काठमांडू : नेपाल के उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के पद से इस्तीफा देने से इनकार करने पर एक न्यायिक संकट पैदा हो गया है. दरअसल, उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने एक करीबी रिश्तेदार को शेर बहादुर देउबा नीत मंत्रिमंडल का सदस्य बनाने में मदद की.
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के एक वर्ग ने प्रधान न्यायाधीश राणा के इस्तीफे की मांग की है, जबकि कुछ अधिवक्ताओं ने शीर्ष न्यायालय का बहिष्कार करने का फैसला किया है. शीर्ष न्यायालय के 15 न्यायाधीशों के साथ एक बैठक के दौरान राणा ने कहा कि वह महज इसलिए इस्तीफा नहीं देंगे कि शीर्ष पद से उनके इस्तीफे के लिए सड़कों पर और मीडिया में आवाज उठ रही है.
न्यायालय के प्रवक्ता बाबूराम दहल ने कहा, 'राणा ने न्यायाधीशों से कहा है कि वह इसके बजाय संवैधानिक कार्यवाही का सामना करेंगे लेकिन पद से इस्तीफा नहीं देंगे.' अधिवक्ताओं के एक वर्ग द्वारा शीर्ष न्यायालय का बहिष्कार करने का फैसला किये जाने और न्यायाधीशों के बैठकों में व्यस्त रहने के चलते अदालती कामकाज प्रभावित हुआ है, जबकि हजारों मामले लंबित हैं.
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नेपाल बार एसोसिएशन ने राणा के स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं देने पर राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है. हालांकि, दहल ने कहा कि कुछ न्यायाधीशों ने बुधवार से अपने काम पर लौटना शुरू कर दिया है. संवैधानिक प्रावधान के मुताबिक, प्रतिनिधि सभा के 25 प्रतिशत सांसद प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला सकते हैं और उन्हें पद से हटाने के लिए सांसदों के दो तिहाई वोट की जरूरत होगी.
(पीटीआई भाषा)