वॉशिंगटन : ह्वाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने पहले भाषण में राष्ट्रपति जो बाइडेन मंगलवार को यह स्पष्ट करेंगे कि अमेरिका किसी भी अन्य देश के साथ 'नया शीत युद्ध' नहीं चाहता.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस ने मीडिया को हाल में दिए साक्षात्कार में नए शीत युद्ध की आशंकाओं के प्रति सचेत करते हुए चीन और अमेरिका से आग्रह किया था कि ये दोनों बड़े एवं प्रभावशाली देश, अपने बीच की समस्याओं का प्रभाव दुनिया के अन्य देशों पर भी पड़ने से पहले ही अपने संबंधों को दुरुस्त कर लें.
साकी ने गुतारेस के इसी बयान के बारे में सोमवार को पूछे जाने पर कहा, 'राष्ट्रपति और उनके प्रशासन का मानना है कि चीन के साथ हमारा संबंध संघर्ष का नहीं है, बल्कि प्रतिस्पर्धा का है, इसलिए हम संबंधों के दायरे तय किए जाने से सहमत नहीं हैं.'
उन्होंने कहा कि बाइडेन की पिछले सप्ताह चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ 90 मिनट की फोन पर हुई वार्ता के दौरान विषयों की व्यापक सूची पर बात की गई थी, यह वार्ता स्पष्ट थी, लेकिन निश्चित ही बहुत महत्वपूर्ण नहीं थी.
गुतारेस ने विश्व के नेताओं की वार्षिक संयुक्त राष्ट्र महासभा से पहले कहा कि मानवाधिकारों, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन सुरक्षा और दक्षिण चीन सागर में संप्रभुता को लेकर राजनीतिक दरारों के बावजूद दो बड़ी आर्थिक शक्तियों को जलवायु परिवर्तन और इसके दुष्प्रभावों से निपटने के मामले पर सहयोग करना चाहिए और व्यापार एवं प्रौद्योगिकी पर बातचीत बढ़ानी चाहिए.
साकी ने कहा, 'हम इस बात को मान्यता देते हैं कि चीन एक देश है और हमें दुनिया में उसके कुछ कार्यों को लेकर समस्या हो सकती है, लेकिन ऐसे भी कई क्षेत्र हैं, जिनमें हम मिल कर काम करते रहना चाहेंगे और संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने निश्चित ही इन कई विषयों का जिक्र किया था. राष्ट्रपति की उनके साथ देर शाम को एक बैठक है.'
उन्होंने कहा, 'राष्ट्रपति संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक भाषण देंगे. वह पूर्णत: स्पष्ट करेंगे कि वह किसी भी देश के साथ शीत युद्ध नहीं चाहते. हम हमारे हितों को पूरा करने के लिए काम करना जारी रखेंगे. हम वैश्विक प्राथमिकताओं को तवज्जो देते रहेंगे, लेकिन यह अमेरिका की नीति या उद्देश्य नहीं है.'
प्रशासन के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने भी संवाददाताओं के साथ कांफ्रेंस कॉल में कहा, 'बाइडेन कल यह बताएंगे कि वह दो ब्लॉक में विभाजित दुनिया के बीच एक नए शीत युद्ध की अवधारणा में विश्वास नहीं करते. वह एक कड़ी, गहन एवं सिद्धांतों पर आधारित प्रतिस्पर्धा में भरोसा करते हैं, जो संघर्ष में न बदले.'
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उन्होंने कहा, 'यदि आप कई दिन पहले राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी फोन पर हुई बातचीत की जानकारी पढ़ें, तो आप पाएंगे कि इस वार्ता के दौरान भी यह संदेश दिखता है... वह यही संदेश कल संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से देंगे.'
उल्लेखनीय है कि गुतारेस ने शनिवार को एक साक्षात्कार में कहा था, 'दुर्भाग्य की बात यह है कि हम आज केवल संघर्ष देख रहे हैं.' उन्होंने कहा, 'हमें दो शक्तियों के बीच कार्यात्मक संबंध फिर से स्थापित करने की जरूरत है.'
उन्होंने कहा, 'टीकाकरण की समस्या, जलवायु परिवर्तन की समस्या और कई अन्य वैश्विक चुनौतियों से निपटना आवश्यक है, लेकिन इनसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेषकर महाशक्तियों के बीच रचनात्मक संबंधों के बिना निपटा नहीं जा सकता.'
गुतारेस ने दो साल पहले वैश्विक नेताओं को दुनिया के अमेरिका और चीन के बीच दो हिस्सों में बंटने को लेकर सचेत किया था. उन्होंने कहा था कि दोनों देशों के इंटरनेट, मुद्रा, व्यापार और वित्तीय व्यवस्था संबंधी प्रतिस्पर्धी नियम हैं और 'दोनों की भूराजनीति एवं सैन्य रणनीतियां ऐसी हैं, जिससे एक को नुकसान पहुंचाकर दूसरा देश लाभ प्राप्त कर रहा है'.
उन्होंने एपी के साथ इस साक्षात्कार में यह बात भी दोहराई और कहा कि दोनों प्रतिद्वंद्वी देशों की भू-राजनीति और सैन्य रणनीतियां 'खतरे' पैदा करेंगी और दुनिया को विभाजित करेंगी, इसलिए बिगड़ रहे इन संबंधों को सुधारा जाना चाहिए और ऐसा शीघ्र होना चाहिए.
गुतारेस ने कहा, 'हमें शीत युद्ध से हर कीमत पर बचना चाहिए. यदि यह युद्ध हुआ, तो यह पिछले शीत युद्ध से अलग होगा तथा यह शायद अधिक खतरनाक होगा और इसका प्रबंधन भी अधिक कठिन होगा.'
सोवियत संघ एवं उसके पूर्वी ब्लॉक सहयोगियों और अमेरिका एवं उसके पश्चिमी सहयोगियों के बीच तथाकथित शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद शुरू हुआ था और यह 1991 में सोवियत संघ के बिखराव के साथ समाप्त हुआ था.
यह प्रतिद्वंद्वी विचारधाराओं वाली एवं परमाणु हथियार रखने वाली दो महाशक्तियों का टकराव था. इस युद्ध में एक तरफ साम्यवाद और सत्तावाद तथा दूसरी तरफ पूंजीवाद और लोकतंत्र था.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि एक नया शीत युद्ध अधिक खतरनाक हो सकता है. उन्होंने कहा कि सोवियत संघ और अमेरिका के बीच विद्वेष ने स्पष्ट नियम बनाए थे और दोनों पक्ष परमाणु विनाश के जोखिम के प्रति सचेत थे. इसके अलावा पर्दे के पीछे के मध्यस्थ एवं मंच अस्तित्व में आए, जिन्होंने सुनिश्चित किया कि 'चीजें नियंत्रण से बाहर नहीं हों.'
(पीटीआई भाषा)