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विशेष: देश अनलॉक की तरफ बढ़ा, क्या मजदूरों की जिंदगी हुई 'अनलॉक' - सेक्टर-5 हरौला लेबर चौक

देश में कोरोना काल के बाद धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होती जा रही है, लेकिन मजदूरों के लिए एक बार फिर ये समय चुनौती भरा है. ईटीवी भारत ने कोरोना काल के बाद मजदूरों से बात करने कि कोशिश की.

Life of the workers after the Corona period
कोरोना काल के बाद मजदूरों का जीवन
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Published : Oct 19, 2020, 5:48 PM IST

Updated : Oct 19, 2020, 6:10 PM IST

नई दिल्ली/नोएडा: देश अनलॉक की तरफ बढ़ा लेकिन मजदूरों की जिंदगी 'अनलॉक' की तरफ बढ़ी कि नहीं इसकी पड़ताल करने ईटीवी भारत ने मजदूरों से बात करने की कोशिश कि. कोरोना काल के बाद मजदूर पलायन कर गए लेकिन रिवर्स माइग्रेशन के बाद स्तिथि पटरी पर नहीं लौटी है. जहां एक तरफ देश में सिनेमाघर तक खुल गए हैं, वहीं दूसरी तरफ मजदूर लेबर चौक पर आस लगाकर बैठे रहते हैं लेकिन दिहाड़ी अभी 'अनलॉक' नहीं हुई है. लेबर चौक पर मजदूरों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बेरोजगारी भी बढ़ी है.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट.
जिंदगी पटरी पर लौटने का इंतजारसेक्टर-5 हरौला लेबर चौक पर मजदूरी की आस में बैठे पेंटर रामनरेश ने बताया कि कोरोना काल के बाद उनकी जिंदगी पटरी पर वापस नहीं लौटी है. उन्होंने बताया कि कोरोना काल से पहले रोजाना दिहाड़ी मिल जाती थी, लेकिन मौजूद समय में पूरे हफ्ते में 1 से 2 दिन भी काम नहीं मिलता है. मजदूरों का कहना है कि गाजियाबाद से नोएडा रोजाना आते हैं उसमें भी 50 रुपये लग जाता है.


लेबर चौक पर मजदूरों की संख्या में इजाफा

मजदूर सुरेश ने बताया कि स्थिति अच्छी नहीं है. 3-4 दिनों में एक बार काम मिलता था, वह भी मौजूद वक्त में संभव नहीं हो पा रहा है. मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान वह अपने घर वापस लौट गए थे लेकिन वापस काम की तलाश में नोएडा आए हैं. हालांकि, रोजाना मजदूरी मिल पाना लोहे के चने चबाने के बराबर है. उन्होंने बताया कि कोरोना काल के बाद लेबर चौक पर एक महत्वपूर्ण फर्क यह देखने को मिला है कि पहले लेबर चौक पर 15 से 20 मजदूर हुआ करते थे जो अब बढ़कर 45 से 50 हो गए हैं। ऐसे में यह साफ दर्शाता है कि बेरोजगारी बढ़ी है.


प्रदूषण बढ़ा तो मजदूरों पर पड़ेगी दोहरी मार

मजदूरों की जिंदगी अनलॉक होने को लेकर रियलिटी चेक किया गया. मजदूरों की स्थिति चिंताजनक है, धीरे-धीरे देश 'अनलॉक' की तरफ बढ़ रहा है. लेकिन मजदूरों की जिंदगी अभी भी 'अनलॉक' पूरी तरीके से नहीं हुई है. मजदूरी की उम्मीद में लोग पलायन कर के बड़े शहरों की तरफ तो गए लेकिन रोजाना मजदूरी मिलना असंभव हो गया है. वहीं बढ़ रहे प्रदूषण के साथ लागू ग्रेप के साथ कई तरीके के प्रतिबंध लगने शुरू हो गए हैं. माना जा रहा है कि प्रदूषण का स्तर और बढ़ा तो कंस्ट्रक्शन वर्क भी रोक दिया जाएगा ऐसे में मजदूरों पर दोहरी मार पड़ने की उम्मीद है.

नई दिल्ली/नोएडा: देश अनलॉक की तरफ बढ़ा लेकिन मजदूरों की जिंदगी 'अनलॉक' की तरफ बढ़ी कि नहीं इसकी पड़ताल करने ईटीवी भारत ने मजदूरों से बात करने की कोशिश कि. कोरोना काल के बाद मजदूर पलायन कर गए लेकिन रिवर्स माइग्रेशन के बाद स्तिथि पटरी पर नहीं लौटी है. जहां एक तरफ देश में सिनेमाघर तक खुल गए हैं, वहीं दूसरी तरफ मजदूर लेबर चौक पर आस लगाकर बैठे रहते हैं लेकिन दिहाड़ी अभी 'अनलॉक' नहीं हुई है. लेबर चौक पर मजदूरों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बेरोजगारी भी बढ़ी है.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट.
जिंदगी पटरी पर लौटने का इंतजारसेक्टर-5 हरौला लेबर चौक पर मजदूरी की आस में बैठे पेंटर रामनरेश ने बताया कि कोरोना काल के बाद उनकी जिंदगी पटरी पर वापस नहीं लौटी है. उन्होंने बताया कि कोरोना काल से पहले रोजाना दिहाड़ी मिल जाती थी, लेकिन मौजूद समय में पूरे हफ्ते में 1 से 2 दिन भी काम नहीं मिलता है. मजदूरों का कहना है कि गाजियाबाद से नोएडा रोजाना आते हैं उसमें भी 50 रुपये लग जाता है.


लेबर चौक पर मजदूरों की संख्या में इजाफा

मजदूर सुरेश ने बताया कि स्थिति अच्छी नहीं है. 3-4 दिनों में एक बार काम मिलता था, वह भी मौजूद वक्त में संभव नहीं हो पा रहा है. मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान वह अपने घर वापस लौट गए थे लेकिन वापस काम की तलाश में नोएडा आए हैं. हालांकि, रोजाना मजदूरी मिल पाना लोहे के चने चबाने के बराबर है. उन्होंने बताया कि कोरोना काल के बाद लेबर चौक पर एक महत्वपूर्ण फर्क यह देखने को मिला है कि पहले लेबर चौक पर 15 से 20 मजदूर हुआ करते थे जो अब बढ़कर 45 से 50 हो गए हैं। ऐसे में यह साफ दर्शाता है कि बेरोजगारी बढ़ी है.


प्रदूषण बढ़ा तो मजदूरों पर पड़ेगी दोहरी मार

मजदूरों की जिंदगी अनलॉक होने को लेकर रियलिटी चेक किया गया. मजदूरों की स्थिति चिंताजनक है, धीरे-धीरे देश 'अनलॉक' की तरफ बढ़ रहा है. लेकिन मजदूरों की जिंदगी अभी भी 'अनलॉक' पूरी तरीके से नहीं हुई है. मजदूरी की उम्मीद में लोग पलायन कर के बड़े शहरों की तरफ तो गए लेकिन रोजाना मजदूरी मिलना असंभव हो गया है. वहीं बढ़ रहे प्रदूषण के साथ लागू ग्रेप के साथ कई तरीके के प्रतिबंध लगने शुरू हो गए हैं. माना जा रहा है कि प्रदूषण का स्तर और बढ़ा तो कंस्ट्रक्शन वर्क भी रोक दिया जाएगा ऐसे में मजदूरों पर दोहरी मार पड़ने की उम्मीद है.

Last Updated : Oct 19, 2020, 6:10 PM IST
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