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अफगान शांति वार्ता फिर चढ़ सकती है परवान, तालिबान दोहा लौटा

शांति वार्ता अमेरिका और तालिबान के बीच फरवरी में हुए समझौते का दूसरा महत्वपूर्ण चरण है. इसके लिए वॉशिंगटन ने अफगानिस्तान में युद्धग्रस्त दोनों पक्षों पर दबाव बना रखा है.

Afghan peace talks
अफगान शांति वार्ता
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Published : Sep 5, 2020, 9:26 PM IST

इस्लामाबाद : तालिबान के पदाधिकारियों ने कहा कि, उसके वरिष्ठ सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल शनिवार को कतर लौट आया है, जिससे अफगान सरकार के साथ बातचीत का रास्ता एक बार फिर खुल गया है.

पदाधिकारियों ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर यह जानकारी दी, क्योंकि वे मीडिया से बातचीत के लिये अधिकृत नहीं हैं. यह बातचीत अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में इस साल फरवरी में हुए शांति समझौते का दूसरा और अहम हिस्सा है.

अमेरिका ने दोनों पक्षों के अफगानों पर दबाव बढ़ाया है कि, वे यह तय करने के लिये समझौता वार्ता शुरू करें कि लंबे संघर्ष के बाद भविष्य का अफगानिस्तान कैसा होगा, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा कैसे होगी. इसके साथ ही हजारों सशस्त्र तालिबानियों और सरकारी समर्थन प्राप्त मिलीशिया का निरस्त्रीकरण कैसे होगा. कैसे उन्हें फिर से एकीकृत किया जा सकेगा.

पढ़ें: चीन से खराब रिश्ते अमेरिकी विदेश नीति की 40 साल की सबसे बड़ी असफलता

अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने पिछले हफ्ते फोन पर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ लंबी बातचीत की थी. अमेरिकी अधिकारियों ने तालिबान को वार्ता के लिये तैयार करने को पड़ोसी पाकिस्तान पर भी दबाव डाला था. अफगान सरकार के कब्जे वाले 5000 कैदियों और तालिबान के कब्जे वाले 1000 कैदियों की अदला-बदली को लेकर सहमति नहीं बनने के कारण अंत:अफगान वार्ता के शुरू होने में बाधा आ रही है.

अगस्त के अंत में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख और फरवरी में अमेरिका के साथ बनी सहमति का मुख्य वार्ताकार मुल्ला अब्दुल गनी बरादर पाकिस्तान आया था. पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ उसकी मुलाकात के बारे में ज्यादा खुलासा नहीं किया गया लेकिन, यह माना जा रहा है कि उस पर अंत: अफगान वार्ता शुरू करने के लिये दबाव डाला गया.

इस्लामाबाद : तालिबान के पदाधिकारियों ने कहा कि, उसके वरिष्ठ सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल शनिवार को कतर लौट आया है, जिससे अफगान सरकार के साथ बातचीत का रास्ता एक बार फिर खुल गया है.

पदाधिकारियों ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर यह जानकारी दी, क्योंकि वे मीडिया से बातचीत के लिये अधिकृत नहीं हैं. यह बातचीत अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में इस साल फरवरी में हुए शांति समझौते का दूसरा और अहम हिस्सा है.

अमेरिका ने दोनों पक्षों के अफगानों पर दबाव बढ़ाया है कि, वे यह तय करने के लिये समझौता वार्ता शुरू करें कि लंबे संघर्ष के बाद भविष्य का अफगानिस्तान कैसा होगा, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा कैसे होगी. इसके साथ ही हजारों सशस्त्र तालिबानियों और सरकारी समर्थन प्राप्त मिलीशिया का निरस्त्रीकरण कैसे होगा. कैसे उन्हें फिर से एकीकृत किया जा सकेगा.

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अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने पिछले हफ्ते फोन पर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ लंबी बातचीत की थी. अमेरिकी अधिकारियों ने तालिबान को वार्ता के लिये तैयार करने को पड़ोसी पाकिस्तान पर भी दबाव डाला था. अफगान सरकार के कब्जे वाले 5000 कैदियों और तालिबान के कब्जे वाले 1000 कैदियों की अदला-बदली को लेकर सहमति नहीं बनने के कारण अंत:अफगान वार्ता के शुरू होने में बाधा आ रही है.

अगस्त के अंत में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख और फरवरी में अमेरिका के साथ बनी सहमति का मुख्य वार्ताकार मुल्ला अब्दुल गनी बरादर पाकिस्तान आया था. पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ उसकी मुलाकात के बारे में ज्यादा खुलासा नहीं किया गया लेकिन, यह माना जा रहा है कि उस पर अंत: अफगान वार्ता शुरू करने के लिये दबाव डाला गया.

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