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तियानवेन-1 प्रक्षेपण : मंगल ग्रह की मिट्टी, चट्टान और पानी पर रिसर्च करेगा चीन

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Published : Jul 24, 2020, 1:49 PM IST

Updated : Feb 16, 2021, 7:51 PM IST

चीन ने अपना मंगल मिशन शुरू कर दिया है. इसके साथ ही चीन, मंगल पर यान भेजने वाले देशों की सूची में शामिल हो गया है. इस सूची में अमेरिका, भारत जैसे देश भी शामिल हैं. 'तियानवेन-1' नामक यान मंगल ग्रह का चक्कर लगाने, मंगल पर उतरने और वहां रोवर की चहलकदमी के उद्देश्य से प्रक्षेपित किया गया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यान मंगल ग्रह की मिट्टी, चट्टानों की संरचना, पर्यावरण, वातावरण और जल के बारे में जानकारी एकत्रित करेगा.

लैंड रोवर
लैंड रोवर

बीजिंग: चीन ने मंगल ग्रह के बारे में जानकारी जुटाने के उद्देश्य से हैनान द्वीप के वेनचांग अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण केंद्र से अपना पहला यान प्रक्षेपित किया. चीन की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी (सीएनएसए) के अनुसार ऑर्बिटर और रोवर के साथ गए अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपण के 36 मिनट बाद पृथ्वी-मंगल स्थानांतरण कक्षा में भेज दिया गया.

देश के सबसे बड़े और सर्वाधिक शक्तिशाली रॉकेट लांग मार्च-5 की सहायता से रोबोटिक प्रोब को पृथ्वी-मंगल स्थानांतरण पथ पर भेजा जाएगा जिसके बाद यान मंगल के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव में स्वतः अपनी यात्रा शुरू करेगा.

चीन की सरकारी अंतरिक्ष कंपनी 'चाइना एरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्प' के अनुसार यान सात महीने तक यात्रा करने के बाद मंगल पर पहुंचेगा.

कंपनी ने कहा कि यान के तीन भाग- ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर मंगल की कक्षा में पहुंचने के बाद अलग हो जाएंगे.

ऑर्बिटर लाल ग्रह की कक्षा में चक्कर लगाकर जानकारी जुटाएगा जबकि लैंडर और रोवर मंगल की सतह पर उतरकर वैज्ञानिक अनुसंधान करेंगे.

वीडियो

भारत, अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ के बाद चीन भी मंगल पर यान भेजने वाला अगला देश बनना चाहता है.

पिछली बार चीन ने 2011 में रूस के साथ मिलकर मंगल ग्रह पर यान भेजने की असफल कोशिश की थी. यह मिशन प्रक्षेपण के कुछ देर बाद ही विफल हो गया था.

भारत ने 2014 में अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचकर इतिहास रच दिया था. भारत को छोड़कर कोई अन्य देश अपने पहले ही प्रयास में लाल ग्रह पर पहुंचने में सफल नहीं हो पाया.

नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, मिशन के मुख्य अभियंता वान वेक्सिंग ने कहा कि तियानवेन -1 फरवरी में मंगल के चारों ओर कक्षा में घूमेगा और यूटोपिया प्लैनिटिया पर एक लैंडिंग साइट की तलाश करेगा. यूटोपिया प्लैनिटिया वही स्थान है जहां नासा ने संभावित बर्फ का पता लगाया है.

लेख के अनुसार अप्रैल या मई में लैंडिंग का प्रयास किया जाएगा. यदि सब कुछ ठीक हो जाता है, तो 240 किलोग्राम वजनी और गोल्फ कार्ट के आकार का रोवर तीन महीनों तक सक्रिय रहेगा. यह रोवर सौर ऊर्जा से संचालित है. इसके अलावा ऑर्बिटर के दो साल तक काम करने का अनुमान है.

इसका आकार अमेरिका की हल्किंग कार की तुलना में छोटा है और यह चीन के 2013 और 2019 में चंद्रमा पर भेजे गए रोवर्स का लगभग दुगुना है. यह कम से कम दो वर्ष तक दृढ़ता से काम कर सकता है.

यह मंगल पर सेटेलाइट भेजने का समय है. जो हर 26 महीने में आता है. इस समय पृथ्वी और मंगल सबसे निकट होते हैं -

संयुक्त अरब अमीरात अंतरिक्ष यान अमल,, जो मंगल की कक्षा के उड़ान भर चुका हालांकि अभी लौंड नहीं हुआ है. यह अरब दुनिया का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है.

हमने इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं देखा है, जब हमने तीन अद्वितीय मिशन में देखा है. इनमें से प्रत्येक एक विज्ञान और इंजीनियरिंग चमत्कार है.

स्पेस फाउंडेशंस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थॉमस जेलिबोर ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक ऑनलाइन पैनल चर्चा में कहा था कि एक लंबा मार्च -5 रॉकेट, जिसको भारी आकार के कारण फैट 5 उपनाम दिया गया, वह साल के शुरू में कोरोना महमारी के कारण लॉन्च करने में विफल रहा.

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन एक उपग्रह-आधारित वैश्विक नेविगेशन प्रणाली बनाने में अमेरिका, रूस और यूरोप के साथ साथ स्पेश में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहा है और अमेरिकी नेतृत्व से आगे निकलने की कोशिश नहीं कर रहा है.

बीजिंग: चीन ने मंगल ग्रह के बारे में जानकारी जुटाने के उद्देश्य से हैनान द्वीप के वेनचांग अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण केंद्र से अपना पहला यान प्रक्षेपित किया. चीन की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी (सीएनएसए) के अनुसार ऑर्बिटर और रोवर के साथ गए अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपण के 36 मिनट बाद पृथ्वी-मंगल स्थानांतरण कक्षा में भेज दिया गया.

देश के सबसे बड़े और सर्वाधिक शक्तिशाली रॉकेट लांग मार्च-5 की सहायता से रोबोटिक प्रोब को पृथ्वी-मंगल स्थानांतरण पथ पर भेजा जाएगा जिसके बाद यान मंगल के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव में स्वतः अपनी यात्रा शुरू करेगा.

चीन की सरकारी अंतरिक्ष कंपनी 'चाइना एरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्प' के अनुसार यान सात महीने तक यात्रा करने के बाद मंगल पर पहुंचेगा.

कंपनी ने कहा कि यान के तीन भाग- ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर मंगल की कक्षा में पहुंचने के बाद अलग हो जाएंगे.

ऑर्बिटर लाल ग्रह की कक्षा में चक्कर लगाकर जानकारी जुटाएगा जबकि लैंडर और रोवर मंगल की सतह पर उतरकर वैज्ञानिक अनुसंधान करेंगे.

वीडियो

भारत, अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ के बाद चीन भी मंगल पर यान भेजने वाला अगला देश बनना चाहता है.

पिछली बार चीन ने 2011 में रूस के साथ मिलकर मंगल ग्रह पर यान भेजने की असफल कोशिश की थी. यह मिशन प्रक्षेपण के कुछ देर बाद ही विफल हो गया था.

भारत ने 2014 में अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचकर इतिहास रच दिया था. भारत को छोड़कर कोई अन्य देश अपने पहले ही प्रयास में लाल ग्रह पर पहुंचने में सफल नहीं हो पाया.

नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, मिशन के मुख्य अभियंता वान वेक्सिंग ने कहा कि तियानवेन -1 फरवरी में मंगल के चारों ओर कक्षा में घूमेगा और यूटोपिया प्लैनिटिया पर एक लैंडिंग साइट की तलाश करेगा. यूटोपिया प्लैनिटिया वही स्थान है जहां नासा ने संभावित बर्फ का पता लगाया है.

लेख के अनुसार अप्रैल या मई में लैंडिंग का प्रयास किया जाएगा. यदि सब कुछ ठीक हो जाता है, तो 240 किलोग्राम वजनी और गोल्फ कार्ट के आकार का रोवर तीन महीनों तक सक्रिय रहेगा. यह रोवर सौर ऊर्जा से संचालित है. इसके अलावा ऑर्बिटर के दो साल तक काम करने का अनुमान है.

इसका आकार अमेरिका की हल्किंग कार की तुलना में छोटा है और यह चीन के 2013 और 2019 में चंद्रमा पर भेजे गए रोवर्स का लगभग दुगुना है. यह कम से कम दो वर्ष तक दृढ़ता से काम कर सकता है.

यह मंगल पर सेटेलाइट भेजने का समय है. जो हर 26 महीने में आता है. इस समय पृथ्वी और मंगल सबसे निकट होते हैं -

संयुक्त अरब अमीरात अंतरिक्ष यान अमल,, जो मंगल की कक्षा के उड़ान भर चुका हालांकि अभी लौंड नहीं हुआ है. यह अरब दुनिया का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है.

हमने इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं देखा है, जब हमने तीन अद्वितीय मिशन में देखा है. इनमें से प्रत्येक एक विज्ञान और इंजीनियरिंग चमत्कार है.

स्पेस फाउंडेशंस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थॉमस जेलिबोर ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक ऑनलाइन पैनल चर्चा में कहा था कि एक लंबा मार्च -5 रॉकेट, जिसको भारी आकार के कारण फैट 5 उपनाम दिया गया, वह साल के शुरू में कोरोना महमारी के कारण लॉन्च करने में विफल रहा.

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन एक उपग्रह-आधारित वैश्विक नेविगेशन प्रणाली बनाने में अमेरिका, रूस और यूरोप के साथ साथ स्पेश में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहा है और अमेरिकी नेतृत्व से आगे निकलने की कोशिश नहीं कर रहा है.

Last Updated : Feb 16, 2021, 7:51 PM IST
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