जोहानिसबर्ग : दक्षिण अफ्रीका के पीटरमैरिट्जबर्ग में महात्मा गांधी को ट्रेन से धक्का देकर नीचे उतार देने की घटना के 128 साल पूरे होने के अवसर पर दुनिया के विभिन्न विद्वानों ने भारत के राष्ट्रपिता के उन संदेशों के बारे में चर्चा की जो विश्व के लिए आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं.
महात्मा गांधी को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने वाली वह घटना सात जून 1893 को घटी थी, जिसमें उन्हें अश्वेत होने के कारण नस्ली भेदभाव का शिकार होना पड़ा था.
पीटरमैरिट्जबर्ग गांधी स्मारक समिति के अध्यक्ष डेविड गेनगान ने कहा कि समिति ने कुछ साल पहले यह फैसला किया था कि सात जून, 1893 की घटना और युवा गांधी पर इसके प्रभाव को हर साल इसकी वर्षगांठ के अवसर पर एक चर्चा का आयोजन कर याद किया जाएगा. डेविड ने कहा कि आंदोलन के लिए गांधी के प्रमुख हथियार सत्याग्रह का बीज सात जून, 1893 की रात को पीटरमैरिट्जबर्ग में यहीं बोया गया था.
महात्मा गांधी करीब 21 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में रहे. इसी दौरान उनके दार्शनिक विचार विकसित हुए और उन्हें अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिली. प्रत्येक वर्ष इस चर्चा का आयोजन उसी स्थान पर किया जाता है जहां यह घटना हुई थी. लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण पिछले दो बार से ऑनलाइन माध्यम के जरिए ही इसका आयोजन किया जा रहा है.
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महात्मा गांधी की पोती एवं गांधी विकास ट्रस्ट की प्रमुख इला गांधी ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि अपने जीवनकाल के दौरान गांधी ने अनेक सत्य की खोज की. उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि ऐसे दौर में जब हम कोविड-19 महामारी जैसी बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं, तब गांधी के विचारों का महत्व और भी बढ़ जाता है.
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नेल्सन मंडेला फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सेलो हटांग ने कहा कि गांधी का नजरिया एवं सोचने का तरीका कुछ ऐसा थे जोकि सभी मनुष्यों द्वारा प्राप्त किया जा सकता था.
गौरतलब है कि सात जून, 1893 की इस घटना ने दक्षिण अफ्रीका में नस्ली भेदभाव से लड़ने के महात्मा गांधी के फैसले और बाद में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को बहुत प्रभावित किया.