लॉस एंजिलिस : वैज्ञानिकों ने अपनी तरह के पहले अध्ययन में जंगलों में आग लगने के मौसम संबंधी जोखिमों पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव का आकलन किया. उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वायु प्रदूषण के जंगलों में आग लगने के संबंध में अलग-अलग क्षेत्रीय प्रभाव होते है.
नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित इस शोध में 1920 से मानवीय प्रभावों के विभिन्न संयोजनों के तहत जलवायु का विश्लेषण किया गया, जिसमें आग लगने के मौसम संबंधी जोखिम पर मानवीय गतिविधियों के प्रभावों का आकलन किया गया.
पिछले अध्ययनों में पाया गया था कि मानवीय गतिविधियों और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तथा वायु प्रदूषण से आग लगने का खतरा बढ़ जाता है. वैज्ञानिकों ने कहा कि इन कारकों का विशिष्ट प्रभाव अस्पष्ट रहा है.
अमेरिका में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसी) सांता बारबरा से अध्ययन के सह-लेखक डेनिएल टॉमा ने कहा कि जंगल में आग लगने और फैलने के लिए, एक उपयुक्त मौसम की स्थिति की आवश्यकता होती है- आपको गर्म, शुष्क और हवा चलने जैसी स्थिति की जरूरत होती है.
पढ़ें- आलोचनाओं के बीच वाट्सएप ने नई नीति का क्रियान्वयन तीन महीने के लिए टाला
ट्रॉमा ने कहा कि जब ये स्थितियां अपने सबसे चरम पर होती हैं, तो वे वास्तव में भयानक, गंभीर आग का कारण बन सकती हैं.
अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2080 तक, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों से पश्चिमी उत्तरी अमेरिका, भूमध्यरेखीय अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में जंगल की आग का खतरा कम से कम 50 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है, जबकि भूमध्य क्षेत्र, दक्षिणी अफ्रीका, पूर्वी उत्तर अमेरिका में यह खतरा दोगुना है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, बायोमास जलने और भूमि के उपयोग में परिवर्तन के अधिक क्षेत्रीय प्रभाव हैं. अध्ययन के अनुसार पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और अमेजन में भूमि के उपयोग में बदलाव से आग लगने का खतरा भी बढ़ता है.