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भारत बांग्लादेश से सीमा विवाद सुलझा सकता है, तो नेपाल से क्यों नहीं : विदेश मंत्री ग्यावली

भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर उभरते मतभेदों पर नेपाल के विदेशमंत्री ने कहा कि अगर भारत बांग्लादेश के साथ विवाद सुलझा सकता है तो नेपाल के साथ क्यों नहीं. दरअसल भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पुनर्गठित किए जाने के बाद नेपाल का कहना है कि लद्दाख के कुछ इलाके नेपाल का हिस्सा हैं, जिनको भारत में दिखाया गया है. पढ़ें पूरी खबर...

petition against national security act
फाइल फोटो
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Published : Jan 24, 2020, 5:29 PM IST

Updated : Feb 18, 2020, 6:22 AM IST

काठमांडू : नेपाल के विदेशमंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने शुक्रवार को कहा कि अगर भारत बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद सुलझा सकता है तो उनके देश के साथ क्यों नहीं. उन्होंने यह टिप्पणी दोनों पड़ोसियों के बीच सीमा को लेकर उभरे मतभेद के संदर्भ में कही.

उल्लेखनीय है कि भारत ने नए केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के गठन के बाद नवंबर में नया मानचित्र जारी किया. इसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा और गिलगित बाल्तिस्तान को लद्दाख का हिस्सा दिखाया गया.

इस मानचित्र के सामने आने बाद नेपाल ने दावा किया कि लिम्पियाधुरा, लुपुलेक और कालापानी इलाके को भारत में दिखाया गया है जबकि वह नेपाल का हिस्सा है.

वहीं, भारत ने कहा कि नया मानचित्र बिल्कुल सही है और उसमें देश के संप्रभु क्षेत्र को दिखाया गया है एवं नेपाल के साथ सीमा की समीक्षा का सवाल ही नहीं है.

यहां विदेश मंत्रालय में 'सागरमाथा संबाद' के बारे में जानकारी देने के लिए बुलाए गए पत्रकार सम्मेलन में भारतीय पत्रकारों के समूह से बातचीत में नेपाल के विदेशमंत्री ने कहा, 'अगर भारत बांग्लादेश के साथ जमीनी सीमा के विवाद को सुलझा सकता है तो नेपाल के साथ क्यों नहीं?'

उन्होंने कहा, 'अनसुलझे मुद्दे का बोझ लेकर आगे नहीं बढ़ना चाहिए क्योंकि दोनों देशों और उनके नेताओं के बीच समझ का स्तर सबसे ऊपर है.'

कालापानी की स्थिति और भारत के साथ सीमा मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर मंत्री ने कहा कि यह ऐसा मुद्दा है, जो दोनों देशों को इतिहास से मिला है .

ग्यावली ने कहा, '1816 के सुगौली समझौते के तहत नेपाल की मौजूदा सरहद का सीमांकन हुआ और इसके बाद दिसंबर 1816, 1860 और 1875 में पूरक समझौते हुए. तीन और समझौते हुए जो कि संधि से जुड़े हैं जिसमें साफ कहा गया है कि नेपाल की पश्चिमी सीमा का सीमांकन काली नदी से होता है. इसलिए, ऐतिहासिक साक्ष्य, दस्तावेजों और मानचित्र में काली को नेपाल में हम महाकाली नदी पुकारते हैं. यह नेपाल की पश्चिमी सीमा नदी है. '

उन्होंने कहा, 'इसलिए नेपाल सुगौली समझौते और उस समय के पत्र-संवाद, ऐतिहासिक मानचित्र, प्रमाण के मुताबिक अनसुलझे या लंबित मुद्दों को सुलझाना चाहता है '

ग्यावली की टिप्पणी के पहले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि समय आ गया है कि दोनों देशों के दीर्घकालिक हित के लिए सभी लंबित मुद्दों का बातचीत के जरिये समाधान किया जाए.

पढ़ें-न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए केंद्र ने SC में दायर की याचिका

ओली ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के इरादे से 140 करोड़ रुपये की लागत से तैयार जोगबनी-विराटनगर एकीकृत जांच चौकी का वीडियो लिंक के जरिये उद्घाटन करने के मौके पर संबोधित किया था.

उन्होंने कहा था, 'समय आ गया है कि दोनों देशों के दीर्घकालिक हित के लिए सभी लंबित मुद्दों का बातचीत के जरिये समाधान किया जाए. दोनों देशों में स्थिर और बहुमत की सरकार एक मौका है और मेरी सरकार इस मामले में भारत सरकार के साथ मिलकर काम करने को लेकर प्रतिबद्ध है.'

गौरतलब है कि भारत और बांग्लादेश ने 2015 में एंक्लेव (वह क्षेत्र जिसके चारों ओर दूसरे देश की सीमा होती है.) की अदला-बदली कर 70 साल पुराने सीमा विवाद का सर्वसम्मति से समाधान किया था.

काठमांडू : नेपाल के विदेशमंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने शुक्रवार को कहा कि अगर भारत बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद सुलझा सकता है तो उनके देश के साथ क्यों नहीं. उन्होंने यह टिप्पणी दोनों पड़ोसियों के बीच सीमा को लेकर उभरे मतभेद के संदर्भ में कही.

उल्लेखनीय है कि भारत ने नए केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के गठन के बाद नवंबर में नया मानचित्र जारी किया. इसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा और गिलगित बाल्तिस्तान को लद्दाख का हिस्सा दिखाया गया.

इस मानचित्र के सामने आने बाद नेपाल ने दावा किया कि लिम्पियाधुरा, लुपुलेक और कालापानी इलाके को भारत में दिखाया गया है जबकि वह नेपाल का हिस्सा है.

वहीं, भारत ने कहा कि नया मानचित्र बिल्कुल सही है और उसमें देश के संप्रभु क्षेत्र को दिखाया गया है एवं नेपाल के साथ सीमा की समीक्षा का सवाल ही नहीं है.

यहां विदेश मंत्रालय में 'सागरमाथा संबाद' के बारे में जानकारी देने के लिए बुलाए गए पत्रकार सम्मेलन में भारतीय पत्रकारों के समूह से बातचीत में नेपाल के विदेशमंत्री ने कहा, 'अगर भारत बांग्लादेश के साथ जमीनी सीमा के विवाद को सुलझा सकता है तो नेपाल के साथ क्यों नहीं?'

उन्होंने कहा, 'अनसुलझे मुद्दे का बोझ लेकर आगे नहीं बढ़ना चाहिए क्योंकि दोनों देशों और उनके नेताओं के बीच समझ का स्तर सबसे ऊपर है.'

कालापानी की स्थिति और भारत के साथ सीमा मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर मंत्री ने कहा कि यह ऐसा मुद्दा है, जो दोनों देशों को इतिहास से मिला है .

ग्यावली ने कहा, '1816 के सुगौली समझौते के तहत नेपाल की मौजूदा सरहद का सीमांकन हुआ और इसके बाद दिसंबर 1816, 1860 और 1875 में पूरक समझौते हुए. तीन और समझौते हुए जो कि संधि से जुड़े हैं जिसमें साफ कहा गया है कि नेपाल की पश्चिमी सीमा का सीमांकन काली नदी से होता है. इसलिए, ऐतिहासिक साक्ष्य, दस्तावेजों और मानचित्र में काली को नेपाल में हम महाकाली नदी पुकारते हैं. यह नेपाल की पश्चिमी सीमा नदी है. '

उन्होंने कहा, 'इसलिए नेपाल सुगौली समझौते और उस समय के पत्र-संवाद, ऐतिहासिक मानचित्र, प्रमाण के मुताबिक अनसुलझे या लंबित मुद्दों को सुलझाना चाहता है '

ग्यावली की टिप्पणी के पहले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि समय आ गया है कि दोनों देशों के दीर्घकालिक हित के लिए सभी लंबित मुद्दों का बातचीत के जरिये समाधान किया जाए.

पढ़ें-न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए केंद्र ने SC में दायर की याचिका

ओली ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के इरादे से 140 करोड़ रुपये की लागत से तैयार जोगबनी-विराटनगर एकीकृत जांच चौकी का वीडियो लिंक के जरिये उद्घाटन करने के मौके पर संबोधित किया था.

उन्होंने कहा था, 'समय आ गया है कि दोनों देशों के दीर्घकालिक हित के लिए सभी लंबित मुद्दों का बातचीत के जरिये समाधान किया जाए. दोनों देशों में स्थिर और बहुमत की सरकार एक मौका है और मेरी सरकार इस मामले में भारत सरकार के साथ मिलकर काम करने को लेकर प्रतिबद्ध है.'

गौरतलब है कि भारत और बांग्लादेश ने 2015 में एंक्लेव (वह क्षेत्र जिसके चारों ओर दूसरे देश की सीमा होती है.) की अदला-बदली कर 70 साल पुराने सीमा विवाद का सर्वसम्मति से समाधान किया था.

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न्यायालय का सीएए विरोध पर रासुका लगाने के खिलाफ याचिका पर विचार से इंकार

नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान कुछ राज्यों और दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किये जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को विचार से इंकार कर दिया.



न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि रासुका लगाने के संबंध में कोई व्यापक आदेश नहीं दिया जा सकता. पीठ ने अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा से कहा कि वह इस मामले में अपनी याचिका वापस ले सकते हैं.



पीठ ने शर्मा से कहा कि रासुका के उल्लंघन के बारे में विवरण देते हुये नयी याचिका या नागरिकता संशोधन कानून प्रकरण में लंबित याचिकाओं में अंतरिम आवेदन दायर कर सकते हैं.



शर्मा ने इस याचिका में रासुका लगाये जाने पर सवाल उठाते हुये कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्ट्रर और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी के खिलाफ विरोध कर रही जनता पर दबाव डालने के लिये ही यह कदम उठाया गया है.



दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने 10 जनवरी को रासुका की अवधि 19 जनवरी से तीन महीने के लिये बढ़ा दी थी. इस कानून के तहत दिल्ली पुलिस को किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार प्राप्त है. रासुका के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को बगैर किसी मुकदमे के 12 महीने तक हिरासत में रख सकती है.



इस याचिका में शर्मा ने गृह मंत्रालय, दिल्ली , उप्र , आंध्र प्रदेश और मणिपुर सरकारों को पक्षकार बनाया था.



याचिका में कहा गया है पुलिस को हिरासत में लिये गये व्यक्तियों पर रासुका लगाने की अनुमति देने संबंधी अधिसूचना से संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी) तथा अनुच्छेद 21 (जीने के अधिकार) के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है.



याचिका में इस अधिसूचना को निरस्त करने का अनुरोध किया गया था.



याचिका में रासुका के तहत हिरासत मे लिये गये व्यक्तियों की समाज में अपमान और प्रतिष्ठा खोने के कारण 50-50 लाख रूपए का मुआवजा दिलाने का भी अनुरोध किया गया था.



देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ इस समय विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.


Conclusion:
Last Updated : Feb 18, 2020, 6:22 AM IST
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