नई दिल्ली/गाजियाबाद: जहां एक ओर अपनी मांगों को लेकर अन्नदाता सड़कों पर ही बैठ कर अन्न खाने को मजबूर हैं. वहीं दूसरी ओर एक मार्मिक तस्वीर भी इस धरना स्थल से देखने को मिल रही है. धरना स्थल पर कुछ मासूम अन्न की चाह में कूड़ा चुनते नजर आये. यह मासूम अपने हाथों में पेन और किताब न लेकर खाने के जूठे पत्तल और गिलास चुगते दिखे. मामला पेट का है तो इन मासूमों को भी अपने पेट की भूख मिटानी है, जिसके लिए यह कूड़ा बीन कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं.
झूठे गिलास है दो वक्त की रोटी का साधन
दिल्ली गाजीपुर बॉर्डर पर करीब तीन महीने से किसानों का आंदोलन जारी है. सुबह से लेकर रात तक तमाम किसान लंगर में खाना खाते हैं. लंगर के दौरान प्लास्टिक के गिलास आदि का भी प्रयोग होता है. लंगर के आसपास आमतौर पर देखने को यही मिलता है कि 6-7 साल के बच्चे धरना स्थल से प्लास्टिक के गिलास आदि को बीनते हैं. भले ये हमारे लिए झूठे गिलास कूड़ा समान हों लेकिन कूड़ा बीनते इन बच्चों के लिए ये दो वक्त की रोटी का साधन है.
कूड़ा बीनने आनंद विहार जाया करते थे बच्चे
ईटीवी भारत से बातचीत में मासूम बच्चों ने कहा कि पहले कूड़ा बीनने के लिए आनंद विहार जाया करते थे. लेकिन जब से गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन चल रहा है तो यहीं पर ही कूड़ा बीन लेते हैं. यहां प्लास्टिक की खाली प्लेट, बोतलें आदि तो मिलती हैं साथ ही जब भूख लगती है तो खाना भी मिल जाता है.
100-150 रुपये की होती है आमदनी
बच्चों का कहना था कि हर रोज कूड़ा बीन कर करीब 100-150 रुपये की आमदनी हो जाती है. कमाई का पैसा घर जाकर मां बाप को दे देते हैं जिससे घर मे राशन आ जाता है. आसपास की झुग्गियों में रहने वाले बच्चे हर सुबह गाजीपुर बॉर्डर आंदोलन स्थल पहुंचकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने की जुस्तजू में जुट जाते हैं.