों के बोझ को कम करने पर आम आदमी इको फ्रेंडली को कैसे बढ़ावा दे सकता है.
शायद अन्य वस्तुओं के साथ, मंदिर के पुजारी प्रत्येक भक्त को एक पौधा या बीज भेंट कर सकते हैं. जिसे वह अपने घरों में लगा सकते हैं. यह जैव विविधता में वृद्धि का कारण बनेगा.
इसके अलावा दस साल बाद वह पक्षियों, गिलहरी और अन्य जीवित प्राणियों के घर प्रदान करेगा. यह जैव विविधता का समर्थन करेगा और यही भगवान गणेश हमें सिखाते हैं.
मूर्ति से लेकर पेड़ तक सभी रूपों में भगवान की पूजा करना और सभी प्राणियों का सम्मान, हम सभी को करना चाहिए.
इस गणेश चतुर्थी को मनाएं, अधिक पर्यावरण के अनुकूल रहें, स्वस्थ रहें, और प्रकृति के महत्व को समझें.
कोरोना महामारी के समय लोग सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों का पालन करें और अन्य एहतियाती तरीकों की अनदेखी न करें.