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Digital Data Protection Bill: इसे जल्द से जल्द क्यों लागू किया जाना चाहिए ?

कम से कम 157 देशों ने साइबरस्पेस में अपने नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाए हैं. लगभग 80 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं वाले भारत में इस तरह के कानून का नहीं होना साइबर अपराधियों के लिए एक वरदान है.

Digital Data Protection Bill
डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक
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Published : Jul 11, 2023, 6:58 PM IST

हैदराबाद : लोगों के पते, फोन नंबर, आधार नंबर, पैन कार्ड, बैंक खाते का विवरण, वेतन और आयकर भुगतान सभी आज वस्तुएं बन गए हैं. हाल के वर्षों में साइबर अपराधियों द्वारा लोगों की संवेदनशील जानकारी चुराने और उससे मुनाफा कमाने की कई घटनाएं सामने आई हैं. इनके द्वारा लगातार व्यक्तिगत गोपनीयता का अतिक्रमण किया जाता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा है.

देश में वर्तमान में व्यक्तियों के व्यक्तिगत डिजिटल डेटा को संरक्षित करके उनकी गरिमा बनाए रखने के लिए सक्षम कानून का अभाव है. हालांकि व्यक्तिगत सूचना संरक्षण अधिनियम के मसौदे पर बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे पांच साल से चर्चा चल रही है. केंद्र ने नवीनतम 'डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन (डीडीपी) विधेयक' का मसौदा तैयार किया था और पिछले साल इस पर सुझाव और टिप्पणियां आमंत्रित की थीं. हाल ही में कैबिनेट द्वारा बिल को मंजूरी दिए जाने के साथ, इसे आगामी मानसून सत्र में संसद द्वारा पारित किया जा सकता है. मसौदा कानून के मुताबिक, डेटा चोरी रोकने में विफल रहने वाली कंपनियों पर 250 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकारी संगठनों को छूट देने वाले नियमों को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है. वहीं चिंताएं व्यक्त की गई हैं कि 'डीडीपी' विधेयक सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर कर सकता है. विवादों को सुलझाने के लिए जिम्मेदार 'डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड' की स्वतंत्रता को लेकर भी संदेह है. रिपोर्टों से पता चलता है कि केंद्र डीडीपी विधेयक को लेकर उठाई चिंताओं को दूर किए बिना पारित कर कानून का रूप देने की तैयारी कर रहा है. हालांकि इन चिंताओं को कई लोगों द्वारा साझा किया जाता है. हाल ही में हुए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के मुताबिक डेटा चोरी से प्रभावित देशों में भारत दूसरे स्थान पर है.

वहीं घरेलू स्तर पर, स्वास्थ्य सेवा और खुदरा क्षेत्र साइबर अपराधियों से सबसे अधिक प्रभावित हैं. इसके बाद, वित्तीय, शैक्षिक, पेशेवर-तकनीकी और सार्वजनिक प्रशासन क्षेत्रों के संगठन और कार्यालय डिजिटल हमलों के प्रति सबसे अधिक असुरक्षित हैं. पिछले साल बड़ी संख्या में मरीजों का इलाज करने वाले दिल्ली के एम्स को निशाना बनाकर की गई हैकिंग की घटना ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी. 2022 में तीन करोड़ रेल यात्रियों का विवरण डार्क वेब पर दिखाई दिया. वहीं मार्च में, उत्तर प्रदेश का एक गिरोह लगभग 17 करोड़ लोगों की जानकारी बेचते हुए पकड़ा गया था. कुछ दिनों बाद, तेलंगाना पुलिस ने लगभग 67 करोड़ भारतीयों की निजी जानकारी बेचने वाले साइबर चोरों के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया थी.

'डिजिटल इंडिया' के लक्ष्यों को पूरी तरह से साकार करने के लिए साइबर सुरक्षा में लोगों का विश्वास बढ़ाना होगा. उन्हें आश्वस्त किया जाना चाहिए कि विभिन्न उद्देश्यों के लिए वे जो जानकारी ऑनलाइन साझा करते हैं उसका दुरुपयोग नहीं किया जाता है. इस संबंध में, 157 देशों ने साइबरस्पेस में अपने नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाए हैं. लगभग 80 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं वाले भारत में इस तरह के कानून की अनुपस्थिति साइबर अपराधियों के लिए एक वरदान है. वहीं उपयोगकर्ताओं के विवरण को अंधाधुंध तरीके से एकत्र करने वाले विभिन्न ऐप और वेबसाइट उन्हें सुरक्षित रखने में विफल हो रहे हैं. उन्हें जवाबदेह बनाने और लोगों की वित्तीय और व्यक्तिगत सुरक्षा की रक्षा के लिए, डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम को जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए. सार्वजनिक हित और वैध सरकारी जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है अन्यथा, प्रस्तावित कानून की भावना कमजोर हो जाएगी.

(संपादकीय का अनुवादित संस्करण ईनाडु में पहले प्रकाशित)

हैदराबाद : लोगों के पते, फोन नंबर, आधार नंबर, पैन कार्ड, बैंक खाते का विवरण, वेतन और आयकर भुगतान सभी आज वस्तुएं बन गए हैं. हाल के वर्षों में साइबर अपराधियों द्वारा लोगों की संवेदनशील जानकारी चुराने और उससे मुनाफा कमाने की कई घटनाएं सामने आई हैं. इनके द्वारा लगातार व्यक्तिगत गोपनीयता का अतिक्रमण किया जाता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा है.

देश में वर्तमान में व्यक्तियों के व्यक्तिगत डिजिटल डेटा को संरक्षित करके उनकी गरिमा बनाए रखने के लिए सक्षम कानून का अभाव है. हालांकि व्यक्तिगत सूचना संरक्षण अधिनियम के मसौदे पर बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे पांच साल से चर्चा चल रही है. केंद्र ने नवीनतम 'डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन (डीडीपी) विधेयक' का मसौदा तैयार किया था और पिछले साल इस पर सुझाव और टिप्पणियां आमंत्रित की थीं. हाल ही में कैबिनेट द्वारा बिल को मंजूरी दिए जाने के साथ, इसे आगामी मानसून सत्र में संसद द्वारा पारित किया जा सकता है. मसौदा कानून के मुताबिक, डेटा चोरी रोकने में विफल रहने वाली कंपनियों पर 250 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकारी संगठनों को छूट देने वाले नियमों को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है. वहीं चिंताएं व्यक्त की गई हैं कि 'डीडीपी' विधेयक सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर कर सकता है. विवादों को सुलझाने के लिए जिम्मेदार 'डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड' की स्वतंत्रता को लेकर भी संदेह है. रिपोर्टों से पता चलता है कि केंद्र डीडीपी विधेयक को लेकर उठाई चिंताओं को दूर किए बिना पारित कर कानून का रूप देने की तैयारी कर रहा है. हालांकि इन चिंताओं को कई लोगों द्वारा साझा किया जाता है. हाल ही में हुए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के मुताबिक डेटा चोरी से प्रभावित देशों में भारत दूसरे स्थान पर है.

वहीं घरेलू स्तर पर, स्वास्थ्य सेवा और खुदरा क्षेत्र साइबर अपराधियों से सबसे अधिक प्रभावित हैं. इसके बाद, वित्तीय, शैक्षिक, पेशेवर-तकनीकी और सार्वजनिक प्रशासन क्षेत्रों के संगठन और कार्यालय डिजिटल हमलों के प्रति सबसे अधिक असुरक्षित हैं. पिछले साल बड़ी संख्या में मरीजों का इलाज करने वाले दिल्ली के एम्स को निशाना बनाकर की गई हैकिंग की घटना ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी. 2022 में तीन करोड़ रेल यात्रियों का विवरण डार्क वेब पर दिखाई दिया. वहीं मार्च में, उत्तर प्रदेश का एक गिरोह लगभग 17 करोड़ लोगों की जानकारी बेचते हुए पकड़ा गया था. कुछ दिनों बाद, तेलंगाना पुलिस ने लगभग 67 करोड़ भारतीयों की निजी जानकारी बेचने वाले साइबर चोरों के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया थी.

'डिजिटल इंडिया' के लक्ष्यों को पूरी तरह से साकार करने के लिए साइबर सुरक्षा में लोगों का विश्वास बढ़ाना होगा. उन्हें आश्वस्त किया जाना चाहिए कि विभिन्न उद्देश्यों के लिए वे जो जानकारी ऑनलाइन साझा करते हैं उसका दुरुपयोग नहीं किया जाता है. इस संबंध में, 157 देशों ने साइबरस्पेस में अपने नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाए हैं. लगभग 80 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं वाले भारत में इस तरह के कानून की अनुपस्थिति साइबर अपराधियों के लिए एक वरदान है. वहीं उपयोगकर्ताओं के विवरण को अंधाधुंध तरीके से एकत्र करने वाले विभिन्न ऐप और वेबसाइट उन्हें सुरक्षित रखने में विफल हो रहे हैं. उन्हें जवाबदेह बनाने और लोगों की वित्तीय और व्यक्तिगत सुरक्षा की रक्षा के लिए, डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम को जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए. सार्वजनिक हित और वैध सरकारी जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है अन्यथा, प्रस्तावित कानून की भावना कमजोर हो जाएगी.

(संपादकीय का अनुवादित संस्करण ईनाडु में पहले प्रकाशित)

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