वॉशिंगटन: किशोर बच्चों पर मां-बाप की जबरदस्ती, बार-बार उन्हें टोकना, उनके व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश करना बच्चों के सामाजिक और शैक्षिक विकास को रोकता है. यही बच्चे जब बड़े होते हैं और 32 वर्ष की उम्र तक पहुंचते हैं तो इनका व्यक्तित्व संकुचित और अर्द्धविकसित रह जाता है. वर्जीनिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन सोसायटी फॉर रिसर्च इन चाइल्ड डेवलपमेंट की पत्रिका चाइल्ड डेवलपमेंट में प्रकाशित किया गया है.
वर्जीनिया विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता और अध्ययन के प्रमुख लेखक एमिली लोएब ने कहा कि माता-पिता, शिक्षकों, और चिकित्सकों को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि किशोर बच्चों पर मां-बाप का अत्यधिक दबाव और नियंत्रण कई परेशानियों को जन्म दे सकता है.
लोएब ने कहा कि मां-बाप का बच्चों के पालन-पोषण के लिए अत्यधिक नियंत्रण वाला व्यवहार उनके चिंतन मनन की शक्ति, उनकी सोच और उनके नजरिए पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.
पिछले कई शोधों से यह पता चलता है कि किशोरों को मनोवैज्ञानिक तरीके से काबू में करने की कोशिश गलत है. किशोरों का इस तरह से पालन-पोषण कई तरह की समस्याओं को जन्म देता है. मां-बाप के कुछ व्यवहार जैसे कि बच्चों पर नाराज होने पर उन्हें प्यार और दुलार नहीं करना, उन्हें समझने की कोशिश भी नहीं करना, गलती पर बच्चों को शर्मिंदगी का एहसास दिलाना यह मां-बाप के नकारात्मक व्यवहार को दर्शाता है.
जो मां-बाप अपने बच्चों के साथ इस तरह से पेश आते हैं वह आगे चलकर अपने बच्चों के मन से अपने लिए सम्मान खो देते हैं. ऐसे मां-बाप के बच्चों को उनके परिवेश में घुटन होने लगती है और वह आजाद होना चाहते हैं. ऐसे बच्चे चिड़चिड़े और कम आत्मविश्वास वाले हो जाते हैं.
इस विषय के अध्ययन के लिए 13 से 32 वर्ष की आयु तक के 184 युवाओं पर शोध किया गया. यह युवा दक्षिण-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों से थे और इनकी अलग-अलग सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि थी. इस सैंपल में आधा ग्रुप लड़कों का और आधा लड़कियों का था. 42 प्रतिशत ग्रुप ने खुद को नस्लीय अल्पसंख्यक और अन्य जातीय समूहों से बताया. इस अध्ययन में 13 वर्ष की आयु में पारिवारिक आय, लिंग और अन्य बिंदुओं पर भी विचार किया गया.
इस अध्ययन से पता चला कि 13 वर्ष की आयु में जिन किशोर बच्चों के मां-बाप का व्यवहार अत्यधिक नियंत्रण वाला था वह 27 वर्ष के होते होते संकुचित स्वभाव के हो गए. वह कम सोशल थे और उनके बहुत कम मित्र थे. वहीं 15 से 16 साल की उम्र में वह किशोर मानसिक रूप परिपक्व नहीं थे.
वर्जीनिया विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर ह्यूग कैली जो इस अध्ययन के सह लेखक भी हैं, उन्होंने कहा कि भले ही मां-बाप अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए सही मार्गदर्शन का प्रयास करते हों लेकिन किशोरावस्था में उनका अत्यधिक दबाव बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिसकी भविष्य में सुधार की बहुत कम गुंजाइश है.