इस्लामाबाद: पाकिस्तान के विवादास्पद ईशनिंदा कानून के आरोपों के तहत 18 साल से जेल में बंद एक कैदी को देश की शीर्ष अदालत ने सबूतों के अभाव में अंतत: बरी कर दिया. उसे मौत की सजा सुनाई गयी थी.
डॉन अखबार की खबर के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सज्जाद अली शाह की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने बुधवार को बाजिह-उल-हसन को बरी कर दिया. वह ईशनिंदा के आरोपों में लाहौर की कोट लखपत जेल में बंद है.
हसन के खिलाफ 1999 में एक वकील को ईशनिंदा वाले पत्र लिखने के संबंध में मामला दर्ज किया गया था.
2001 में एक हस्तलेख विशेषज्ञ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आरोपी की लिखावट कथित पत्रों से मेल खाती है जिसके बाद लाहौर की एक अदालत ने हसन को दोषी ठहराया और उसे मौत की सजा सुनाई. बाद में लाहौर उच्च न्यायालय ने फैसले को बरकरार रखा.
पाकिस्तान की दंड संहिता के तहत ईशनिंदा के अपराध में मौत की सजा सुनाई जा सकती है.
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उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे इस बात को साबित नहीं कर सका कि पत्र वास्तव में उसने ही लिखे थे. इसके बाद मामले को खारिज कर दिया गया
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि मामले में कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं है.