नई दिल्ली/नोएडा: जिन्होंने 1947 के बंटवारे का दर्द और पलायन का मंजर जिया है उनके लिए देश में चल रहे मजदूरों का पलायन पुराने जख्म उधेड़ने के समान ही है. पाकिस्तान से बंटवारे के बाद अपने आप को उद्योगपति के रूप स्थापित कर चुके सतपाल सचदेवा इसलिए खुद को रोक नहीं पाए और मजदूरों के दर्द को साझा करने चले आए.
सेक्टर-19 के शेल्टर होम में मजदूर
दरअसल जिला प्रशासन ने पैदल अपने गांव जा रहे प्रवासी श्रमिकों को रोक कर सेक्टर-19 के शेल्टर होम रखने उनको उनके गांव भेजने कि व्यवस्था की है. आज मजदूरों के मजदूर के दर्द को साझा करने उद्योगपति सतपाल सचदेवा यहां पहुंचे. वहां मौजूद प्रवासी मजदूरों को उन्होंने 500-500 रुपए भी दिए. उन्होंने कहा कि ये मजदूर 1947 में मेरी तरह बेघर हो कर परेशान हैं. सामान नहीं है, साधन नहीं है मैंने पैसे इसलिए दिए कि अगर कोई जरूरत हो तो ले सकें.
उद्योगपति ने की 1947 के मंजर से तुलना
उनका कहना था कि ये लोग उसी प्रकार परेशान हैं जैसे मैं 1947 में बेघर हो कर परेशान था. सतपाल कहते हैं कि 1947 का मंजर आज के मंजर इस प्रकार भिन्न था कि उस समय चारों तरफ लाशें पड़ी थीं. मारकाट मची थी जो मिले उसे मार दो, लेकिन यह भूख का मंजर है, उस मंजर में भी भूख थी, लेकिन वह भूख अलग थी. एक और फर्क है इन बच्चों को पता है उन्हें कहां जाना है. जब हम पाकिस्तान से आए थे तब हमे ये पता नहीं था कि कहां जाना है. उस समय समय भूख और डर था पता नहीं कब गोली से मार दिया जाएगा.