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भारतीय-अमेरिकियों ने 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के दर्द को किया याद - displacement of kashmiri pandit

कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की 30वीं वर्षगांठ पर अमेरिका विभिन्न हिस्सों में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. इस दौरान भारतीय-अमेरिकियों ने चरमपंथियों द्वारा पंडितों को भगाए जाने की निंदा भी की गई. पढ़ें विस्तार से..

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Published : Jan 20, 2020, 8:26 PM IST

Updated : Feb 17, 2020, 6:46 PM IST

वाशिंगटन : भारतीय-अमेरिकियों ने कश्मीर घाटी से चरमपंथियों द्वारा पंडितों को भगाए जाने की निन्दा करते हुए इस समुदाय के विस्थापन की 30वीं वर्षगांठ पर अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया.

व्हाइट हाउस के सामने भी एक कार्यक्रम किया गया. इन लोगों ने पारंपरिक कश्मीरी परिधान फिरन पहन रखे थे और सिर पर तिरंगी टोपियां लगा रखी थीं.

कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को रेखांकित करने के लिए अमेरिका के तीन दर्जन से अधिक शहरों और कस्बों में भारतीय-अमेरिकी लोगों ने शांतिपूर्ण रैलियां निकालीं, हाथों में मोमबत्तियां लेकर जुलूस निकाले और जनसभाएं कीं.

न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, बोस्टन, मियामी, फिलाडेल्फिया, लॉस एंजिलिस, डेट्रोइट, ह्यूस्टन, सैक्रामेंटो, सैन जोस, कोंकोर्ड, मिल्पिटास, नैपरविले और एडिसन जैसे शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.

कश्मीरी पंडितों ने पारंपरिक कश्मीरी परिधान 'फिरन' पहन रखे थे. महिलाओं के सिर पर भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंग वाली तिरंगी टोपियां थीं.

वाशिंगटन डीसी और इसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले कश्मीरी पंडित बड़ी संख्या में व्हाइट हाउस के सामने एकत्र हुए और कश्मीर से अपने विस्थापन से जुड़ी व्यथा को रेखांकित किया.

कार्यक्रम का आयोजन 'कश्मीर ओवरसीज एसोसिएशन' (केओए) ने किया.

कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले जाने-माने भारतीय-अमेरिकी विजय सजवाल ने कहा, '19 जनवरी 1990 की रात को कोई भी कश्मीरी पंडित भयावह यादों की वजह से याद नहीं करना चाहता. और यह एक ऐसा दिन है जिसे कोई भी कश्मीरी विस्थापित भुला नहीं पाएगा.'

कार्यक्रम में शामिल हुए शकुन मलिक ने कहा, 'हमने अपने बुजुर्गों, बच्चों, अपनी महिलाओं के सम्मान और शायद खुद को बचाने के लिए कश्मीर छोड़ दिया. कश्मीरी पंडित, मूल कश्मीरी तीन दशक बाद भी अपने पूर्वजों की भूमि पर नहीं लौट पाए हैं.'

इस कार्यक्रम में शामिल महिला स्वप्ना रैना ने कहा कि 1989-90 में उन्हें और उनके परिवार सहित साढ़े तीन लाख से अधिक कश्मीरी हिन्दुओं (पंडित के रूप में जाने जाने वाले) को अपने पूर्वजों की भूमि छोड़नी पड़ी.

वहीं, सिलिकॉन वैली में 200 से अधिक कश्मीरी तथा अन्य भारतीय लोग एकत्र हुए. उन्होंने कश्मीरी पंडितों की व्यथा को रेखांकित किया और भारतीय मूल्यों में उनके योगदान को याद किया.

हाड़ जमा देने वाली सर्दी में शिकागो में रहने वाले कश्मीरी हिन्दुओं ने हाथों में मोमबत्तियां लेकर जुलूस निकाला और भारत तथा अमेरिका का राष्ट्रगान गाया.

इस अवसर पर विभिन्न शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन करने वाली हिन्दू-अमेरिकन फाउंडेशन ने कहा कि 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों ने 'अकल्पीय विनाश' देखा.

इसने कहा, 'पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और लक्षित हत्याओं, बलात्कार, धमकियों, संपत्तियों और धर्मस्थलों को नष्ट करने का अभियान वर्षों तक चलता रहा, लेकिन 19 जनवरी 1990 की घटना अत्यंत खौफनाक थी जब दहशत के चलते 95 प्रतिशत कश्मीरी हिन्दू आबादी को कश्मीर छोड़ना पड़ा.'

ह्यूस्टन में कश्मीरी पंडितों ने ह्यूस्टन फूड बैंक में सेवा की और जरूरतमंदों को आवश्यक भोजन सामग्री दान की.

ये भी पढ़ें- सितम के 30 साल : कश्मीरी पंडित आज तक नहीं भूले दरिंदगी की दास्तान

कार्यक्रमों के आयोजन में एसोसिएशन ऑफ इंडो अमेरिकन और इंडो-अमेरिकन कश्मीरी फोरम की भी भागीदारी रही.

प्रदर्शनकारियों ने जांच आयोग बनाने और कश्मीरी पंडितों को भगाने के जिम्मेदार लोगों को दंडित करने की मांग की.

वाशिंगटन : भारतीय-अमेरिकियों ने कश्मीर घाटी से चरमपंथियों द्वारा पंडितों को भगाए जाने की निन्दा करते हुए इस समुदाय के विस्थापन की 30वीं वर्षगांठ पर अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया.

व्हाइट हाउस के सामने भी एक कार्यक्रम किया गया. इन लोगों ने पारंपरिक कश्मीरी परिधान फिरन पहन रखे थे और सिर पर तिरंगी टोपियां लगा रखी थीं.

कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को रेखांकित करने के लिए अमेरिका के तीन दर्जन से अधिक शहरों और कस्बों में भारतीय-अमेरिकी लोगों ने शांतिपूर्ण रैलियां निकालीं, हाथों में मोमबत्तियां लेकर जुलूस निकाले और जनसभाएं कीं.

न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, बोस्टन, मियामी, फिलाडेल्फिया, लॉस एंजिलिस, डेट्रोइट, ह्यूस्टन, सैक्रामेंटो, सैन जोस, कोंकोर्ड, मिल्पिटास, नैपरविले और एडिसन जैसे शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.

कश्मीरी पंडितों ने पारंपरिक कश्मीरी परिधान 'फिरन' पहन रखे थे. महिलाओं के सिर पर भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंग वाली तिरंगी टोपियां थीं.

वाशिंगटन डीसी और इसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले कश्मीरी पंडित बड़ी संख्या में व्हाइट हाउस के सामने एकत्र हुए और कश्मीर से अपने विस्थापन से जुड़ी व्यथा को रेखांकित किया.

कार्यक्रम का आयोजन 'कश्मीर ओवरसीज एसोसिएशन' (केओए) ने किया.

कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले जाने-माने भारतीय-अमेरिकी विजय सजवाल ने कहा, '19 जनवरी 1990 की रात को कोई भी कश्मीरी पंडित भयावह यादों की वजह से याद नहीं करना चाहता. और यह एक ऐसा दिन है जिसे कोई भी कश्मीरी विस्थापित भुला नहीं पाएगा.'

कार्यक्रम में शामिल हुए शकुन मलिक ने कहा, 'हमने अपने बुजुर्गों, बच्चों, अपनी महिलाओं के सम्मान और शायद खुद को बचाने के लिए कश्मीर छोड़ दिया. कश्मीरी पंडित, मूल कश्मीरी तीन दशक बाद भी अपने पूर्वजों की भूमि पर नहीं लौट पाए हैं.'

इस कार्यक्रम में शामिल महिला स्वप्ना रैना ने कहा कि 1989-90 में उन्हें और उनके परिवार सहित साढ़े तीन लाख से अधिक कश्मीरी हिन्दुओं (पंडित के रूप में जाने जाने वाले) को अपने पूर्वजों की भूमि छोड़नी पड़ी.

वहीं, सिलिकॉन वैली में 200 से अधिक कश्मीरी तथा अन्य भारतीय लोग एकत्र हुए. उन्होंने कश्मीरी पंडितों की व्यथा को रेखांकित किया और भारतीय मूल्यों में उनके योगदान को याद किया.

हाड़ जमा देने वाली सर्दी में शिकागो में रहने वाले कश्मीरी हिन्दुओं ने हाथों में मोमबत्तियां लेकर जुलूस निकाला और भारत तथा अमेरिका का राष्ट्रगान गाया.

इस अवसर पर विभिन्न शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन करने वाली हिन्दू-अमेरिकन फाउंडेशन ने कहा कि 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों ने 'अकल्पीय विनाश' देखा.

इसने कहा, 'पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और लक्षित हत्याओं, बलात्कार, धमकियों, संपत्तियों और धर्मस्थलों को नष्ट करने का अभियान वर्षों तक चलता रहा, लेकिन 19 जनवरी 1990 की घटना अत्यंत खौफनाक थी जब दहशत के चलते 95 प्रतिशत कश्मीरी हिन्दू आबादी को कश्मीर छोड़ना पड़ा.'

ह्यूस्टन में कश्मीरी पंडितों ने ह्यूस्टन फूड बैंक में सेवा की और जरूरतमंदों को आवश्यक भोजन सामग्री दान की.

ये भी पढ़ें- सितम के 30 साल : कश्मीरी पंडित आज तक नहीं भूले दरिंदगी की दास्तान

कार्यक्रमों के आयोजन में एसोसिएशन ऑफ इंडो अमेरिकन और इंडो-अमेरिकन कश्मीरी फोरम की भी भागीदारी रही.

प्रदर्शनकारियों ने जांच आयोग बनाने और कश्मीरी पंडितों को भगाने के जिम्मेदार लोगों को दंडित करने की मांग की.

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भारतीय-अमेरिकियों ने 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के दर्द को किया याद



वाशिंगटन, 20 जनवरी (भाषा) भारतीय-अमेरिकियों ने कश्मीर घाटी से चरमपंथियों द्वारा पंडितों को भगाए जाने की निन्दा करते हुए इस समुदाय के विस्थापन की 30वीं वर्षगांठ पर अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया. 

व्हाइट हाउस के सामने भी एक कार्यक्रम किया गया. इन लोगों ने पारंपरिक कश्मीरी परिधान 'फिरन' पहन रखे थे और सिर पर तिरंगी टोपियां लगा रखी थीं.



कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को रेखांकित करने के लिए अमेरिका के तीन दर्जन से अधिक शहरों और कस्बों में भारतीय-अमेरिकी लोगों ने शांतिपूर्ण रैलियां निकालीं, हाथों में मोमबत्तियां लेकर जुलूस निकाले और जनसभाएं कीं.



न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, बोस्टन, मियामी, फिलाडेल्फिया, लॉस एंजिलिस, डेट्रोइट, ह्यूस्टन, सैक्रामेंटो, सैन जोस, कोंकोर्ड, मिल्पिटास, नैपरविले और एडिसन जैसे शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.



कश्मीरी पंडितों ने पारंपरिक कश्मीरी परिधान 'फिरन' पहन रखे थे. महिलाओं के सिर पर भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंग वाली तिरंगी टोपियां थीं.



वाशिंगटन डीसी और इसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले कश्मीरी पंडित बड़ी संख्या में व्हाइट हाउस के सामने एकत्र हुए और कश्मीर से अपने विस्थापन से जुड़ी व्यथा को रेखांकित किया.



कार्यक्रम का आयोजन 'कश्मीर ओवरसीज एसोसिएशन' (केओए) ने किया.



कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले जाने-माने भारतीय-अमेरिकी विजय सजवाल ने कहा, '19 जनवरी 1990 की रात को कोई भी कश्मीरी पंडित भयावह यादों की वजह से याद नहीं करना चाहता. और यह एक ऐसा दिन है जिसे कोई भी कश्मीरी विस्थापित भुला नहीं पाएगा.'



कार्यक्रम में शामिल हुए शकुन मलिक ने कहा, 'हमने अपने बुजुर्गों, बच्चों, अपनी महिलाओं के सम्मान और शायद खुद को बचाने के लिए कश्मीर छोड़ दिया. कश्मीरी पंडित, मूल कश्मीरी तीन दशक बाद भी अपने पूर्वजों की भूमि पर नहीं लौट पाए हैं.'



इस कार्यक्रम में शामिल महिला स्वप्ना रैना ने कहा कि 1989-90 में उन्हें और उनके परिवार सहित साढ़े तीन लाख से अधिक कश्मीरी हिन्दुओं (पंडित के रूप में जाने जाने वाले) को अपने पूर्वजों की भूमि छोड़नी पड़ी.



वहीं, सिलिकॉन वैली में 200 से अधिक कश्मीरी तथा अन्य भारतीय लोग एकत्र हुए. उन्होंने कश्मीरी पंडितों की व्यथा को रेखांकित किया और भारतीय मूल्यों में उनके योगदान को याद किया.



हाड़ जमा देने वाली सर्दी में शिकागो में रहने वाले कश्मीरी हिन्दुओं ने हाथों में मोमबत्तियां लेकर जुलूस निकाला और भारत तथा अमेरिका का राष्ट्रगान गाया.



इस अवसर पर विभिन्न शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन करने वाली हिन्दू-अमेरिकन फाउंडेशन ने कहा कि 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों ने 'अकल्पीय विनाश' देखा.



इसने कहा, 'पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और लक्षित हत्याओं, बलात्कार, धमकियों, संपत्तियों और धर्मस्थलों को नष्ट करने का अभियान वर्षों तक चलता रहा, लेकिन 19 जनवरी 1990 की घटना अत्यंत खौफनाक थी जब दहशत के चलते 95 प्रतिशत कश्मीरी हिन्दू आबादी को कश्मीर छोड़ना पड़ा.'



ह्यूस्टन में कश्मीरी पंडितों ने ह्यूस्टन फूड बैंक में सेवा की और जरूरतमंदों को आवश्यक भोजन सामग्री दान की.



कार्यक्रमों के आयोजन में एसोसिएशन ऑफ इंडो अमेरिकन और इंडो-अमेरिकन कश्मीरी फोरम की भी भागीदारी रही.



प्रदर्शनकारियों ने जांच आयोग बनाने और कश्मीरी पंडितों को भगाने के जिम्मेदार लोगों को दंडित करने की मांग की.


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Last Updated : Feb 17, 2020, 6:46 PM IST
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