न्यूयॉर्क : वैज्ञानिकों ने पुरुष के स्पर्म (शुक्राणु) की उम्र का (age of male sperm) पता लगाने की तकनीक खोजने में सफलता हासिल की है. इस रिसर्च के बाद इस बात का पता आसानी से लगाया जा सकेगा कि किसी पुरुष के स्पर्म से महिला के गर्भधारण करने की कितनी संभावना या क्षमता है. इस संबंध में वेन स्टेट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है. इस अध्ययन के मुताबिक शुक्राणु की उम्र जैविक आधार पर तय होती है.
अध्ययन के मुताबिक युवा वर्ग के स्पर्म के मुकाबले उम्रदराज लोगों के स्पर्म कमजोर पाए गए. युवा शुक्राणु एपिजेनेटिक उम्र बढ़ने की श्रेणियों की तुलना में वृद्ध पुरुष भागीदारों के साथ जोड़ों के लिए 12 महीने के बाद गर्भावस्था की संभावना 17 प्रतिशत तक कम पाई गई. विश्वविद्यालय के शोधकर्ता जे रिचर्ड पिल्सनर के मुताबिक शुक्राणु की कालानुक्रमिक उम्र (chronological age) इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह गर्भावस्था का प्रयास करने वाले जोड़ों के बीच प्रजनन क्षमता और सफलता का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है. हालांकि शुक्राणु की कालानुक्रमिक आयु आनुवंशिक आधार पर तय होने के साथ ही कई बाहरी चीजों पर भी निर्भर करती है. इस पर पर्यावरणीय परिस्थितियों का भी असर पड़ता है. इस प्रकार यह कोशिकाओं की 'सच्ची' जैविक आयु के एक प्रॉक्सी उपाय के रूप में कार्य करती है.
विश्वविद्यालय के शोधकर्ता जे. रिचर्ड पिल्सनर ने कहा, 'विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों का उपयोग करते हुए वीर्य गुणवत्ता परिणामों का उपयोग दशकों से पुरुष बांझपन का आकलन करने के लिए किया जाता रहा है, लेकिन वे प्रजनन परिणामों के बारे में सही जानकारी देने में सक्षम नहीं हैं. इस प्रकार यह खोज शुक्राणु की जैविक उम्र का पता लगाने, प्रजनन क्षमता की सफलता का आंकलन करने में काफी मददगार साबित होगी. विशेषकर उन जोड़ों के लिए जिनको संतान उत्पन्न करने में दिक्कते आ रही हैं.'
379 जोड़ों पर किया अध्ययन : मानव प्रजनन पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुताबिक ये अध्ययन 379 जोड़ों पर किया गया, जिन्होंने गर्भधारण करने के लिए गर्भनिरोधक उपाय का इस्तेमाल नहीं किया था. शोध के नतीजों ने संकेत दिया कि उच्च शुक्राणु एपिजेनेटिक उम्र बढ़ने का संबंध उन जोड़ों में गर्भवती होने के लिए लंबे समय से है, जिन्हें प्रजनन उपचार से सहायता नहीं मिली है.
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(IANS)