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'कॉप 14' को संबोधित करने पहुंचे PM मोदी, बोले- पूर्वजों की सोच थी ऊंची - केंद्रीय पर्यावरण व वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री

ग्रेटर नोएडा के इंडिया एक्स्पो मार्ट में कॉप 14 का आयोजन किया गया था. जिसमें 197 देशों के राजनयिक ने मरुस्थलीकरण पर एकजुट होकर गहराई से मंथन किया.

'कॉप 14' को संबोधित करने पहुंचे PM मोदी etv bharat
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Published : Sep 19, 2019, 1:35 PM IST

नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: राजधानी से सटे ग्रेटर नोएडा के इंडिया एक्स्पो मार्ट में 2 से 13 सितंबर तक कॉप 14 का आयोजन किया गया था. जिसमें 197 देशों के राजनयिक मौजूद थे.

इंडिया एक्स्पो मार्ट में कॉप 14 का आयोजन
इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दुनिया के सबसे खूबसूरत ग्रह पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन, नष्ट होती जैव विविधता, मरुस्थलीकरण जैसे बढ़ते खतरों से निवारण के लिए एकजुट होकर गहराई से मंथन किया गया.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने की थी शुरुआत

कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज की शुरुआत केंद्रीय पर्यावरण व वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने की थी. जिसमें उन्होनें कहा था कि मानवीय गतिविधियों के कारण जलवायु परिवर्तन, धरती का क्षरण और जैव विविधता को जो क्षति पहुंची है, इसकी भरपाई सिर्फ मानवीय प्रयासों से ही किया जा सकता है.

9 सितंबर को कॉप-14 को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारतीय संस्कृति में धरती मां है. हम सुबह उठकर जब धरती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं तो उसका मतलब है कि हम उसे धन्यवाद दे रहे हैं.

PM मोदी ने कहा कि हमारे पूर्वजों की सोच बहुत ऊंची थी वह मैं नहीं, हम के रिश्ते में विश्वास रखते थे. और सबकी उन्नति की बात करते थें. साथ ही साथ PM मोदी ने भारतीय संस्कृति में प्रकृति और मनुष्य के बीच में जो संबंध है उसे भी बताया

संबोधन में PM मोदी की अहम बातें

⦁ इस समय पूरा विश्व क्लाइमेट चेंज की समस्या से जूझ रहा है.
⦁ भारत प्रकृति की रक्षा करने के हर प्रयास में आगे रहेगा.
⦁ मैं यूएनसीसीडी के सदस्यों से जल संरक्षण योजना बनाने का आवाहन करता हूं.
⦁ किसान की आय दोगुनी करने का भी प्रयास है.
⦁ जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर भी हम ध्यान दे रहे हैं.
⦁ हम सिंगल यूज प्लास्टिक को गुड बाय कहने का हर प्रयास कर रहे हैं.
⦁ भारत अपने अन्य मित्र देशों की भूमि विकास में भी मदद करने को तत्पर है.

मरुस्थलीकरण है खतरे का संकेत

इस अवसर पर के कार्यकारी सचिव ने इब्राहिम थियाव ने कहा कि वैज्ञानिक आंकलन में सामने आया है कि सूखा, बाढ़, वनों में आग, भूमि का कटाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी हुई है. यह खतरे का संकेत है. इसके प्रति सचेत रहते हुए कदम उठाने होंगे.

इब्राहिम थियाव ने कहा कि खाद्य समेत अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए दुनिया ने 70 फीसद जमीन का प्राकृतिक स्वरूप बदल दिया है. इससे करीब दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है.

दीर्घकालिक प्रबंधन न करने की वजह से भूमि का काफी बड़ा भाग अनुपयोगी हो चुका है. जलवायु परिवर्तन की वजह से 2050 तक सात सौ मिलियन लोग पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे

नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: राजधानी से सटे ग्रेटर नोएडा के इंडिया एक्स्पो मार्ट में 2 से 13 सितंबर तक कॉप 14 का आयोजन किया गया था. जिसमें 197 देशों के राजनयिक मौजूद थे.

इंडिया एक्स्पो मार्ट में कॉप 14 का आयोजन
इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दुनिया के सबसे खूबसूरत ग्रह पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन, नष्ट होती जैव विविधता, मरुस्थलीकरण जैसे बढ़ते खतरों से निवारण के लिए एकजुट होकर गहराई से मंथन किया गया.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने की थी शुरुआत

कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज की शुरुआत केंद्रीय पर्यावरण व वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने की थी. जिसमें उन्होनें कहा था कि मानवीय गतिविधियों के कारण जलवायु परिवर्तन, धरती का क्षरण और जैव विविधता को जो क्षति पहुंची है, इसकी भरपाई सिर्फ मानवीय प्रयासों से ही किया जा सकता है.

9 सितंबर को कॉप-14 को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारतीय संस्कृति में धरती मां है. हम सुबह उठकर जब धरती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं तो उसका मतलब है कि हम उसे धन्यवाद दे रहे हैं.

PM मोदी ने कहा कि हमारे पूर्वजों की सोच बहुत ऊंची थी वह मैं नहीं, हम के रिश्ते में विश्वास रखते थे. और सबकी उन्नति की बात करते थें. साथ ही साथ PM मोदी ने भारतीय संस्कृति में प्रकृति और मनुष्य के बीच में जो संबंध है उसे भी बताया

संबोधन में PM मोदी की अहम बातें

⦁ इस समय पूरा विश्व क्लाइमेट चेंज की समस्या से जूझ रहा है.
⦁ भारत प्रकृति की रक्षा करने के हर प्रयास में आगे रहेगा.
⦁ मैं यूएनसीसीडी के सदस्यों से जल संरक्षण योजना बनाने का आवाहन करता हूं.
⦁ किसान की आय दोगुनी करने का भी प्रयास है.
⦁ जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर भी हम ध्यान दे रहे हैं.
⦁ हम सिंगल यूज प्लास्टिक को गुड बाय कहने का हर प्रयास कर रहे हैं.
⦁ भारत अपने अन्य मित्र देशों की भूमि विकास में भी मदद करने को तत्पर है.

मरुस्थलीकरण है खतरे का संकेत

इस अवसर पर के कार्यकारी सचिव ने इब्राहिम थियाव ने कहा कि वैज्ञानिक आंकलन में सामने आया है कि सूखा, बाढ़, वनों में आग, भूमि का कटाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी हुई है. यह खतरे का संकेत है. इसके प्रति सचेत रहते हुए कदम उठाने होंगे.

इब्राहिम थियाव ने कहा कि खाद्य समेत अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए दुनिया ने 70 फीसद जमीन का प्राकृतिक स्वरूप बदल दिया है. इससे करीब दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है.

दीर्घकालिक प्रबंधन न करने की वजह से भूमि का काफी बड़ा भाग अनुपयोगी हो चुका है. जलवायु परिवर्तन की वजह से 2050 तक सात सौ मिलियन लोग पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे

Intro:ग्रेटर नोएडा– मिट्टी की घटती गुणवत्ता व बढ़ते मरुस्थलीकरण पर चर्चा को लेकर ग्रेटर नोएडा के इंडिया एक्स्पो मार्ट में होने वाले कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज की शुरुआत आज से हो गई। 2 से 13 सितम्बर तक चलने वाले इस कॉन्फ्रेंस में 197 देशों के राजनयिक बदलते पर्यावरण में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को हो रहे नुकसान बढ़ते मरुस्थल जैसे विश्व के गंभीर समस्याओं पर चिंतन और मनन करेंगे । अपने अनुभवों, उपलब्धियों को एक दूसरे के साथ साझा करने के अलावा दुनिया भर के लिए चुनौती बन चुकी इस समस्या के समाधान का मसौदा तैयार करेंगे।


Body: कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज की शुरुआत करते हुए केंद्रीय पर्यावरण व वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर इस चुनौती से निपटने के लिए तकनीक और मजबूत इरादों के साथ प्रयास करने की जरूरत अहम बताया। उन्होंने कहा कि मानवीय गतिविधियों के कारण जलवायु परिवर्तन धरती का क्षरण और जैव विविधता में जो क्षति हुई है उसे मानवीय प्रयासों से ही इस नुकसान की भरपाई कर स्थिति को सुधारा जा सकता है।


Conclusion:इस अवसर पर के कार्यकारी सचिव ने इब्राहिम थियाव ने कहा कि वैज्ञानिक आंकलन में सामने आया है कि सूखा, बाढ़, वनों में आग, भूमि का कटाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी हुई है। यह खतरे का संकेत है। इसके प्रति सचेत रहते हुए कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि खाद्य समेत अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए दुनिया ने सत्तर फीसद जमीन का प्राकृतिक स्वरूप बदल दिया है। इससे करीब दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है। दीर्घकालिक प्रबंधन न करने की वजह से भूमि का काफी बड़ा भाग अनुपयोगी हो चुका है। जलवायु परिवर्तन की वजह से 2050 तक सात सौ मिलियन लोग पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे।
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