वाशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत, चीन और रूस पर बड़ा आरोप लगाया है. ट्रंप ने कहा कि ये तीनों देश अपनी वायु गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखते, जबकि अमेरिका रखता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने पेरिस समझौते को एकतरफा, ऊर्जा बर्बाद करने वाला बताते हुए कहा कि वह इस समझौते से अलग हो गए जो अमेरिका को एक गैर प्रतिस्पर्धी राष्ट्र बना देता.
ट्रंप ने ऊर्जा पर अपने संबोधन में कहा कि इन दंडात्मक पाबंदियों को लागू करके और पाबंदियों से इतर वाशिंगटन के कट्टर-वामपंथी सनकी डेमोक्रेट्स असंख्य अमेरिकी नौकरियों, कारखानों, उद्योगों को चीन और प्रदूषण फैला रहे अन्य देशों को भेज देते.
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वे चाहते हैं कि हम अपने वायु प्रदूषण पर ध्यान रखें लेकिन चीन इसका ध्यान नहीं रखता. सच कहूं तो भारत और रूस भी अपने वायु प्रदूषण पर ध्यान नहीं रखता. लेकिन हम रखते हैं. उन्होंने कहा कि जब तक मैं राष्ट्रपति रहूंगा तब तक हम हमेशा अमेरिका को पहले रखेंगे. यह बहुत ही सीधी-सी बात है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि वर्षों तक हमने दूसरे देशों को पहले रखा और अब हम अमेरिका को पहले रखेंगे, जैसा कि हमने अपने देश में शहरों में देखा कि कट्टरपंथी डेमोक्रेट्स न केवल टेक्सास के तेल उद्योग को बर्बाद करना चाहते हैं बल्कि वे हमारे देश को बर्बाद करना चाहते हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसे कट्टरपंथी डेमोक्रेट्स किसी भी रूप में देश को प्यार नहीं करते.
उन्होंने कहा कि वह एकतरफा, ऊर्जा बर्बाद करने वाले पेरिस जलवायु समझौते से अलग हो गए थे. उन्होंने कहा कि यह एक आपदा थी और अमेरिका को इसके लिए अरबों डॉलर का हर्जाना देना पड़ता.
ट्रंप ने कहा कि पेरिस जलवायु समझौते से हम एक गैर प्रतिस्पर्धी देश बन जाते. हमने ओबामा प्रशासन की नौकरियों को कुचलने वाली ऊर्जा योजना को रद्द कर दिया.
उन्होंने आगे कहा कि करीब 70 वर्षों में पहली बार हम ऊर्जा निर्यातक बने. अमेरिका अब तेल और प्राकृतिक गैस का नंबर एक उत्पादक है. भविष्य में इस स्थान को बनाए रखने के लिए मेरा प्रशासन आज एलान कर रहा है कि अमेरिका के तरलीकृत प्राकृतिक गैस के लिए निर्यात प्राधिकार पत्र को 2050 तक के लिए बढ़ाया जा सकता है.
आपको बता दें कि दिसंबर 2018 में प्रकाशित ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है. 2017 में चार शीर्ष उत्सर्जक देश चीन (27 फीसदी), अमेरिका (15 फीसदी), यूरोपीय संघ (10 फीसदी) और भारत (7 फीसदी) थे.