बिलासपुर : बिलासपुर जिले के अतिरिक्त लोक अभियोजक अजीत सिंह और दिनेश सिंह ने शुक्रवार को यहां बताया कि जिले के अपर सत्र न्यायाधीश विवेक कुमार तिवारी की अदालत ने सरकंडा थाना क्षेत्र में नौ वर्षीय बीमार बालिका के साथ बलात्कार के मामले में भोला साहू (22 वर्ष) को शेष जीवनकाल कारावास में बिताने की सजा सुनाई है.
सिंह ने बताया कि अदालत ने अपने फैसले में टिप्पणी की कि आरोपी की प्रवृति यह सोचने के लिए विवश करती है कि क्या सही में मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है? क्योंकि यह प्रवृति तो जानवरों में भी नहीं होती और वह इस तरह का कार्य भी नहीं करते हैं.
अतिरिक्त लोक अभियोजक ने बताया कि पीड़ित बालिका अपने माता-पिता और दादी के साथ रहती थी. करीब दो साल पहले चार दिसंबर वर्ष 2019 को बालिका के माता-पिता मजदूरी करने गए थे. बालिका भी अपनी दादी के साथ मजदूरी करने जाती थी. घटना के दिन बालिका की तबियत ख़राब थी, इसलिए उसकी दादी ने पास में ही रहने वाली उसकी नानी के घर उसे छोड़ दिया और काम पर चली गई.
सिंह ने बताया कि बालिका घर में सो रही थी और उसकी नानी घर के दूसरे काम-काज में व्यस्त थी। इस दौरान उस इलाके में रहने वाला भोला साहू घर में घुस आया और उसने चाकू से डराकर बच्ची के साथ दुष्कर्म किया. दादी के घर आने पर बच्ची ने उसे अपने साथ हुई वारदात की जानकारी दी
उन्होंने बताया कि बाद में दादी की शिकायत पर सरकंडा थाने की पुलिस ने आरोपी भोला साहू के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.अधिवक्ता ने बताया कि बाद में पुलिस ने भारतीय दंड विधान तथा यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत भोला साहू को गिरफ्तार कर लिया. अतिरिक्त लोक अभियोजक सिंह ने बताया कि दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद इस महीने की तीन तारीख को अदालत ने साहू को शेष जीवनकाल कारावास में ही बिताने की सजा सुनाई है.
अदालत ने अपने फैसले में टिप्पणी की है कि यौन हिंसा अमानवीय कार्य होने के अतिरिक्त महिला की गोपनीयता और पवित्रता के अधिकार का ऐसा उल्लंघन है जो उसके सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करता है.
अदालत ने कहा है कि इस प्रकरण में अभियुक्त द्वारा नौ वर्ष की एक बच्ची के साथ चाकू से डराते हुए उसके साथ बलात्कार किया गया है जो यह दर्शित करता है, कोई व्यक्ति इस हद तक कामांध हो सकता है कि उसे छोटे-बड़े होने या किसी रिश्ते से भी कोई अंतर नहीं पड़ता है. ऐसी प्रवृति यह सोचने के लिए विवश करती है कि क्या सही में मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है? क्योंकि यह प्रवृत्ति तो जानवरों में भी नहीं होती है और वह इस तरह का कार्य भी नहीं करते हैं.
(पीटीआई-भाषा)