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Indian scientist: भारतीय वैज्ञानिक ने पैकेट बंद खाद्य पदार्थ की ताजगी का पता लगाने वाला किफायती उपकरण बनाया - किफायती उपकरण बनाया

अमेरिका भारतीय वैज्ञानिक ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया है जिससे पैकेट में बंद खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता का पता आसानी से लगाया जा सकता है.

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Published : Mar 20, 2023, 2:29 PM IST

नई दिल्ली: अमेरिका में एक भारतीय अनुसंधानकर्ता ने ऐसा छोटा और कम लागत वाला एसिडिटी सेंसर विकसित किया है जो यह बता सकता है कि भोजन कब खराब हुआ. यह पीएच सेंसर महज दो मिलीमीटर लंबा और 10 मिलीमीटर चौड़ा है जिससे इसे आसानी से मौजूदा खाद्य पैकेट में लगाया जा सकता है. इस नए पीएच सेंसर का मछली, फल, दूध और शहद जैसे खाद्य पदार्थों पर सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है. आम तौर पर भोजन के पीएच स्तर का पता लगाने के लिए तकरीबन एक इंच लंबे उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है जिससे उनका हर पैकेट में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, दुनियाभर में हर साल तकरीबन 1.3 अरब मीट्रिक टन भोजन बर्बाद हो जाता है. अमेरिका के टेक्सास में सदर्न मेथडिस्ट यूनिवर्सिटी में पीएचडी छात्रा खेंगदाउलियु चवांग ने कहा, ‘‘हमने जो पीएच सेंसर विकसित किया है वह रेडियो आवृत्ति की पहचान करने वाला छोटा वायरलेस उपकरण है जैसा कि आपको हवाई अड्डों पर सामान के टैग में लगा मिलता है.

विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक बयान में चवांग ने कहा, ‘‘जब भी हमारे उपकरण के साथ कोई खाद्य पैकेट किसी जांच चौकी जैसे कि नौवहन, साजोसामान केंद्र, बंदरगाहों, या सुपरमार्केट के प्रवेश द्वार से गुजरता है तो उन्हें स्कैन किया जा सकता है और उससे प्राप्त आंकड़ें खाद्य पदार्थ के पीएच स्तर पर नजर रख रहे एक सर्वर को वापस भेजे जा सकते हैं.' चवांग ने कहा कि इससे किसी खाद्य पदार्थ की ताजगी का पता लगाने में मदद मिलती है. यह उपकरण बनाना चवांग के लिए निजी तौर पर भी काफी अहम है जो मूलत: नगालैंड से ताल्लुक रखती हैं जहां आबादी मुख्यत: खेती की उपज पर निर्भर रहती है.

ये भी पढ़ें- Acquisition of Bisleri: टाटा कंज्यूमर ने बिसलेरी के अधिग्रहण के लिए बातचीत की बंद

उन्होंने कहा, 'नगालैंड में भोजन की बर्बादी का मतलब है कि कुपोषित बच्चे और इस नुकसान की भरपाई के लिए बुजुर्गों द्वारा खेतों में अतिरिक्त समय तक काम करना.' चवांग ने कहा कि भोजन की बर्बादी से न केवल खाद्य असुरक्षा बढ़ती है और खाद्य विनिर्माताओं को नुकसान होता है बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी खराब है. भोजन की ताजगी का सीधा संबंध पीएच स्तर से है. उदाहरण के लिए सामान्य से अधिक पीएच स्तर वाला भोजन उसके खराब होने का संकेत है क्योंकि फफूंद और बैक्टीरिया उच्च पीएच वाले वातावरण में पनपते हैं. चवांग ने बताया कि पीएच स्तर किसी पदार्थ या घोल में पाए जाने वाले हाइड्रोजन आयन की सांद्रता से मापा जाता है. विश्वविद्यालय ने बताया कि ‘इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर’ (आईईईई) की एक प्रतियोगिता में चवांग को उनकी नयी खोज के लिए सम्मानित किया गया है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: अमेरिका में एक भारतीय अनुसंधानकर्ता ने ऐसा छोटा और कम लागत वाला एसिडिटी सेंसर विकसित किया है जो यह बता सकता है कि भोजन कब खराब हुआ. यह पीएच सेंसर महज दो मिलीमीटर लंबा और 10 मिलीमीटर चौड़ा है जिससे इसे आसानी से मौजूदा खाद्य पैकेट में लगाया जा सकता है. इस नए पीएच सेंसर का मछली, फल, दूध और शहद जैसे खाद्य पदार्थों पर सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है. आम तौर पर भोजन के पीएच स्तर का पता लगाने के लिए तकरीबन एक इंच लंबे उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है जिससे उनका हर पैकेट में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, दुनियाभर में हर साल तकरीबन 1.3 अरब मीट्रिक टन भोजन बर्बाद हो जाता है. अमेरिका के टेक्सास में सदर्न मेथडिस्ट यूनिवर्सिटी में पीएचडी छात्रा खेंगदाउलियु चवांग ने कहा, ‘‘हमने जो पीएच सेंसर विकसित किया है वह रेडियो आवृत्ति की पहचान करने वाला छोटा वायरलेस उपकरण है जैसा कि आपको हवाई अड्डों पर सामान के टैग में लगा मिलता है.

विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक बयान में चवांग ने कहा, ‘‘जब भी हमारे उपकरण के साथ कोई खाद्य पैकेट किसी जांच चौकी जैसे कि नौवहन, साजोसामान केंद्र, बंदरगाहों, या सुपरमार्केट के प्रवेश द्वार से गुजरता है तो उन्हें स्कैन किया जा सकता है और उससे प्राप्त आंकड़ें खाद्य पदार्थ के पीएच स्तर पर नजर रख रहे एक सर्वर को वापस भेजे जा सकते हैं.' चवांग ने कहा कि इससे किसी खाद्य पदार्थ की ताजगी का पता लगाने में मदद मिलती है. यह उपकरण बनाना चवांग के लिए निजी तौर पर भी काफी अहम है जो मूलत: नगालैंड से ताल्लुक रखती हैं जहां आबादी मुख्यत: खेती की उपज पर निर्भर रहती है.

ये भी पढ़ें- Acquisition of Bisleri: टाटा कंज्यूमर ने बिसलेरी के अधिग्रहण के लिए बातचीत की बंद

उन्होंने कहा, 'नगालैंड में भोजन की बर्बादी का मतलब है कि कुपोषित बच्चे और इस नुकसान की भरपाई के लिए बुजुर्गों द्वारा खेतों में अतिरिक्त समय तक काम करना.' चवांग ने कहा कि भोजन की बर्बादी से न केवल खाद्य असुरक्षा बढ़ती है और खाद्य विनिर्माताओं को नुकसान होता है बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी खराब है. भोजन की ताजगी का सीधा संबंध पीएच स्तर से है. उदाहरण के लिए सामान्य से अधिक पीएच स्तर वाला भोजन उसके खराब होने का संकेत है क्योंकि फफूंद और बैक्टीरिया उच्च पीएच वाले वातावरण में पनपते हैं. चवांग ने बताया कि पीएच स्तर किसी पदार्थ या घोल में पाए जाने वाले हाइड्रोजन आयन की सांद्रता से मापा जाता है. विश्वविद्यालय ने बताया कि ‘इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर’ (आईईईई) की एक प्रतियोगिता में चवांग को उनकी नयी खोज के लिए सम्मानित किया गया है.

(पीटीआई-भाषा)

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