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जापान में चीन के खिलाफ लोगों में उबाल, हाचिको प्रतिमा के सामने प्रदर्शन - पीपुल्स लिबरेशन आर्मी

भारत और चीन के बीच लद्दाख को लेकर तनाव अपने चरम पर है. ऐसे में जापान में कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने टोक्यो में शिबुया स्टेशन के पास हाचिको प्रतिमा के सामने यह विरोध किया. पढ़ें विस्तार से...

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जापान में चीन के खिलाफ लोगों में उबाल
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Published : Jun 29, 2020, 10:45 AM IST

टोक्यो : भारत और चीन में तनातनी के बीच जापान में कुछ लोगों ने चीन के खिलाफ प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में जापान, भारत, ताइवान और अन्य जगहों के कई मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हुए.

प्रदर्शनकारियों ने जापान की राजधानी टोक्यो में शिबुया स्टेशन के पास स्थित हाचिको प्रतिमा के सामने खड़े होकर चीन का विरोध किया.

बता दें कि टोक्यो स्थित हाचिको प्रतिमा (Hachiko Statue) को वफादारी का प्रतीक माना जाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यह प्रतिमा किसी व्यक्ति की नहीं, बल्कि हाचिको कुत्ते की है, जिसे आज भी जापान में बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है. हाचिको ने नौ साल नौ महीने और 15 दिन अपने मालिक का इंतजार किया. इतने लंबे इंतजार के बाद आखिरकार वफादार हाचिको ने दम तोड़ दिया.

जापान में यह विरोध प्रदर्शन ऐसे समय पर हुआ, जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के काम करने की तानाशाह शैली की वैश्विक स्तर पर आलोचना हो रही है.

पिछले कुछ वर्षों से यह काफी हद तक साफ है कि अत्यधिक महत्वाकांक्षी राष्ट्रपति जिनपिंग आक्रामक तरीके से जापान, फिलीपींस, वियतनाम, भारत, भूटान सहित अपने सभी पड़ोसियों के क्षेत्रों का अतिक्रमण करने की कोशिश में जुटे हैं.

जिनपिंग की यह कोशिश या तो चीनी सैनिकों के माध्यम से होती है, या फिर चीन के मल्टी बिलियन डॉलर मूल्य की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) और वन बेल्ट वन रोड (ओआरओबी) परियोजना के जरिए.

गौरतलब है कि अल्पसंख्यक समुदायों से संबंध रखने वाले अपने नागरिकों को लोकतंत्र से वंचित करते हुए जिनपिंग हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक युवा कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं.

पढ़ें : चीन की साजिश : हिंसा से पहले सीमा पर भेजे थे मार्शल आर्ट के लड़ाके

कोरोना वायरस के संबंध में चीन को लेकर दुनिया के नजरिए की अगर बात करें, तो चीन ने अपने ही देश के कोरोना संक्रमण के आंकड़ों को काफी हद तक छुपाया है, जिसके चलते कई देशों का विश्वास उस पर से उठा है.

अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को लेकर ताइवान के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा नजर में लाई गई शुरुआती चेतावनियों को ध्यान में रखा होता, तो इस वैश्विक तबाही को कम किया जा सकता था. इस संदर्भ में शी जिनपिंग की सतर्कता और महामारी को लेकर पारदर्शिता की कमी से उनके खिलाफ दुनिया भर के देशों ने भौंहे तान ली हैं.

ऐसे कई देश हैं, जिन्हें चीन की दोषपूर्ण कोरोना परीक्षण किट को लेकर तमाम तरह की शिकायतें हैं. हालांकि, जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को पूर्वी लद्दाख में हिंसा करते कई बार देखा गया है. इसके साथ ही चीन द्वारा समझौतों का उल्लंघन करना कोई नई बात नहीं है.

इसके अलावा हाल ही में चीन और भारत के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. इसके साथ ही चीन के भी कई सैनिक मारे गए. हालांकि चीन ने मारे गए सैनिकों की संख्या की आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की. सैनिकों की सटीक संख्या की चीन ने जानबूझ कर अनदेखी की है.

चीन के इस व्यवहार ने वैश्विक ध्यान को इस ओर आकर्षित किया है कि चीन को एक जिम्मेदार लोकतंत्र की जरूरत है.

टोक्यो : भारत और चीन में तनातनी के बीच जापान में कुछ लोगों ने चीन के खिलाफ प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में जापान, भारत, ताइवान और अन्य जगहों के कई मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हुए.

प्रदर्शनकारियों ने जापान की राजधानी टोक्यो में शिबुया स्टेशन के पास स्थित हाचिको प्रतिमा के सामने खड़े होकर चीन का विरोध किया.

बता दें कि टोक्यो स्थित हाचिको प्रतिमा (Hachiko Statue) को वफादारी का प्रतीक माना जाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यह प्रतिमा किसी व्यक्ति की नहीं, बल्कि हाचिको कुत्ते की है, जिसे आज भी जापान में बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है. हाचिको ने नौ साल नौ महीने और 15 दिन अपने मालिक का इंतजार किया. इतने लंबे इंतजार के बाद आखिरकार वफादार हाचिको ने दम तोड़ दिया.

जापान में यह विरोध प्रदर्शन ऐसे समय पर हुआ, जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के काम करने की तानाशाह शैली की वैश्विक स्तर पर आलोचना हो रही है.

पिछले कुछ वर्षों से यह काफी हद तक साफ है कि अत्यधिक महत्वाकांक्षी राष्ट्रपति जिनपिंग आक्रामक तरीके से जापान, फिलीपींस, वियतनाम, भारत, भूटान सहित अपने सभी पड़ोसियों के क्षेत्रों का अतिक्रमण करने की कोशिश में जुटे हैं.

जिनपिंग की यह कोशिश या तो चीनी सैनिकों के माध्यम से होती है, या फिर चीन के मल्टी बिलियन डॉलर मूल्य की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) और वन बेल्ट वन रोड (ओआरओबी) परियोजना के जरिए.

गौरतलब है कि अल्पसंख्यक समुदायों से संबंध रखने वाले अपने नागरिकों को लोकतंत्र से वंचित करते हुए जिनपिंग हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक युवा कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं.

पढ़ें : चीन की साजिश : हिंसा से पहले सीमा पर भेजे थे मार्शल आर्ट के लड़ाके

कोरोना वायरस के संबंध में चीन को लेकर दुनिया के नजरिए की अगर बात करें, तो चीन ने अपने ही देश के कोरोना संक्रमण के आंकड़ों को काफी हद तक छुपाया है, जिसके चलते कई देशों का विश्वास उस पर से उठा है.

अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को लेकर ताइवान के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा नजर में लाई गई शुरुआती चेतावनियों को ध्यान में रखा होता, तो इस वैश्विक तबाही को कम किया जा सकता था. इस संदर्भ में शी जिनपिंग की सतर्कता और महामारी को लेकर पारदर्शिता की कमी से उनके खिलाफ दुनिया भर के देशों ने भौंहे तान ली हैं.

ऐसे कई देश हैं, जिन्हें चीन की दोषपूर्ण कोरोना परीक्षण किट को लेकर तमाम तरह की शिकायतें हैं. हालांकि, जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को पूर्वी लद्दाख में हिंसा करते कई बार देखा गया है. इसके साथ ही चीन द्वारा समझौतों का उल्लंघन करना कोई नई बात नहीं है.

इसके अलावा हाल ही में चीन और भारत के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. इसके साथ ही चीन के भी कई सैनिक मारे गए. हालांकि चीन ने मारे गए सैनिकों की संख्या की आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की. सैनिकों की सटीक संख्या की चीन ने जानबूझ कर अनदेखी की है.

चीन के इस व्यवहार ने वैश्विक ध्यान को इस ओर आकर्षित किया है कि चीन को एक जिम्मेदार लोकतंत्र की जरूरत है.

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