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म्यांमार में तख्तापलट से भारत को करना पड़ सकता है चुनौतियों का सामना - सेना को Tatamadaw

म्यांमार में तख्तापलट हो गया है. तख्तापलट के बाद सेना ने देश का नियंत्रण एक साल के लिए अपने हाथों में ले लिया है. इस मामले में भारत की प्रतिक्रिया सुस्त रही है. म्यांमार की सेना के हाथ में बागड़ोर जाने से पूर्वोत्तर में विद्रोहियों से भारत को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इस संबंध में पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट..

म्यांमार की बागड़ोर सेना
म्यांमार की बागड़ोर सेना
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Published : Feb 3, 2021, 6:08 PM IST

नई दिल्ली : म्यांमार में राजनीतिक संकट जारी है, म्यांमार में नवंबर में चुनाव हुए थे. म्यांमार की सत्तारूढ़ नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) का नेतृत्व करने वाली आंग सान सू की चुनाव में जीत हासिल हुई थी. हालांकि, सेना ने इसे फर्जी बताया था, जिसके बाद से म्यांमार में सैनिक विद्रोह की आशंकाएं बढ़ गई थी.

एनएलडी को कुल 476 सीटों में से 396 सीटें मिलीं, जबकि सेना समर्थित यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) को सिर्फ 33 सीटें मिलीं.

म्यांमार में तख्तापलट करने के लिए और सत्ता की बागड़ोर अपने हाथों में लेने के लिए म्यांमार सेना के जनरल आंग हलिंग ने 11 सदस्यीय टीम का गठन किया. म्यांमार के तख्तापलट से भारत पर भी प्रभाव पड़ सकता है.

बता दें कि म्यांमार की सेना को Tatamadaw भी कहते हैं.

एक्ट ईस्ट पॉलिसी
मोदी सरकार की विदेश नीति के दो प्रमुख घटक नेबरहुड फर्स्ट नीति और एक्ट ईस्ट पॉलिसी है. ये दोनों नीतियां मूल रूप से एक साथ मिश्रित हैं. मोदी सरकार की ये दोनों नीतियां अन्य सरकार से एक कदम अलग है, जो सार्क देशों को लेकर अन्य सरकारों ने बनाया था.

AEP दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक, राजनीतिक, सैन्य और सामरिक संबंधों का निर्माण करना चाहता है, जिन्हें एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (ASEAN) के अंतर्गत रखा गया है.

नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत भारत ने पड़ोसी देशों को कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीन मुहैया करवाई है. एक तीसरा मंच बिम्सटेक, यह एक क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन है, इसमें बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान शामिल थे.

इन तीनों नीतियों और प्लेटफार्मों में म्यांमार भी शामिल है. म्यांमार इन नीतियों और प्लेटफार्मों की प्रमुख ईकाई में से है. म्यांमार इतना महत्वपूर्ण था कि अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं को झेलते हुए, भारत ने म्यांमार के रखाइन प्रांत पर रोहिंग्याओं के क्रूर दमन और पलायन पर कड़ी चुप्पी साधे रखी. यह सब अब पूर्ववत हो सकता है.

म्यांमार का चीन के साथ घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण संबंध है. वहीं म्यांमार दूसरी तरफ भारत के साथ समीपता बनाए हुए है. जैसा कि चीन खनन और बुनियादी ढांचे के अलावा म्यांमार के तेल-गैस क्षेत्र में भारी निवेश करता है, हालांकि चीन समर्थित संयुक्त वा स्टेट आर्मी (यूडब्ल्यूएसए) चीन-म्यांमार द्विपक्षीय संबंधों में लगातार अड़चने डाल रहा है.

म्यांमार सेना का चीन के साथ संबंध अच्छे हैं. इसका लाभ चीन म्यांमार में भारत का प्रभाव करने के लिए करेगा. इसलिए यह विकट स्थिति है, जिसका सामना म्यांमार में भारत को करना पड़ सकता है.

काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन
2019 में सत्ता संभालने के बाद, एनडीए II सरकार ने म्यांमार से संबंध बनाने के लिए एक सैन्य-कूटनीतिक प्रयास का नेतृत्व किया था, जिसका उद्देश्य म्यांमार के स्व-प्रशासित सागा डिवीजन को विद्रोही संगठनों से दूर करना था, जो म्यांमार के उत्तरपश्चिम में पूर्वोत्तर भारत के पूर्व में सुदूर जंगल क्षेत्रों में स्थापित शिविरों से संचालित होते हैं.

एईपी के लिए भी, इस रेस्टिव (restive) जोन की सुरक्षा बनाए रखना जरूरी था और यह एक शर्त की भांति थी. यह वह क्षेत्र है, NSCN, ULFA, PLA और UNLF जैसे विद्रोही संगठन कार्य करते हैं और अवैध कार्यों को अंजाम देते हैं. इसके आलावा ऐसे संगठन धमकियां भी देते हैं, इसके चलते ही भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग (IMT) का अबतक विकास नहीं हो पाया है. इतना ही नहीं इसके चलते भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग (IMT) के विकास में अड़चने आईं हैं.

म्यांमार पर पकड़ बनाए रखने के लिए भारत के रक्षा सचिव, विदेश सचिव, सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, सैन्य संचालन महानिदेशक (डीजीएमओ) और कई शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने म्यांमार का दौरा किया. ऐसा भी कह सकते हैं कि उच्च-स्तरीय भारतीय यात्राओं की झड़ी लग गई थी.

इन करीबी संघों ने पूर्वोत्तर भारतीय विद्रोहियों का मुकाबला करने के लिए बड़ी संख्या में सफल संयुक्त अभियानों में घुसपैठ की है.

29 जनवरी, 2019 को एक बड़े प्रयास के तहत पूर्वोत्तर के विद्रोहियों के टेगा स्थित हेडक्वार्टर पर म्यांमार की सेना आक्रमण (offensive) किया. दूसरे प्रयास के तहत म्यांमार की सेना ने 16 मई, 2019, लेह और नानून की बस्ती के पास पूर्वोत्तर के विद्रोहियों पर एक और हमला किया.

इसी तरह के ऑपरेशन के परिणामस्वरूप एनई विद्रोही संगठन एनएससीएन (के) की निक्की सुमी जैसे कई शीर्ष नेताओं से बातचीत के लिए तैयार हुए.

हालांकि, म्यांमार में तख्तापलट सबको आश्चर्यचकित करने वाला था, लेकिन इस मामले में भारत की प्रतिक्रिया सुस्त रही है.

विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में कहा कि म्यांमार में लोकतांत्रिक परिवर्तन की प्रक्रिया के लिए भारत हमेशा अपने समर्थन में दृढ़ रहा है. हमारा मानना ​​है कि कानून के शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखा जाना चाहिए.

शुरुआती आधिकारिक प्रतिक्रिया में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि चीन म्यांमार का मित्रवत पड़ोसी है. हमें उम्मीद है कि म्यांमार के सभी पक्ष संवैधानिक और कानूनी ढांचे के तहत अपने मतभेदों को ठीक से संभालेंगे और राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखेंगे.

जाहिर है, अब तक एशियाई दिग्गज भारत-चीन इंतजार कर रहे हैं और म्यांमार में होने वाली घटनाओं को देखते हुए रुख अपना रहे हैं.

नई दिल्ली : म्यांमार में राजनीतिक संकट जारी है, म्यांमार में नवंबर में चुनाव हुए थे. म्यांमार की सत्तारूढ़ नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) का नेतृत्व करने वाली आंग सान सू की चुनाव में जीत हासिल हुई थी. हालांकि, सेना ने इसे फर्जी बताया था, जिसके बाद से म्यांमार में सैनिक विद्रोह की आशंकाएं बढ़ गई थी.

एनएलडी को कुल 476 सीटों में से 396 सीटें मिलीं, जबकि सेना समर्थित यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) को सिर्फ 33 सीटें मिलीं.

म्यांमार में तख्तापलट करने के लिए और सत्ता की बागड़ोर अपने हाथों में लेने के लिए म्यांमार सेना के जनरल आंग हलिंग ने 11 सदस्यीय टीम का गठन किया. म्यांमार के तख्तापलट से भारत पर भी प्रभाव पड़ सकता है.

बता दें कि म्यांमार की सेना को Tatamadaw भी कहते हैं.

एक्ट ईस्ट पॉलिसी
मोदी सरकार की विदेश नीति के दो प्रमुख घटक नेबरहुड फर्स्ट नीति और एक्ट ईस्ट पॉलिसी है. ये दोनों नीतियां मूल रूप से एक साथ मिश्रित हैं. मोदी सरकार की ये दोनों नीतियां अन्य सरकार से एक कदम अलग है, जो सार्क देशों को लेकर अन्य सरकारों ने बनाया था.

AEP दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक, राजनीतिक, सैन्य और सामरिक संबंधों का निर्माण करना चाहता है, जिन्हें एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (ASEAN) के अंतर्गत रखा गया है.

नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत भारत ने पड़ोसी देशों को कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीन मुहैया करवाई है. एक तीसरा मंच बिम्सटेक, यह एक क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठन है, इसमें बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान शामिल थे.

इन तीनों नीतियों और प्लेटफार्मों में म्यांमार भी शामिल है. म्यांमार इन नीतियों और प्लेटफार्मों की प्रमुख ईकाई में से है. म्यांमार इतना महत्वपूर्ण था कि अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं को झेलते हुए, भारत ने म्यांमार के रखाइन प्रांत पर रोहिंग्याओं के क्रूर दमन और पलायन पर कड़ी चुप्पी साधे रखी. यह सब अब पूर्ववत हो सकता है.

म्यांमार का चीन के साथ घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण संबंध है. वहीं म्यांमार दूसरी तरफ भारत के साथ समीपता बनाए हुए है. जैसा कि चीन खनन और बुनियादी ढांचे के अलावा म्यांमार के तेल-गैस क्षेत्र में भारी निवेश करता है, हालांकि चीन समर्थित संयुक्त वा स्टेट आर्मी (यूडब्ल्यूएसए) चीन-म्यांमार द्विपक्षीय संबंधों में लगातार अड़चने डाल रहा है.

म्यांमार सेना का चीन के साथ संबंध अच्छे हैं. इसका लाभ चीन म्यांमार में भारत का प्रभाव करने के लिए करेगा. इसलिए यह विकट स्थिति है, जिसका सामना म्यांमार में भारत को करना पड़ सकता है.

काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन
2019 में सत्ता संभालने के बाद, एनडीए II सरकार ने म्यांमार से संबंध बनाने के लिए एक सैन्य-कूटनीतिक प्रयास का नेतृत्व किया था, जिसका उद्देश्य म्यांमार के स्व-प्रशासित सागा डिवीजन को विद्रोही संगठनों से दूर करना था, जो म्यांमार के उत्तरपश्चिम में पूर्वोत्तर भारत के पूर्व में सुदूर जंगल क्षेत्रों में स्थापित शिविरों से संचालित होते हैं.

एईपी के लिए भी, इस रेस्टिव (restive) जोन की सुरक्षा बनाए रखना जरूरी था और यह एक शर्त की भांति थी. यह वह क्षेत्र है, NSCN, ULFA, PLA और UNLF जैसे विद्रोही संगठन कार्य करते हैं और अवैध कार्यों को अंजाम देते हैं. इसके आलावा ऐसे संगठन धमकियां भी देते हैं, इसके चलते ही भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग (IMT) का अबतक विकास नहीं हो पाया है. इतना ही नहीं इसके चलते भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग (IMT) के विकास में अड़चने आईं हैं.

म्यांमार पर पकड़ बनाए रखने के लिए भारत के रक्षा सचिव, विदेश सचिव, सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, सैन्य संचालन महानिदेशक (डीजीएमओ) और कई शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने म्यांमार का दौरा किया. ऐसा भी कह सकते हैं कि उच्च-स्तरीय भारतीय यात्राओं की झड़ी लग गई थी.

इन करीबी संघों ने पूर्वोत्तर भारतीय विद्रोहियों का मुकाबला करने के लिए बड़ी संख्या में सफल संयुक्त अभियानों में घुसपैठ की है.

29 जनवरी, 2019 को एक बड़े प्रयास के तहत पूर्वोत्तर के विद्रोहियों के टेगा स्थित हेडक्वार्टर पर म्यांमार की सेना आक्रमण (offensive) किया. दूसरे प्रयास के तहत म्यांमार की सेना ने 16 मई, 2019, लेह और नानून की बस्ती के पास पूर्वोत्तर के विद्रोहियों पर एक और हमला किया.

इसी तरह के ऑपरेशन के परिणामस्वरूप एनई विद्रोही संगठन एनएससीएन (के) की निक्की सुमी जैसे कई शीर्ष नेताओं से बातचीत के लिए तैयार हुए.

हालांकि, म्यांमार में तख्तापलट सबको आश्चर्यचकित करने वाला था, लेकिन इस मामले में भारत की प्रतिक्रिया सुस्त रही है.

विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में कहा कि म्यांमार में लोकतांत्रिक परिवर्तन की प्रक्रिया के लिए भारत हमेशा अपने समर्थन में दृढ़ रहा है. हमारा मानना ​​है कि कानून के शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखा जाना चाहिए.

शुरुआती आधिकारिक प्रतिक्रिया में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि चीन म्यांमार का मित्रवत पड़ोसी है. हमें उम्मीद है कि म्यांमार के सभी पक्ष संवैधानिक और कानूनी ढांचे के तहत अपने मतभेदों को ठीक से संभालेंगे और राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखेंगे.

जाहिर है, अब तक एशियाई दिग्गज भारत-चीन इंतजार कर रहे हैं और म्यांमार में होने वाली घटनाओं को देखते हुए रुख अपना रहे हैं.

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