नई दिल्ली/गाजियाबाद: रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, जिसमें 30 दिनों तक रोजे रखे जाते हैं. इस्लाम के मुताबिक पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है, जो पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है.
इन तीन अलग-अलग अशरो में क्या हैं खास, इसी को लेकर ईटीवी भारत ने मुफ्ती मजहर उल हक कासमी से खास बातचीत की. मुफ्ती सहाब ने बताया कि रमजान के 3 अशरों (चरणों) में से पहले अशरे को रहमतों का आशरा, दूसरे को बक्शीश का अशरा और तीसरे को जहन्नुम से बरी होने का अशरा कहा जाता हैं.
1. पहला-रहमतों का अशरा
ईटीवी भारत को मुफ्ती मजहर उल हक कासमी ने बताया कि यूं तो पूरा रमजान का महीना रहमतों का महीना होता है. जो लोग गुनाह नहीं करते हैं, अल्लाह के ज्यादा नजदीक होते हैं.
उन लोगों पर रमजान के पहले दिन से ही रेहमतें बरसनी शुरू हो जाती हैं. और जो लोग गुनहगार होते हैं. उनको 10 रोजा रखने के बाद गुनाहों की माफी मिलना शुरू हो जाती हैं. इसीलिए रमजान के पहले अशरे को रहमतों का अशरा कहा जाता है.
2. दूसरा-बक्शीश का अशरा
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जो लोग ज्यादा गुनहगार होते हैं और वह लोग दूसरों के हक अदा करके खुदा से माफी मांग कर 20 रोजे रखते हैं. तो रमजान के दूसरे अशरे में माफ कर दिया जाता है. यह अशरा माफी का होता है. इस अशरे में लोग इबादत कर के अपने गुनाहों से माफी पा सकते हैं.
3. तीसरा-जहन्नुम से बरी
इसके साथ ही मुफ्ती साहब ने बताया कि अगर किसी शख्स ने किसी दुसरे शख्स का कोई हक दबा रखा है, तो वह जब तक उसका हक अदा नहीं कर देता, उसकी रमजान में भी माफी नहीं हो सकती है. ये अशरा सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. तीसरे अशरे का उद्देश्य जहन्नम की आग से खुद को सुरक्षित रखना है.