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जापान में घट रहे हैं पुरुष शाही वंशज, क्या महिला बनेगी सम्राट

साल 2021 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में 156 देशों में से जापान 120वें स्थान पर है, जो जी-7 देशों में सबसे खराब है. महिला राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के लिए 2018 में कानून पारित होने के बावजूद, डाइट लोअर हाउस में हाल के चुनावों में वास्तव में महिला प्रतिनिधित्व में गिरावट देखी गई, और प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की 20 सदस्यीय कैबिनेट (PM Fumio Kishida's 20-member cabinet) में केवल तीन महिलाएं हैं.

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Published : Jan 28, 2022, 2:30 PM IST

सिडनी : राजकुमारी एको, जापान के सम्राट नारुहितो और महारानी मासाको की इकलौती संतान, पिछले महीने 20 वर्ष की हो गईं. अपने शाही वंश के बावजूद, ऐको सिंहासन पर कभी नहीं बैठ पाएंगी. जापान के लोग एक के बाद एक मतदान में लगातार यह कहते रहे हैं कि उन्हें एक महिला के सम्राट बनने या शाही परिवार की महिला सदस्य की संतान के सम्राट बनने पर कोई एतराज नहीं है. लेकिन, जापान का साम्राज्यवादी घरेलू कानून इसकी मनाही करता है - और पुरुषों के उत्तराधिकार की डोर कमजोर होने के बावजूद, ऐसा नहीं लगता कि यह जल्द बदल सकेगा.

महिला सम्राटों का इतिहास

कोशित्सु तेनपन (या शाही घरेलू कानून) केवल पुरुषों को सिंहासन पर बैठने की अनुमति देता है. लेकिन महिला सम्राटों को प्रतिबंधित करने वाला यह कानून केवल 1889 में मेजी काल के समय का है, जब जापान ने पश्चिम के लिए अपना दरवाजा फिर से खोल दिया था और प्रशिया पर अपनी नई सरकार का मॉडल तैयार किया था, जिसने महिला वंश के सम्राटों पर प्रतिबंध लगा दिया था.

इससे पहले, जापान में महिला सम्राटों का इतिहास रहा है. जापान की पहली महिला सम्राट जिसे हम नाम से जानते हैं, वह तीसरी शताब्दी में हिमिको थी. युद्ध की लंबी अवधि के बाद उसने जापान में शांति स्थापित की, चीन को कई राजनयिक मिशन भेजे और चीनी स्रोतों के अनुसार, उसकी उत्तराधिकारी भी एक महिला ही थी.

सदियों तक जापानी इतिहास से गायब रहने के बाद, हिमिको की स्मृति अब एक स्वर्ण युग के तौर पर सामने आ रही है, जो मंगा से लेकर शुभंकर तक हर चीज में फिर से प्रकट हो रही है. हिमिको के बाद से, जापान में कम से कम आठ महिलाओं ने सम्राट के रूप में शासन किया है. पहली वर्ष 592 में थी; सिंहासन पर बैठने वाली अंतिम महिला गो-सकुरमाची थी, जिसने 1762 से 1771 तक शासन किया.

सुधार प्रस्ताव दूर तक नहीं जाते

2005 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइज़ुमी के नेतृत्व में महिला उत्तराधिकार पर आधुनिक प्रतिबंध समाप्त होने की संभावना थी. लेकिन जब वास्तव में डायट (जापान की संसद) में इस बारे में बहस चल रही थी, तो खबर आई कि प्रिंस अकिशिनो (नारुहितो के छोटे भाई) एक और बच्चे की उम्मीद कर रहे थे.

सुधार की प्रक्रिया थम गई और जब प्रिंस हिसाहितो का जन्म हुआ, जो लगभग 41 वर्षों में शाही परिवार के पहले नए पुरुष सदस्य बने, तो पूरी बहस को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. लेकिन समस्या दूर नहीं हुई है. तब से अब तक शाही परिवार में कोई लड़का पैदा नहीं हुआ है, और जब भी शाही परिवार की महिला सदस्य किसी सामान्य व्यक्ति से शादी करती है, तो वे अपना शाही दर्जा खो देती हैं. राजकुमार अकिशिनो की बड़ी बेटी पूर्व राजकुमारी माको ऐसा करने वाली आखिरी थीं. वह अभी हाल ही में अपने पति, केई कोमुरो, जो कानून के पेशे से जुड़े हैं, के साथ न्यूयॉर्क चली गई है.

दिसंबर में, जापान सरकार के एक पैनल ने सिंहासन के लिए पुरुष उत्तराधिकारियों की धीरे-धीरे घटती संख्या को देखते हुए दो प्रस्ताव रखे: माको जैसे आम लोगों से शादी करने वाली राजकुमारियों को शाही परिवार के कामकाजी सदस्यों के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने की अनुमति दी जाए. साथ ही जापान की पुरानी रियासत के पुरुषों को शाही परिवार द्वारा फिर से अपना लिया जाए (जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपना रूतबा खो चुके थे). ये केवल प्रस्ताव हैं, और कोई नहीं जानता कि इन्हें मंजूर किया जाएगा या नहीं और अगर मंजूर किया भी जाएगा तो इसके अपने नुकसान हैं.

उदाहरण के लिए, इन पूर्व रियासतों में से कई, युद्ध के बाद मर चुके हैं। इसके अलावा, एक मजबूत तर्क है कि संविधान (जो मूल परिवार के आधार पर भेदभाव को रोकता है) कुछ रियासतों के परिवारों को शाही स्थिति बहाल करना असंभव बनाता है. और भले ही शाही परिवार में महिलाओं को शादी के समय शाही स्थिति बनाए रखने की अनुमति देने के लिए सुधार किए जाते हैं, सरकार उनके जीवनसाथी या बच्चों को ऐसा दर्जा देने पर विचार नहीं कर रही है। ऐसा करने से महिला सम्राटों या शाही परिवार की महिला सदस्यों की संतान के सम्राट बनने के लिए मार्ग प्रशस्त हो सकता है, जिसका परंपरावादी इसका कट्टर विरोध करते हैं.

कुछ कट्टर परंपरावादी ऐसा दावा करते हैं कि करीब 700 ईसापूर्व में पहले सम्राट जिम्मू से शाही परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी एक विशेष शाही 'वाई' गुणसूत्र का अस्तित्व रहा है. उनके अनुसार एको के बच्चे को सिंहासन पर बिठाने की अनुमति देने से यह जादू का धागा टूट जाएगा और उनका तर्क है कि इससे शाही परिवार की वैधता पर सवाल उठेगा. इस बीच, महिला उत्तराधिकार पर प्रतिबंध की समीक्षा, 2005 के बाद से फिर से नहीं की गई है.

जनता क्या सोचती है

क्राउन प्रिंस अकिशिनो, जो अब अपने भाई के बाद सिंहासन के लिए दूसरे स्थान पर है, लोगों की नजर में कम लोकप्रिय है. घर के नवीनीकरण पर अकिशिनो के 4.3 अरब येन (पांच करोड़ डॉलर से अधिक) के खर्च के साथ-साथ उनकी बेटी माको की कोमुरो से शादी के घोटाले को जनता अच्छी नजर से नहीं देख रही है.

इसने महिला उत्तराधिकार के विचार को हवा देने में योगदान दिया है. हाल के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 85 प्रतिशत जापानी एक महिला सम्राट के पक्ष में थे और 80 प्रतिशत से अधिक वास्तव में राजकुमारी एको को अगला सम्राट बनाना चाहते थे. 1999 में इसी तरह का एक सर्वेक्षण किए जाने पर महिला सम्राट के विचार का समर्थन करने वाले 35% लोगों के बाद से यह एक बहुत बड़ा बदलाव है.

महिला वंश पर प्रतिबंध को सही ठहराना कठिन होता जा रहा है. साल 2021 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में 156 देशों में से जापान 120वें स्थान पर है, जो जी-7 देशों में सबसे खराब है. महिला राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के लिए 2018 में कानून पारित होने के बावजूद, डाइट लोअर हाउस में हाल के चुनावों में वास्तव में महिला प्रतिनिधित्व में गिरावट देखी गई, और प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की 20 सदस्यीय कैबिनेट (PM Fumio Kishida's 20-member cabinet) में केवल तीन महिलाएं हैं.

(पीटीआई-भाषा)

सिडनी : राजकुमारी एको, जापान के सम्राट नारुहितो और महारानी मासाको की इकलौती संतान, पिछले महीने 20 वर्ष की हो गईं. अपने शाही वंश के बावजूद, ऐको सिंहासन पर कभी नहीं बैठ पाएंगी. जापान के लोग एक के बाद एक मतदान में लगातार यह कहते रहे हैं कि उन्हें एक महिला के सम्राट बनने या शाही परिवार की महिला सदस्य की संतान के सम्राट बनने पर कोई एतराज नहीं है. लेकिन, जापान का साम्राज्यवादी घरेलू कानून इसकी मनाही करता है - और पुरुषों के उत्तराधिकार की डोर कमजोर होने के बावजूद, ऐसा नहीं लगता कि यह जल्द बदल सकेगा.

महिला सम्राटों का इतिहास

कोशित्सु तेनपन (या शाही घरेलू कानून) केवल पुरुषों को सिंहासन पर बैठने की अनुमति देता है. लेकिन महिला सम्राटों को प्रतिबंधित करने वाला यह कानून केवल 1889 में मेजी काल के समय का है, जब जापान ने पश्चिम के लिए अपना दरवाजा फिर से खोल दिया था और प्रशिया पर अपनी नई सरकार का मॉडल तैयार किया था, जिसने महिला वंश के सम्राटों पर प्रतिबंध लगा दिया था.

इससे पहले, जापान में महिला सम्राटों का इतिहास रहा है. जापान की पहली महिला सम्राट जिसे हम नाम से जानते हैं, वह तीसरी शताब्दी में हिमिको थी. युद्ध की लंबी अवधि के बाद उसने जापान में शांति स्थापित की, चीन को कई राजनयिक मिशन भेजे और चीनी स्रोतों के अनुसार, उसकी उत्तराधिकारी भी एक महिला ही थी.

सदियों तक जापानी इतिहास से गायब रहने के बाद, हिमिको की स्मृति अब एक स्वर्ण युग के तौर पर सामने आ रही है, जो मंगा से लेकर शुभंकर तक हर चीज में फिर से प्रकट हो रही है. हिमिको के बाद से, जापान में कम से कम आठ महिलाओं ने सम्राट के रूप में शासन किया है. पहली वर्ष 592 में थी; सिंहासन पर बैठने वाली अंतिम महिला गो-सकुरमाची थी, जिसने 1762 से 1771 तक शासन किया.

सुधार प्रस्ताव दूर तक नहीं जाते

2005 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइज़ुमी के नेतृत्व में महिला उत्तराधिकार पर आधुनिक प्रतिबंध समाप्त होने की संभावना थी. लेकिन जब वास्तव में डायट (जापान की संसद) में इस बारे में बहस चल रही थी, तो खबर आई कि प्रिंस अकिशिनो (नारुहितो के छोटे भाई) एक और बच्चे की उम्मीद कर रहे थे.

सुधार की प्रक्रिया थम गई और जब प्रिंस हिसाहितो का जन्म हुआ, जो लगभग 41 वर्षों में शाही परिवार के पहले नए पुरुष सदस्य बने, तो पूरी बहस को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. लेकिन समस्या दूर नहीं हुई है. तब से अब तक शाही परिवार में कोई लड़का पैदा नहीं हुआ है, और जब भी शाही परिवार की महिला सदस्य किसी सामान्य व्यक्ति से शादी करती है, तो वे अपना शाही दर्जा खो देती हैं. राजकुमार अकिशिनो की बड़ी बेटी पूर्व राजकुमारी माको ऐसा करने वाली आखिरी थीं. वह अभी हाल ही में अपने पति, केई कोमुरो, जो कानून के पेशे से जुड़े हैं, के साथ न्यूयॉर्क चली गई है.

दिसंबर में, जापान सरकार के एक पैनल ने सिंहासन के लिए पुरुष उत्तराधिकारियों की धीरे-धीरे घटती संख्या को देखते हुए दो प्रस्ताव रखे: माको जैसे आम लोगों से शादी करने वाली राजकुमारियों को शाही परिवार के कामकाजी सदस्यों के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने की अनुमति दी जाए. साथ ही जापान की पुरानी रियासत के पुरुषों को शाही परिवार द्वारा फिर से अपना लिया जाए (जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपना रूतबा खो चुके थे). ये केवल प्रस्ताव हैं, और कोई नहीं जानता कि इन्हें मंजूर किया जाएगा या नहीं और अगर मंजूर किया भी जाएगा तो इसके अपने नुकसान हैं.

उदाहरण के लिए, इन पूर्व रियासतों में से कई, युद्ध के बाद मर चुके हैं। इसके अलावा, एक मजबूत तर्क है कि संविधान (जो मूल परिवार के आधार पर भेदभाव को रोकता है) कुछ रियासतों के परिवारों को शाही स्थिति बहाल करना असंभव बनाता है. और भले ही शाही परिवार में महिलाओं को शादी के समय शाही स्थिति बनाए रखने की अनुमति देने के लिए सुधार किए जाते हैं, सरकार उनके जीवनसाथी या बच्चों को ऐसा दर्जा देने पर विचार नहीं कर रही है। ऐसा करने से महिला सम्राटों या शाही परिवार की महिला सदस्यों की संतान के सम्राट बनने के लिए मार्ग प्रशस्त हो सकता है, जिसका परंपरावादी इसका कट्टर विरोध करते हैं.

कुछ कट्टर परंपरावादी ऐसा दावा करते हैं कि करीब 700 ईसापूर्व में पहले सम्राट जिम्मू से शाही परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी एक विशेष शाही 'वाई' गुणसूत्र का अस्तित्व रहा है. उनके अनुसार एको के बच्चे को सिंहासन पर बिठाने की अनुमति देने से यह जादू का धागा टूट जाएगा और उनका तर्क है कि इससे शाही परिवार की वैधता पर सवाल उठेगा. इस बीच, महिला उत्तराधिकार पर प्रतिबंध की समीक्षा, 2005 के बाद से फिर से नहीं की गई है.

जनता क्या सोचती है

क्राउन प्रिंस अकिशिनो, जो अब अपने भाई के बाद सिंहासन के लिए दूसरे स्थान पर है, लोगों की नजर में कम लोकप्रिय है. घर के नवीनीकरण पर अकिशिनो के 4.3 अरब येन (पांच करोड़ डॉलर से अधिक) के खर्च के साथ-साथ उनकी बेटी माको की कोमुरो से शादी के घोटाले को जनता अच्छी नजर से नहीं देख रही है.

इसने महिला उत्तराधिकार के विचार को हवा देने में योगदान दिया है. हाल के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 85 प्रतिशत जापानी एक महिला सम्राट के पक्ष में थे और 80 प्रतिशत से अधिक वास्तव में राजकुमारी एको को अगला सम्राट बनाना चाहते थे. 1999 में इसी तरह का एक सर्वेक्षण किए जाने पर महिला सम्राट के विचार का समर्थन करने वाले 35% लोगों के बाद से यह एक बहुत बड़ा बदलाव है.

महिला वंश पर प्रतिबंध को सही ठहराना कठिन होता जा रहा है. साल 2021 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में 156 देशों में से जापान 120वें स्थान पर है, जो जी-7 देशों में सबसे खराब है. महिला राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के लिए 2018 में कानून पारित होने के बावजूद, डाइट लोअर हाउस में हाल के चुनावों में वास्तव में महिला प्रतिनिधित्व में गिरावट देखी गई, और प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की 20 सदस्यीय कैबिनेट (PM Fumio Kishida's 20-member cabinet) में केवल तीन महिलाएं हैं.

(पीटीआई-भाषा)

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