नई दिल्ली/ग्रे.नोएडा: कोरोना काल में किसानों के भी बुरे हालात हैं. वहीं इस समय धान की फसल तैयार हो रही है. जिसको लेकर किसान अपने खेतों में मेहनत कर रहा है और अच्छी से अच्छी फसल तैयार करने की कोशिश कर रहा है. वहीं कोरोना काल में किसानों का कैसा हाल है, इसी को लेकर ईटीवी भारत ने ग्रेटर नोएडा के किसानों से बातचीत की. जहां किसानों ने अपनी असली परेशानी बताई.
उन्होंने बताया कि इस बार फसलों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली हर दवा के रेट दोगुने कर दिए गए हैं. वहीं यूरिया के लिए भी उनको किल्लत हो रही है. वहीं उनका कहना है कि धान की फसल को पानी की बहुत ज्यादा जरूरत होती है और बारिश न होने से जितना भी पानी चलाया जाता है, वह सूख जाता है. वहीं लाइट भी उस हिसाब से नहीं आ रही है, जिससे फसल को सही पानी लगाया जा सकें. उन्होंने बताया कि किसानों के लिए आवारा पशु भी एक बड़ी परेशानी बन कर उभरे हुए हैं, जिसको लेकर किसानों को रात में चौकीदारी करनी पड़ रही है और अपनी फसल को बचाने के लिए पूरी-पूरी रात जगना पड़ रहा है .
लहराती फसल को खा रही महंगी दवा
बता दें कि किसान तो आत्महत्या करने तक की बात कह रहे हैं, क्योंकि इस बार कोरोना की वजह से दवाओं के रेट में इजाफा हुआ है और किसानों को इस बार जो दवा मिल रही हों वह दोगुने रेटों में मिल रही हैं, यानी जो दवा पिछली बार 400 की थी, वो अब 600 से 800 की मिल रही है. इस धान की फसल में काफी दवाई लगती है, इसलिए किसान काफी परेशान हैं. वहीं लगातार इनमें कभी घास मारने की दवा, तो कभी काई बनाने की दवा तो कभी अन्य तरह की दवाई लगती हैं. जिनके इस बार बाजारों में रेट दोगुने हो चुके हैं.
फसल के दामों को लेकर परेशान हैं किसान
वहीं किसानों ने बताया कि इस बार उन्होंने बड़े ही मन से मक्का की फसल को तैयार किया था और उसमें काफी लागत भी लगाई थी. लेकिन उसके रेट मार्केट में केवल 700 रुपये कुंटल मिले. जिस पर किसानों ने कहा कि जो उन्होंने लागत लगाई है, उससे भी कहीं कम रेट हैं. अब धान में लगातार उनके द्वारा लागत लगाई जा रही है, लेकिन अगर अच्छे रेट नहीं मिलते हैं तो किसानों के लिए कहीं ना कहीं आत्महत्या जैसे हालात पैदा हो जाएंगे. क्योंकि धान में जो लागत लगती है, उसमें किसान अपनी ही जेब से लगाता है और जब फसल तैयार होती है, तो उसे मंडी में फसल को लेकर जाता है और अगर मंडी में फसल के दाम ठीक नहीं हुए, तो किसानों की कहीं ना कहीं परेशानी जरूर बनेगी. जिसको लेकर किसान दुखी और हताश हैं.
सरकार पर टिकी हैं किसान की उम्मीदें
अब यह लोग सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि इस बार धान के जो दाम है, वह मंडी में ठीक होने चाहिए. क्योंकि जो किसानों ने लागत लगाई है, उससे कहीं ना कहीं ज्यादा उनको पैसे मिलने या कुछ मुनाफा मिलना जरूरी है. वरना आगे से किसान किसानी ही छोड़ने पर मजबूर हो जाएगा.