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रोहिंग्या संकट : बांग्लादेश और म्यांमार के बीच मध्यस्थ बन सकता है जापान

मंगलवार को एक द्विपक्षीय बैठक के दौरान जापान ने रोहिंग्या मामले पर बांग्लादेश और म्यांमार के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाने की पेशकश की. 2017 में क्रूर सैन्य कार्रवाई के बाद रोहिंग्या म्यांमार से भागने के लिए मजबूर हो गए थे. पढ़ें पूरी खबर...

कॉक्स बाजार में सबसे बड़ी रोहिंग्या बस्ती
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Published : Aug 1, 2019, 12:11 AM IST

ढाकाःजापान ने मंगलवार को बांग्लादेश और म्यांमार के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाने की पेशकश की. इससे राखिने राज्य में रोहिंग्या लोगों की शांतिपूर्ण और सुगम वापसी सुनिश्चित की जा सकेगी.

यह प्रस्ताव मंगलवार को बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ एके अब्दुल मोमन और उनके जापानी समकक्ष तारा कोनो के बीच द्विपक्षीय बैठक के दौरान प्रस्तावित किया गया.

ढाका ट्रिब्यून ने बताया कि, वार्ता के बाद, दोनों राजनयिकों ने रोहिंग्याओं की वापसी के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए म्यांमार सरकार द्वारा आवश्यक कदमों को उठाए जाने पर जोर दिया.

कोनो बांग्लादेश की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं. उन्होंने दिन में पहले कॉक्स बाजार में रोहिंग्या बस्तियों का दौरा किया. वहां रहने वाले कई लोगों से बात की, जिससे उनकी स्थिति को व्यक्तिगत तौर से समझा जा सके.

वहीं बांग्लादेश के कानून मंत्री अनीसुल हक ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र को बताया कि बांग्लादेश में रोहिंग्याओं का प्रवेश कम है, हालांकि अभी भी जारी है.

आपको बता दें, 2017 में क्रूर सैन्य कार्रवाई के बाद 700,000 से अधिक रोहिंग्या पश्चिमी म्यांमार के उत्तरी राखीन से भागने के लिए मजबूर हो गए थे.

संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि जातीय समूह के खिलाफ अपराधों में सामूहिक नरसंहार और गैंग रेप शामिल हैं. इन अपराधों को 'नरसंहार के इरादे' से किया गया था.

पढ़ें-दुनिया भर में हुए संघर्षों में रिकॉर्ड 12,000 बच्चे हताहत हुए: संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट

इसके बाद, अल्पसंख्यकों ने बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में तीन दर्जन शिविरों में शरण ली. बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या 1.2 लाख से अधिक हो गई है. कई लोग अभी भी अपनी सुरक्षा के लिए डरते हैं. क्योंकि म्यांमार मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दमन का सामना करना पड़ा है.

गौरतलब है कि बांग्लादेश और म्यांमार ने नवंबर 2017 में एक प्रत्यावर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किया था. आपको बता दें कि अभी तक वास्तव में कोई भी रोहिंग्या स्वेच्छा से वापस जाने के लिए तैयार नहीं हुआ है. बांग्लादेश सरकार ने कहा है कि वह किसी भी रोहिंग्या को देश छोड़ने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.

शनिवार को म्यांमार सरकार के 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने कॉक्स बाजार का दौरा किया. उन्होंने मुस्लिम समुदाय के साथ स्वदेश लौटने के बारे में वार्ता भी की.

पिछले वर्ष नवंबर में रोहिंग्याओं में से कोई भी म्यांमार लौटने के लिए तैयार नहीं हुआ, जिससे रोहिंग्याओं को स्वदेश लौटाने की प्रक्रिया विफल हो गई. इसके बाद म्यांमार के प्रतिनिधिमंडल ने शिविरों का दौरा किया.

ढाकाःजापान ने मंगलवार को बांग्लादेश और म्यांमार के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाने की पेशकश की. इससे राखिने राज्य में रोहिंग्या लोगों की शांतिपूर्ण और सुगम वापसी सुनिश्चित की जा सकेगी.

यह प्रस्ताव मंगलवार को बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ एके अब्दुल मोमन और उनके जापानी समकक्ष तारा कोनो के बीच द्विपक्षीय बैठक के दौरान प्रस्तावित किया गया.

ढाका ट्रिब्यून ने बताया कि, वार्ता के बाद, दोनों राजनयिकों ने रोहिंग्याओं की वापसी के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए म्यांमार सरकार द्वारा आवश्यक कदमों को उठाए जाने पर जोर दिया.

कोनो बांग्लादेश की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं. उन्होंने दिन में पहले कॉक्स बाजार में रोहिंग्या बस्तियों का दौरा किया. वहां रहने वाले कई लोगों से बात की, जिससे उनकी स्थिति को व्यक्तिगत तौर से समझा जा सके.

वहीं बांग्लादेश के कानून मंत्री अनीसुल हक ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र को बताया कि बांग्लादेश में रोहिंग्याओं का प्रवेश कम है, हालांकि अभी भी जारी है.

आपको बता दें, 2017 में क्रूर सैन्य कार्रवाई के बाद 700,000 से अधिक रोहिंग्या पश्चिमी म्यांमार के उत्तरी राखीन से भागने के लिए मजबूर हो गए थे.

संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि जातीय समूह के खिलाफ अपराधों में सामूहिक नरसंहार और गैंग रेप शामिल हैं. इन अपराधों को 'नरसंहार के इरादे' से किया गया था.

पढ़ें-दुनिया भर में हुए संघर्षों में रिकॉर्ड 12,000 बच्चे हताहत हुए: संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट

इसके बाद, अल्पसंख्यकों ने बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में तीन दर्जन शिविरों में शरण ली. बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या 1.2 लाख से अधिक हो गई है. कई लोग अभी भी अपनी सुरक्षा के लिए डरते हैं. क्योंकि म्यांमार मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दमन का सामना करना पड़ा है.

गौरतलब है कि बांग्लादेश और म्यांमार ने नवंबर 2017 में एक प्रत्यावर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किया था. आपको बता दें कि अभी तक वास्तव में कोई भी रोहिंग्या स्वेच्छा से वापस जाने के लिए तैयार नहीं हुआ है. बांग्लादेश सरकार ने कहा है कि वह किसी भी रोहिंग्या को देश छोड़ने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.

शनिवार को म्यांमार सरकार के 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने कॉक्स बाजार का दौरा किया. उन्होंने मुस्लिम समुदाय के साथ स्वदेश लौटने के बारे में वार्ता भी की.

पिछले वर्ष नवंबर में रोहिंग्याओं में से कोई भी म्यांमार लौटने के लिए तैयार नहीं हुआ, जिससे रोहिंग्याओं को स्वदेश लौटाने की प्रक्रिया विफल हो गई. इसके बाद म्यांमार के प्रतिनिधिमंडल ने शिविरों का दौरा किया.

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