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Dantewada Naxal Attack: खून से सनी है तीन जिलों से घिरी जगरगुंडा की यह सड़क, लाल आतंक की है पनाहगाह

छत्तीसगढ़ में आज भी नक्सल समस्या बरकरार है. भले ही शासन प्रशासन की ओर से इस समस्या को कम होने के दावे समय-समय पर किए जाते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि यह समस्या समाप्त नहीं हो सकी है. खासकर छत्तीसगढ़ का जगरगुंडा क्षेत्र आज भी नक्सलियों के कब्जे में है. इसके आसपास का क्षेत्र नक्सलियों का सेफ जोन माना जाता है. यहां जब चाहे तब नक्सली अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने में कामयाब रहे हैं. अब तक यहां सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं.

Major Naxalite attacks
लाल आतंक की है पनाहगाह
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Published : Apr 27, 2023, 10:07 PM IST

रायपुर: भौगोलिक बनावट के हिसाब से पहाड़ी इलाका होने के कारण जगरगुंडा नक्सलियों का सेफ जोन माना जाता है. जब भी नक्सली कोई बड़ी वारदात करते हैं तो पहाड़ियों के रास्ते दूसरे राज्य की ओर भाग निकलते है, जिसके बाद उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है. नक्सलियों के खिलाफ चल रहे युद्ध में यह काफी महत्वपूर्ण सड़क है. साथ ही लोगों की सहूलियत और व्यापारिक लाभ वाला भी है. इतना ही महत्वपूर्ण यह नक्सलियों के लिए भी है, क्योंकि जगरगुंडा का हिस्सा बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले का बॉर्डर का हिस्सा है. नक्सलियों के लिए भी यह रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां से वे तीनों जिलों में अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं और बॉर्डर में जाकर छिप जाते है.

सड़कों पर बिछा रखी थी बारूदी सुरंग: एक समय था जब इस क्षेत्र में राज्य परिवहन निगम की बस से आवाजाही होती थी, लेकिन सलवा जुडूम अभियान के दौरान नक्सलियों ने इस क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया. नक्सलियों की इजाजत के बिना यहां एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता. यहां तक कि क्षेत्र में बनाए गए जवानों के कैंप में हेलीकॉप्टर के जरिए राशन पहुंचाया जाता था. क्योंकि यहां की सड़क पर नक्सलियों का कब्जा था, जिस पर उन्होंने बारूदी सुरंग बिछा रखी थी. कब कहां विस्फोट हो जाए कहा नहीं जा सकता था. नक्सली जब चाहे तब किसी बड़ी घटना को अंजाम दे देते थे.

सड़क निर्माण में कई जवान हुए शहीद: इस बीच लगातार सरकार की ओर से नक्सलियों के खिलाफ मुहिम चलाई गई. सर्चिंग ऑपरेशन तेज किया गया. इसकी वजह से कुछ हद तक यहां नक्सली बैकफुट पर रहे. यहां पर जवानों की मदद से सड़क का भी निर्माण कराया गया. इस सड़क को बनाने के दौरान कई बार आईईडी विस्फोट हुए, नक्सलियों ने हमला किया, जिसमें कई जवान शहीद हुए. बावजूद इसके सड़क का काम नहीं रुका. अरनपुर से जगरगुंडा सड़क बनने से कोंडासवली, जगरगुंडा, मिलमपल्ली, कामरगुड़ा, नरसापुरम जैसे दर्जनभर से ज्यादा गांव मुख्य धारा से जुड़ गए. यह बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले को जोड़ने वाली सड़क बन गई. साथ ही इस रास्ते से आंध्रप्रदेश और तेलंगाना जाने का भी रास्ता खुल गया.



इसी क्षेत्र में हुआ था देश का सबसे बड़ा नक्सली हमला: देश में सबसे बड़ा नक्सली हमला भी इसी क्षेत्र में हुआ था, जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे. इस घटना ने प्रदेश को ही नही बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था. अब भी नक्सलियों का आतंक कम होता नजर नहीं आ रहा है. इसका ताजा उदाहरण बुधवार को दंतेवाड़ा में देखने को मिला, जहां आईईडी ब्लास्ट में 10 जवान शहीद हो गए और एक वाहन चालक की भी मौत हो गई. भले ही शासन-प्रशासन नक्सलियों के बैकफुट पर होने के कितने ही दावे कर ले, नक्सली समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं.

15 साल बाद बाय रोड पहुंचे थे तत्कालीन एसपी: 15 साल के बाद साल 2020 में दंतेवाड़ा के तत्कालीन एसपी डॉ अभिषेक पल्लव पहले अफसर थे, जो बाय रोड जगरगुंडा पहुंचे थे. इसके पहले यहां हेलीकॉप्टर के जरिए ही अधिकारी और जवानों की आवाजाही होती थी. इसके बाद 15 जनवरी 2023 को बस सेवा की शुरुआत हुई. सड़क बनने के बाद लोगों की आवाजाही इस रोड पर तेज हो गई. इसके बावजूद नक्सलियों ने यहां से अपना कब्जा नहीं छोड़ा है. आज भी इस क्षेत्र में नक्सलियों का कब्जा बरकरार है.

यह भी पढ़ें- Dantewada Naxal Attack: नक्सल संगठन पीएलजीए ने ली दंतेवाड़ा हमले की जिम्मेदारी


नक्सलियों की तीन एरिया कमेटी से घिरा है यह क्षेत्र: नक्सलियों के दक्षिण बस्तर दरभा डिवीजन के अंतर्गत अरनपुर से जगरगुंडा तक सड़क का हिस्सा आता है. इस डिवीजन के अंतर्गत तीन एरिया कमेटी है जिसमें मलांगीर, जगरगुंडा और केरलापाल शामिल हैं. एक समय नक्सलियों के लिए यह सबसे सेफ जोन माना जाता था. जानकारों की मानें तो नक्सलियों के टॉप लीडर पापाराव, जगदीश, विनोद, देवा, गुंडाधूर से लेकर गणेश उइके इस क्षेत्र में ही तैनात रहे.


जगरगुंडा में अब तक की कुछ बड़ी नक्सली वारदात: हाल ही में फरवरी 2023 माह में सर्चिंग के लिए निकले जवानों की नक्सलियों से मुठभेड़ हुई थी. उस समय 3 जवान शहीद हो गए थे. 3 अप्रैल 2021 को बीजापुर जिले के तर्रेम थाना क्षेत्र के टेकलगुड़ा में हुई मुठभेड़ में 22 जवान शहीद और 35 से ज्यादा घायल हुए थे.इन पर 350 से 400 नक्सलियों ने हमला किया था. छह अप्रैल 2010 को यहां नक्सली हमले में 76 जवान शहीद हो गए थे. ताड़मेटला में जिस जगह यह घटना हुई थी वह दोरनापाल-जगरगुंडा स्टेट हाइवे पर है. 23 मार्च 2020 को यहां नक्सलियों ने डीआरजी जवानों को घेरकर फायरिंग की, जिसमें 17 जवान शहीद हो गए थे. इन शहीद जवानों के पार्थिव देह को बाहर निकालने में तब 20 घंटे लग गए थे. अप्रैल 2021 में बीजापुर के टेकलगुड़ा में जवानों को एंबुश में फंसाया था. इस घटना में 21 जवान शहीद हुए थे.

रायपुर: भौगोलिक बनावट के हिसाब से पहाड़ी इलाका होने के कारण जगरगुंडा नक्सलियों का सेफ जोन माना जाता है. जब भी नक्सली कोई बड़ी वारदात करते हैं तो पहाड़ियों के रास्ते दूसरे राज्य की ओर भाग निकलते है, जिसके बाद उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है. नक्सलियों के खिलाफ चल रहे युद्ध में यह काफी महत्वपूर्ण सड़क है. साथ ही लोगों की सहूलियत और व्यापारिक लाभ वाला भी है. इतना ही महत्वपूर्ण यह नक्सलियों के लिए भी है, क्योंकि जगरगुंडा का हिस्सा बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले का बॉर्डर का हिस्सा है. नक्सलियों के लिए भी यह रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां से वे तीनों जिलों में अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं और बॉर्डर में जाकर छिप जाते है.

सड़कों पर बिछा रखी थी बारूदी सुरंग: एक समय था जब इस क्षेत्र में राज्य परिवहन निगम की बस से आवाजाही होती थी, लेकिन सलवा जुडूम अभियान के दौरान नक्सलियों ने इस क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया. नक्सलियों की इजाजत के बिना यहां एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता. यहां तक कि क्षेत्र में बनाए गए जवानों के कैंप में हेलीकॉप्टर के जरिए राशन पहुंचाया जाता था. क्योंकि यहां की सड़क पर नक्सलियों का कब्जा था, जिस पर उन्होंने बारूदी सुरंग बिछा रखी थी. कब कहां विस्फोट हो जाए कहा नहीं जा सकता था. नक्सली जब चाहे तब किसी बड़ी घटना को अंजाम दे देते थे.

सड़क निर्माण में कई जवान हुए शहीद: इस बीच लगातार सरकार की ओर से नक्सलियों के खिलाफ मुहिम चलाई गई. सर्चिंग ऑपरेशन तेज किया गया. इसकी वजह से कुछ हद तक यहां नक्सली बैकफुट पर रहे. यहां पर जवानों की मदद से सड़क का भी निर्माण कराया गया. इस सड़क को बनाने के दौरान कई बार आईईडी विस्फोट हुए, नक्सलियों ने हमला किया, जिसमें कई जवान शहीद हुए. बावजूद इसके सड़क का काम नहीं रुका. अरनपुर से जगरगुंडा सड़क बनने से कोंडासवली, जगरगुंडा, मिलमपल्ली, कामरगुड़ा, नरसापुरम जैसे दर्जनभर से ज्यादा गांव मुख्य धारा से जुड़ गए. यह बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले को जोड़ने वाली सड़क बन गई. साथ ही इस रास्ते से आंध्रप्रदेश और तेलंगाना जाने का भी रास्ता खुल गया.



इसी क्षेत्र में हुआ था देश का सबसे बड़ा नक्सली हमला: देश में सबसे बड़ा नक्सली हमला भी इसी क्षेत्र में हुआ था, जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे. इस घटना ने प्रदेश को ही नही बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था. अब भी नक्सलियों का आतंक कम होता नजर नहीं आ रहा है. इसका ताजा उदाहरण बुधवार को दंतेवाड़ा में देखने को मिला, जहां आईईडी ब्लास्ट में 10 जवान शहीद हो गए और एक वाहन चालक की भी मौत हो गई. भले ही शासन-प्रशासन नक्सलियों के बैकफुट पर होने के कितने ही दावे कर ले, नक्सली समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं.

15 साल बाद बाय रोड पहुंचे थे तत्कालीन एसपी: 15 साल के बाद साल 2020 में दंतेवाड़ा के तत्कालीन एसपी डॉ अभिषेक पल्लव पहले अफसर थे, जो बाय रोड जगरगुंडा पहुंचे थे. इसके पहले यहां हेलीकॉप्टर के जरिए ही अधिकारी और जवानों की आवाजाही होती थी. इसके बाद 15 जनवरी 2023 को बस सेवा की शुरुआत हुई. सड़क बनने के बाद लोगों की आवाजाही इस रोड पर तेज हो गई. इसके बावजूद नक्सलियों ने यहां से अपना कब्जा नहीं छोड़ा है. आज भी इस क्षेत्र में नक्सलियों का कब्जा बरकरार है.

यह भी पढ़ें- Dantewada Naxal Attack: नक्सल संगठन पीएलजीए ने ली दंतेवाड़ा हमले की जिम्मेदारी


नक्सलियों की तीन एरिया कमेटी से घिरा है यह क्षेत्र: नक्सलियों के दक्षिण बस्तर दरभा डिवीजन के अंतर्गत अरनपुर से जगरगुंडा तक सड़क का हिस्सा आता है. इस डिवीजन के अंतर्गत तीन एरिया कमेटी है जिसमें मलांगीर, जगरगुंडा और केरलापाल शामिल हैं. एक समय नक्सलियों के लिए यह सबसे सेफ जोन माना जाता था. जानकारों की मानें तो नक्सलियों के टॉप लीडर पापाराव, जगदीश, विनोद, देवा, गुंडाधूर से लेकर गणेश उइके इस क्षेत्र में ही तैनात रहे.


जगरगुंडा में अब तक की कुछ बड़ी नक्सली वारदात: हाल ही में फरवरी 2023 माह में सर्चिंग के लिए निकले जवानों की नक्सलियों से मुठभेड़ हुई थी. उस समय 3 जवान शहीद हो गए थे. 3 अप्रैल 2021 को बीजापुर जिले के तर्रेम थाना क्षेत्र के टेकलगुड़ा में हुई मुठभेड़ में 22 जवान शहीद और 35 से ज्यादा घायल हुए थे.इन पर 350 से 400 नक्सलियों ने हमला किया था. छह अप्रैल 2010 को यहां नक्सली हमले में 76 जवान शहीद हो गए थे. ताड़मेटला में जिस जगह यह घटना हुई थी वह दोरनापाल-जगरगुंडा स्टेट हाइवे पर है. 23 मार्च 2020 को यहां नक्सलियों ने डीआरजी जवानों को घेरकर फायरिंग की, जिसमें 17 जवान शहीद हो गए थे. इन शहीद जवानों के पार्थिव देह को बाहर निकालने में तब 20 घंटे लग गए थे. अप्रैल 2021 में बीजापुर के टेकलगुड़ा में जवानों को एंबुश में फंसाया था. इस घटना में 21 जवान शहीद हुए थे.

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