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ग्रेटर नोएडा के किसानों का आरोप, पराली नहीं ले रहा NTPC - किसानों ने लगाया आरोप

यदि कोई किसान अपने खेत में पराली जलाता है तो, उसके खिलाफ वायु प्रदूषण के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी. केंद्र सरकार ने किसानों को पराली जलाने की नौबत ना आए, इसके लिए उन्होंने एनटीपीसी से कहा कि वह किसानों की पराली को खरीदें और पराली से बिजली बनाने की तैयारी करें.

NTPC not taking straw of farmers fields in Greater Noida
एनटीपीसी
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Published : Oct 6, 2020, 10:45 PM IST

नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: सर्दियों के मौसम आ रही है और यह समय धान की फसल का होता है और धान की फसल कटने के बाद पराली किसान अपने खेतों में ही जलाते थे. इस पराली के जलने से वायु प्रदूषण होता था और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की मात्रा लगातार बढ़ती जाती थी. इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने किसानों से निवेदन किया था कि कोई भी किसान अपने खेतों की पराली नहीं जलाएगा.

किसानों ने लगाया आरोप

यदि कोई किसान अपने खेत में पराली जलाता है तो, उसके खिलाफ वायु प्रदूषण के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी. केंद्र सरकार ने किसानों को पराली जलाने की नौबत ना आए, इसके लिए उन्होंने एनटीपीसी से कहा कि वह किसानों की पराली को खरीदें और पराली से बिजली बनाने की तैयारी करें.

एनटीपीसी को नहीं मिल पाती पराली की पूरी आपूर्ति

इसी को देखते हुए एनटीपीसी ने दिल्ली एनसीआर में पराली किसानों से लेने की शुरुआत की, लेकिन किसानों द्वारा जिस मात्रा में पराली एनटीपीसी को उपलब्ध कराई गई व मात्रा एनटीपीसी के लिए नाकाफी थी. उसी को देखते हुए एनटीपीसी ने बिजली बनाने के लिए पराली के साथ ही साथ मूंगफली के चिक्कल, सरसों के तेल की वेस्टेज के साथी अन्य उत्पादन से बिजली बनाने के लिए तैयार किया गया. जिसका काम 2019 से शुरू हुआ.



6000 से 8000 प्रति टन का रहता है पराली का रेट

एनटीपीसी किसानों से जो पराली लेती है, उसका किसानों को 6000 से 8000 रुपये टन का रेट देती है. एनटीपीसी के कर्मचारी ने बताया कि बिजली उत्पादन के लिए उनको प्रतिदिन 1000 टन पेलेट्स की जरूरत पड़ती है, जो कि तीन चीजों से मिलकर बनती है. जिसमें मूंगफली का चिक्कल, सरसों के तेल की वेस्टेज और पराली के माध्यम से पेलेट्स बनता है और उसी के माध्यम से बिजली का उत्पादन होता है. इस पेलेट्स की जरूरत भारी मात्रा में पड़ती है. इसलिए एनटीपीसी ने सीधे किसानों को ना देकर वेंडर के माध्यम से पराली लेते हैं. जो कि पंजाब, राजस्थान और हरियाणा से लाई जाती है.

नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: सर्दियों के मौसम आ रही है और यह समय धान की फसल का होता है और धान की फसल कटने के बाद पराली किसान अपने खेतों में ही जलाते थे. इस पराली के जलने से वायु प्रदूषण होता था और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की मात्रा लगातार बढ़ती जाती थी. इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने किसानों से निवेदन किया था कि कोई भी किसान अपने खेतों की पराली नहीं जलाएगा.

किसानों ने लगाया आरोप

यदि कोई किसान अपने खेत में पराली जलाता है तो, उसके खिलाफ वायु प्रदूषण के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी. केंद्र सरकार ने किसानों को पराली जलाने की नौबत ना आए, इसके लिए उन्होंने एनटीपीसी से कहा कि वह किसानों की पराली को खरीदें और पराली से बिजली बनाने की तैयारी करें.

एनटीपीसी को नहीं मिल पाती पराली की पूरी आपूर्ति

इसी को देखते हुए एनटीपीसी ने दिल्ली एनसीआर में पराली किसानों से लेने की शुरुआत की, लेकिन किसानों द्वारा जिस मात्रा में पराली एनटीपीसी को उपलब्ध कराई गई व मात्रा एनटीपीसी के लिए नाकाफी थी. उसी को देखते हुए एनटीपीसी ने बिजली बनाने के लिए पराली के साथ ही साथ मूंगफली के चिक्कल, सरसों के तेल की वेस्टेज के साथी अन्य उत्पादन से बिजली बनाने के लिए तैयार किया गया. जिसका काम 2019 से शुरू हुआ.



6000 से 8000 प्रति टन का रहता है पराली का रेट

एनटीपीसी किसानों से जो पराली लेती है, उसका किसानों को 6000 से 8000 रुपये टन का रेट देती है. एनटीपीसी के कर्मचारी ने बताया कि बिजली उत्पादन के लिए उनको प्रतिदिन 1000 टन पेलेट्स की जरूरत पड़ती है, जो कि तीन चीजों से मिलकर बनती है. जिसमें मूंगफली का चिक्कल, सरसों के तेल की वेस्टेज और पराली के माध्यम से पेलेट्स बनता है और उसी के माध्यम से बिजली का उत्पादन होता है. इस पेलेट्स की जरूरत भारी मात्रा में पड़ती है. इसलिए एनटीपीसी ने सीधे किसानों को ना देकर वेंडर के माध्यम से पराली लेते हैं. जो कि पंजाब, राजस्थान और हरियाणा से लाई जाती है.

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