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ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने को लेकर वैज्ञानिकों को संदेह

संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने पूर्व-औद्योगिक काल से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य का जिक्र करते हुए कहा कि यदि बड़ी तस्वीर को देखा जाए, तो मुझे लगता है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को संभव बनाने के लिए हमारे पास एक अच्छी योजना है.

ग्लोबल वार्मिंग
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Published : Nov 15, 2021, 1:16 PM IST

ग्लासगो (स्कॉटलैंड) : विश्वभर के नेता और वार्ताकार 'ग्लोबल वार्मिंग' को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को बरकरार रखने के लिए ग्लासगो जलवायु समझौते की एक अच्छे करार के तौर पर प्रशंसा कर रहे हैं. वहीं, कई वैज्ञानिकों को इस बात पर संदेह है कि यह लक्ष्य कायम रह पाएगा या नहीं. संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने पूर्व-औद्योगिक काल से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य का जिक्र करते हुए कहा कि यदि बड़ी तस्वीर को देखा जाए, तो मुझे लगता है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को संभव बनाने के लिए हमारे पास एक अच्छी योजना है.

दुनिया के लगभग 200 देशों के बीच शनिवार देर रात यह समझौता हुआ, जिसके तहत जीवाश्म ईंधनों का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय, इसके उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के भारत के सुझाव को मान्यता दी गई है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यहां हुए COP-26 जलवायु सम्मेलन के अंत में हुए इस करार की सराहना करते हुए इसे 'आगे की दिशा में बड़ा कदम' तथा कोयले के इस्तेमाल को 'कम करने' के लिए पहला अंतराष्ट्रीय समझौता बताया.

जॉनसन ने कहा कि आने वाले वर्षों में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. लेकिन आज का समझौता एक बड़ा कदम है. यह कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय समझौता है. साथ ही यह ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए एक रोडमैप है. लेकिन कई वैज्ञानिकों को इस लक्ष्य के बने रहने पर संदेह है. उनका कहना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य तो भूल ही जाइए. पृथ्वी तापमान दो डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रही है.

पढ़ें : भारत ने सतत कृषि पर सीओपी26 के कार्य एजेंडा पर हस्ताक्षर किए

बता दें कि अमेरिका स्थित 'प्रिंसटन यूनिवर्सिटी' के जलवायु वैज्ञानिक माइकल ओप्पेनहीम ने रविवार को कहा कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य ग्लासगो सम्मेलन से पहले ही खत्म होने की कगार पर है और अब इसे मृत घोषित करने का समय आ गया है.

एस्पिनोसा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की गणना के अनुसार, 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए उत्सर्जन को 2030 तक आधा करने की आवश्यकता है, लेकिन यह 2010 के बाद से करीब 14 प्रतिशत बढ़ा है. जर्मन अनुसंधानकर्ता हैन्स ओट्टो पोर्टनर ने कहा कि ग्लासगो सम्मेलन में काम किया गया, लेकिन पर्याप्त प्रगति नहीं हुई. वार्मिंग दो डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी. यह प्रकृति, मानव जीवन, आजीविका, निवास और समृद्धि के लिए खतरा पैदा करने वाली बात है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने ग्लासगो में तापमान को कम करने के लिए बड़े बदलाव किए जाने की उम्मीद की थी, लेकिन मामूली बदलाव ही देखने को मिले.

एमआईटी के प्रोफेसर जॉन स्टेरमैन ने कहा कि अगर तेल और गैस के साथ कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से और जल्द से जल्द समाप्त नहीं किया जाता, तो वार्मिंग को 1.5 या दो डिग्री तक भी सीमित करने का कोई व्यावहारिक तरीका उपलब्ध नहीं है.

(पीटीआई-भाषा)

ग्लासगो (स्कॉटलैंड) : विश्वभर के नेता और वार्ताकार 'ग्लोबल वार्मिंग' को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को बरकरार रखने के लिए ग्लासगो जलवायु समझौते की एक अच्छे करार के तौर पर प्रशंसा कर रहे हैं. वहीं, कई वैज्ञानिकों को इस बात पर संदेह है कि यह लक्ष्य कायम रह पाएगा या नहीं. संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने पूर्व-औद्योगिक काल से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य का जिक्र करते हुए कहा कि यदि बड़ी तस्वीर को देखा जाए, तो मुझे लगता है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को संभव बनाने के लिए हमारे पास एक अच्छी योजना है.

दुनिया के लगभग 200 देशों के बीच शनिवार देर रात यह समझौता हुआ, जिसके तहत जीवाश्म ईंधनों का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय, इसके उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के भारत के सुझाव को मान्यता दी गई है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यहां हुए COP-26 जलवायु सम्मेलन के अंत में हुए इस करार की सराहना करते हुए इसे 'आगे की दिशा में बड़ा कदम' तथा कोयले के इस्तेमाल को 'कम करने' के लिए पहला अंतराष्ट्रीय समझौता बताया.

जॉनसन ने कहा कि आने वाले वर्षों में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. लेकिन आज का समझौता एक बड़ा कदम है. यह कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय समझौता है. साथ ही यह ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए एक रोडमैप है. लेकिन कई वैज्ञानिकों को इस लक्ष्य के बने रहने पर संदेह है. उनका कहना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य तो भूल ही जाइए. पृथ्वी तापमान दो डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रही है.

पढ़ें : भारत ने सतत कृषि पर सीओपी26 के कार्य एजेंडा पर हस्ताक्षर किए

बता दें कि अमेरिका स्थित 'प्रिंसटन यूनिवर्सिटी' के जलवायु वैज्ञानिक माइकल ओप्पेनहीम ने रविवार को कहा कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य ग्लासगो सम्मेलन से पहले ही खत्म होने की कगार पर है और अब इसे मृत घोषित करने का समय आ गया है.

एस्पिनोसा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की गणना के अनुसार, 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए उत्सर्जन को 2030 तक आधा करने की आवश्यकता है, लेकिन यह 2010 के बाद से करीब 14 प्रतिशत बढ़ा है. जर्मन अनुसंधानकर्ता हैन्स ओट्टो पोर्टनर ने कहा कि ग्लासगो सम्मेलन में काम किया गया, लेकिन पर्याप्त प्रगति नहीं हुई. वार्मिंग दो डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी. यह प्रकृति, मानव जीवन, आजीविका, निवास और समृद्धि के लिए खतरा पैदा करने वाली बात है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने ग्लासगो में तापमान को कम करने के लिए बड़े बदलाव किए जाने की उम्मीद की थी, लेकिन मामूली बदलाव ही देखने को मिले.

एमआईटी के प्रोफेसर जॉन स्टेरमैन ने कहा कि अगर तेल और गैस के साथ कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से और जल्द से जल्द समाप्त नहीं किया जाता, तो वार्मिंग को 1.5 या दो डिग्री तक भी सीमित करने का कोई व्यावहारिक तरीका उपलब्ध नहीं है.

(पीटीआई-भाषा)

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