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अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए दशकों से जद्दोजहद करते कुर्द

करीब साढे़ तीन करोड़ जनसंख्या वाला कुर्द समुदाय दशकों से अपने लिए अलग देश की मांग कर रहा है, लेकिन आज तक उसे न तो अपनी अलग पहचान मिली है और न ही अलग देश.

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Published : Oct 26, 2019, 7:36 PM IST

अंकारा : तुर्की, ईरान, सीरिया और ईरान में रहने वाले कुर्द समुदाय की पहचान किसी खास मजहब से नहीं है वरन इसमें अलग-अलग धर्मों के अनुयायी शामिल हैं. साढ़े तीन करोड़ की जनसंख्या होने के बावजूद इस समुदाय का अपना कोई देश नहीं है.

अधिकतर कुर्द सुन्नी मुस्लिम हैं, जो इस्लाम के चार मसलकों में एक शाफी मसलक के अनुयायी और धार्मिक विचारों के तौर पर ये लोग अरब और तुर्की से अलग हैं, जहां हंबली मसलक के मानने वाले हैं.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

दरअसल, कुर्द मेसोपोटामिया के मैदान और पर्वतीय इलाक़ों के मूल निवासी हैं. ये मुख्य रूप से दक्षिणी-पूर्वी तुर्की, उत्तरी-पूर्वी सीरिया, उत्तरी इराक़, उत्तर-पूर्वी ईरान और दक्षिण-पश्चिमी अर्मेनिया में रहते हैं.

गौरतलब है कि 20वीं सदी की शुरुआत में कुर्दों ने अलग देश बनाने की पहल शुरू की. सबसे पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की हार के बाद पश्चिमी सहयोगी देशों ने 1920 में लुसान संधि के कुर्दों के लिए अलग देश बनाने की बात की, लेकिन 1923 में तुर्की के नेता मुस्तफा कमाल पाशा ने इस संधि को खारिज कर दिया. क्योंकि इसमें अलग देश का कोई प्रावधान नहीं रखा गया था.

तब से लेकर आज तक कुर्द अपने लिए एक अलग देश कुर्दिस्तान बनाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन जब-जब कुर्द समुदाय ने अलग देश की मांग की, तब-तब उनके आंदोलन को कुचल दिया गया.

ये कुर्द ही थे, जिन्होंने 2013 में इस्लामिक स्टेट से लोहा लिया और लेकिन 2014 में जब आतंकी संगठन आईएस ने कोबाने में कुर्दिशों पर हमला किया तो इन लोगों ने तुर्की के आसपास को सीमाई इलाकों में पनाह ले ली.

पढ़ें - पुरातत्वविदों का दावा - इजराइल में मिला पांच हजार साल पुराना शहर

हालांकि, 2015 में कुर्दिश बलों ने कोबाने क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. इसके बाद से सीरिया में कुर्द अमेरिका और सहयोगी बलों की मदद से इस्लामिक स्टेट पर बढ़त हासिल करते गये और तुर्की की सीमा से लगे हुए 400 किलोमीटर क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर लिया.

कुर्दों और तुर्कों के बीच गहरी दुश्मनी रही है. तुर्की में 15 से 20 फ़ीसदी कुर्द हैं. पीढ़ियों से तुर्की में कुर्दों के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार होता रहा है. साथ ही तुर्की को डर है कि कहीं 1920 की ही तरह फिर से कुर्द अपने लिए अलग देश की मांग न करने लगें, इसलिए तुर्की उन पर हमला कर उन्हें निशाना बना रहा है.

अंकारा : तुर्की, ईरान, सीरिया और ईरान में रहने वाले कुर्द समुदाय की पहचान किसी खास मजहब से नहीं है वरन इसमें अलग-अलग धर्मों के अनुयायी शामिल हैं. साढ़े तीन करोड़ की जनसंख्या होने के बावजूद इस समुदाय का अपना कोई देश नहीं है.

अधिकतर कुर्द सुन्नी मुस्लिम हैं, जो इस्लाम के चार मसलकों में एक शाफी मसलक के अनुयायी और धार्मिक विचारों के तौर पर ये लोग अरब और तुर्की से अलग हैं, जहां हंबली मसलक के मानने वाले हैं.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

दरअसल, कुर्द मेसोपोटामिया के मैदान और पर्वतीय इलाक़ों के मूल निवासी हैं. ये मुख्य रूप से दक्षिणी-पूर्वी तुर्की, उत्तरी-पूर्वी सीरिया, उत्तरी इराक़, उत्तर-पूर्वी ईरान और दक्षिण-पश्चिमी अर्मेनिया में रहते हैं.

गौरतलब है कि 20वीं सदी की शुरुआत में कुर्दों ने अलग देश बनाने की पहल शुरू की. सबसे पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की हार के बाद पश्चिमी सहयोगी देशों ने 1920 में लुसान संधि के कुर्दों के लिए अलग देश बनाने की बात की, लेकिन 1923 में तुर्की के नेता मुस्तफा कमाल पाशा ने इस संधि को खारिज कर दिया. क्योंकि इसमें अलग देश का कोई प्रावधान नहीं रखा गया था.

तब से लेकर आज तक कुर्द अपने लिए एक अलग देश कुर्दिस्तान बनाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन जब-जब कुर्द समुदाय ने अलग देश की मांग की, तब-तब उनके आंदोलन को कुचल दिया गया.

ये कुर्द ही थे, जिन्होंने 2013 में इस्लामिक स्टेट से लोहा लिया और लेकिन 2014 में जब आतंकी संगठन आईएस ने कोबाने में कुर्दिशों पर हमला किया तो इन लोगों ने तुर्की के आसपास को सीमाई इलाकों में पनाह ले ली.

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हालांकि, 2015 में कुर्दिश बलों ने कोबाने क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. इसके बाद से सीरिया में कुर्द अमेरिका और सहयोगी बलों की मदद से इस्लामिक स्टेट पर बढ़त हासिल करते गये और तुर्की की सीमा से लगे हुए 400 किलोमीटर क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर लिया.

कुर्दों और तुर्कों के बीच गहरी दुश्मनी रही है. तुर्की में 15 से 20 फ़ीसदी कुर्द हैं. पीढ़ियों से तुर्की में कुर्दों के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार होता रहा है. साथ ही तुर्की को डर है कि कहीं 1920 की ही तरह फिर से कुर्द अपने लिए अलग देश की मांग न करने लगें, इसलिए तुर्की उन पर हमला कर उन्हें निशाना बना रहा है.

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