लंदन : ग्रेटा थनबर्ग भले ही आज जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक मुहिम में एक प्रमुख चेहरा बन गई हों, लेकिन 16 वर्षीय स्वीडिश किशोरी को तीन-चार साल अवसाद का सामना करना पड़ा और पर्यावरण के प्रति अपनी सक्रियता के लिए स्कूल छोड़ने में उसे अपने पिता का कोई समर्थन नहीं मिला था.
हालांकि,ग्रेटा के इस साहसिक फैसले ने पर्यावरण के मुद्दे पर जागरूकता पैदा करने के उनके अभियान में लाखों लोगों को शामिल कर दिया.
ग्रेटा के पिता स्वांते थनबर्ग ने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि उन्हें लगा था कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मुहिम में अग्रिम पंक्ति से अभियान छेड़ना उनकी बेटी के लिए ‘खराब आइडिया’ हो सकता है.
उन्होंने कहा कि वह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी बेटी की मुहिम को लेकर उसके स्कूल छोड़ने के कदम के समर्थक नहीं रहे थे.
इसी प्रसारण के दौरान प्रसारणर्ता डेविड एटेनबोरो ने ग्रेटा से कहा कि उसने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ दुनिया में अलख जगा दी और वह उपलब्धि हासिल की जिसे हासिल करने में हममें से कई लोग 20 बरसों से नाकाम रहे थे.
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ग्रेटा को इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया. ग्रेटा के पिता ने कहा कि उनकी बेटी ने फिर से स्कूल जाना शुरू करने से पहले तीन-चार साल अवसाद का सामना किया.
उसके पिता ने बताया, 'उसने बात करना बंद कर दिया था...यह एक माता-पिता के लिए बहुत बुरा समय था.' उसके पिता ने उसके स्वस्थ होने के लिए स्वीडन स्थित अपने घर में ग्रेटा और उसकी छोटी बहन के साथ अधिक वक्त बिताया.
ओपेरा गायिका एवं ग्रेटा की मां मेलेना एर्नमैन ने अपना कांट्रैक्ट रद्द कर दिया ताकि पूरा परिवार एक साथ समय बिता सके. अगले कुछ साल तक उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर चर्चा की और शोध किए.
ग्रेटा के पिता ने कहा कि अपनी सक्रियता के चलते ग्रेटा बहुत खुश रहने लगी और उसके जीवन में बदलाव आ गया. गौरतलब है कि टाइम मैग्जीन ने इस साल की शुरुआत में ग्रेटा को 2019 क पर्सन ऑफ द ईयर नामित किया था.