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चीन के दखल से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई बढ़ी - काराकोरम पर्वत

चीन का दखल बढ़ने के साथ नेपाल में सत्तारूढ़ दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई बढ़ती जा रही है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली शर्मा को पार्टी के भीतर जारी संघर्ष के कारण अगले कुछ हफ्तों में इस्तीफा देना पड़ सकता है. पढ़ें हमारी विशेष रिपोर्ट...

पुष्प कमल दहल व केपी ओली
पुष्प कमल दहल व केपी ओली
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Published : Jul 8, 2020, 10:49 PM IST

Updated : Jul 9, 2020, 12:03 AM IST

काठमांडू : भारत के साथ सीमा विवाद और चीन का प्रभाव बढ़ने के साथ नेपाल में सत्तारूढ़ दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई बढ़ती जा रही है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली शर्मा को पार्टी के भीतर जारी संघर्ष के कारण अगले कुछ हफ्तों में इस्तीफा देना पड़ सकता है.

प्रधानमंत्री केपी ओली बुधवार को अपने प्रतिद्वंद्वी और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख पुष्प कमल दहल से मिलने वाले थे, लेकिन यह बैठक टल गई है. अब शुक्रवार को यह बैठक होगी, जिसमें केपी ओली से उनकी कार्य करने की शैली और भारत विरोध बयान के कारण इस्तीफा मांगा जा सका है.

केपी ओली की पार्टी के भीतर परेशानियां उस समय बढ़ गईं, जब भारत ने नेपाल द्वारा नए राजनीतिक नक्शे में भारतीय क्षेत्र कालापानी, लेपुलेक और लिम्पियाधुरा को शामिल करने पर कड़ा ऐतराज जताया. भारत और नेपाल के संबंध पिछले सप्ताह और खराब हो गए थे, जब प्रधानमंत्री केपी ओली ने भारत पर उन्हें पद से हटाने की कोशिश करने का आरोप लगा दिया था.

हाल के महीनों में नेपाल में चीन का दखल बढ़ा है, इससे पहले भारत की नेपाल में मजबूत पकड़ थी. नेपाल में हवाई अड्डों, राजमार्गों और जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में चीन के निवेश के अलावा, चीनी राजनयिकों ने नेपाली राजनीतिक नेताओं के साथ संबंध बढ़ाने पर काम किया है. इसी हफ्ते नेपाल में चीन के राजदूत ने कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ शीर्ष नेताओं के साथ बैठकें की थीं.

भारत और चीन द्वारा नेपाल में खुद को मजबूत करना क्षेत्रीय शक्ति संघर्ष का हिस्सा है, क्योंकि दोनों एशियाई महाशक्तियां काराकोरम पर्वत में विवादित सीमा क्षेत्र में भी खेल रही हैं. जहां इसी हफ्ते दोनों देशों के राजनयिकों और सैन्य कमांडरों ने गतिरोध कम करने के लिए कार्य किया.

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15/16 जून की रात चीनी सेना के साथ संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जो बीते 45 वर्षों में भारत और चीन के बीच सबसे भीषण संघर्ष था.

विश्लेषकों का कहना है कि चीन अपनी विशाल अंतरमहाद्वीपीय परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए नेपाल को मुख्य साझेदार रूप में देखता है, जो पुराने सिल्क रोड रूटों का निर्माण करता है जो कभी चीन को पश्चिम से जोड़ता था.

नेपाल के अखबार 'नागरिक' के संपादक गुरनज लुइतल (Guranaj Luitel) का कहना है कि चूंकि नेपाल एक रणनीतिक भौगोलिक स्थिति में है, इसलिए इन दोनों देशों (भारत व चीन) को लगता है कि नेपाल की राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि नेपाल की वर्तमान सरकार का चीन के प्रति झुकाव अधिक दिख रहा है और इसकी वजह से ऐसा लगता है कि भारत की भूमिका धीरे-धीरे कम रही है.

भारत 2017 में कम्युनिस्ट सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही नेपाल से सावधान है, लेकिन अधिकारी नेपाल के आंतरिक मामलों में चीनी दखल की बात से इनकार करते रहे हैं.

पढ़ें- भारत-चीन के बीच विश्वास बहाली के लिए 'पुलबैक' प्रक्रिया आवश्यक

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य बिरोद खतीवाड़ा का कहना है कि नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार होने के कारण भारतीय नेतृत्व को लगता है कि नेपाल चीनी सरकार के इशारे पर कार्य करता है, जिसमें कोई सच्चाई नहीं है.

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने 2017 के संसदीय चुनाव में बहुमत हासिल किया था और केपी ओली को प्रधानमंत्री चुना गया था. नेपाल में संसदीय चुनाव से ठीक पहले ओली और दहल के नेतृत्व वाली दो कम्युनिस्ट पार्टियों का विलय हुआ था, जो एक मजबूत राजनीतिक ताकत बनकर उभरा था.

ऐसा माना जा रहा था कि ओली और दहल प्रधानमंत्री के कार्यकाल को साझा करेंगे, जिसमें प्रत्येक पदभार ग्रहण करेंगे. लेकिन सत्ता संभालने के ढाई साल बाद भी ओली ने पद छोड़ने के कोई संकेत नहीं दिए हैं.

खतीवाड़ा ने कहा कि नेतृत्व या सदस्यों के बीच मतभेद और विवाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार यह राष्ट्रीय संकट में बदल गया है क्योंकि हम सबसे बड़ी पार्टी हैं और हम सरकार में हैं.

कोरोनो वायरस महामारी से निपटने के लिए नेपाल सरकार की योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बावजूद, प्रधानमंत्री केपी ओली पार्टी के भीतर और जनता में एक मजबूत व लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. भारतीय क्षेत्र को शामिल करने वाले नए नक्शे को पेश करने के बाद से ओली की लोकप्रियता और बढ़ गई है.

काठमांडू : भारत के साथ सीमा विवाद और चीन का प्रभाव बढ़ने के साथ नेपाल में सत्तारूढ़ दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई बढ़ती जा रही है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली शर्मा को पार्टी के भीतर जारी संघर्ष के कारण अगले कुछ हफ्तों में इस्तीफा देना पड़ सकता है.

प्रधानमंत्री केपी ओली बुधवार को अपने प्रतिद्वंद्वी और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख पुष्प कमल दहल से मिलने वाले थे, लेकिन यह बैठक टल गई है. अब शुक्रवार को यह बैठक होगी, जिसमें केपी ओली से उनकी कार्य करने की शैली और भारत विरोध बयान के कारण इस्तीफा मांगा जा सका है.

केपी ओली की पार्टी के भीतर परेशानियां उस समय बढ़ गईं, जब भारत ने नेपाल द्वारा नए राजनीतिक नक्शे में भारतीय क्षेत्र कालापानी, लेपुलेक और लिम्पियाधुरा को शामिल करने पर कड़ा ऐतराज जताया. भारत और नेपाल के संबंध पिछले सप्ताह और खराब हो गए थे, जब प्रधानमंत्री केपी ओली ने भारत पर उन्हें पद से हटाने की कोशिश करने का आरोप लगा दिया था.

हाल के महीनों में नेपाल में चीन का दखल बढ़ा है, इससे पहले भारत की नेपाल में मजबूत पकड़ थी. नेपाल में हवाई अड्डों, राजमार्गों और जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में चीन के निवेश के अलावा, चीनी राजनयिकों ने नेपाली राजनीतिक नेताओं के साथ संबंध बढ़ाने पर काम किया है. इसी हफ्ते नेपाल में चीन के राजदूत ने कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ शीर्ष नेताओं के साथ बैठकें की थीं.

भारत और चीन द्वारा नेपाल में खुद को मजबूत करना क्षेत्रीय शक्ति संघर्ष का हिस्सा है, क्योंकि दोनों एशियाई महाशक्तियां काराकोरम पर्वत में विवादित सीमा क्षेत्र में भी खेल रही हैं. जहां इसी हफ्ते दोनों देशों के राजनयिकों और सैन्य कमांडरों ने गतिरोध कम करने के लिए कार्य किया.

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15/16 जून की रात चीनी सेना के साथ संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जो बीते 45 वर्षों में भारत और चीन के बीच सबसे भीषण संघर्ष था.

विश्लेषकों का कहना है कि चीन अपनी विशाल अंतरमहाद्वीपीय परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए नेपाल को मुख्य साझेदार रूप में देखता है, जो पुराने सिल्क रोड रूटों का निर्माण करता है जो कभी चीन को पश्चिम से जोड़ता था.

नेपाल के अखबार 'नागरिक' के संपादक गुरनज लुइतल (Guranaj Luitel) का कहना है कि चूंकि नेपाल एक रणनीतिक भौगोलिक स्थिति में है, इसलिए इन दोनों देशों (भारत व चीन) को लगता है कि नेपाल की राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि नेपाल की वर्तमान सरकार का चीन के प्रति झुकाव अधिक दिख रहा है और इसकी वजह से ऐसा लगता है कि भारत की भूमिका धीरे-धीरे कम रही है.

भारत 2017 में कम्युनिस्ट सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही नेपाल से सावधान है, लेकिन अधिकारी नेपाल के आंतरिक मामलों में चीनी दखल की बात से इनकार करते रहे हैं.

पढ़ें- भारत-चीन के बीच विश्वास बहाली के लिए 'पुलबैक' प्रक्रिया आवश्यक

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य बिरोद खतीवाड़ा का कहना है कि नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार होने के कारण भारतीय नेतृत्व को लगता है कि नेपाल चीनी सरकार के इशारे पर कार्य करता है, जिसमें कोई सच्चाई नहीं है.

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने 2017 के संसदीय चुनाव में बहुमत हासिल किया था और केपी ओली को प्रधानमंत्री चुना गया था. नेपाल में संसदीय चुनाव से ठीक पहले ओली और दहल के नेतृत्व वाली दो कम्युनिस्ट पार्टियों का विलय हुआ था, जो एक मजबूत राजनीतिक ताकत बनकर उभरा था.

ऐसा माना जा रहा था कि ओली और दहल प्रधानमंत्री के कार्यकाल को साझा करेंगे, जिसमें प्रत्येक पदभार ग्रहण करेंगे. लेकिन सत्ता संभालने के ढाई साल बाद भी ओली ने पद छोड़ने के कोई संकेत नहीं दिए हैं.

खतीवाड़ा ने कहा कि नेतृत्व या सदस्यों के बीच मतभेद और विवाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार यह राष्ट्रीय संकट में बदल गया है क्योंकि हम सबसे बड़ी पार्टी हैं और हम सरकार में हैं.

कोरोनो वायरस महामारी से निपटने के लिए नेपाल सरकार की योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बावजूद, प्रधानमंत्री केपी ओली पार्टी के भीतर और जनता में एक मजबूत व लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. भारतीय क्षेत्र को शामिल करने वाले नए नक्शे को पेश करने के बाद से ओली की लोकप्रियता और बढ़ गई है.

Last Updated : Jul 9, 2020, 12:03 AM IST
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