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गन्ने की खेती करने वाले किसान बोले- फसल का काम निपटा कर जल्द करेंगे दिल्ली कूच - गाजियाबाद गन्ना किसान आंदोलन

ईटीवी भारत को गन्ने की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि इस वक्त उनको गन्ने की खेती की कटाई के साथ ही गेहूं की फसल की बुआई करनी है. इसीलिए वह मजबूरी में दिल्ली नहीं जा पा रहे हैं, लेकिन जल्द ही अपनी फसल का काम निपटा कर वह दिल्ली के बॉर्डरों की ओर कूच करेंगे.

interaction with sugarcane farmers in ghaziabad
फसल का काम निपटा कर जल्द करेंगे दिल्ली कूच
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Published : Dec 11, 2020, 9:29 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबादः कृषि कानून के विरोध में तकरीबन 16 दिन से किसान दिल्ली के तमाम बॉर्डरों पर डटे हुए हैं. वहीं दूसरी ओर इस समय ईख (गन्ने) की कटाई (छोल) का समय भी चल रहा है. ऐसे में गन्ने की खेती करने वाले किसानों की कृषि कानून के साथ ही बॉर्डर पर बैठे किसानों को लेकर क्या है राय! इसी को लेकर ईटीवी भारत ने गन्ने की खेती करने वालें किसानों से की खास बातचीत की.

'फसल का काम निपटा कर जल्द करेंगे दिल्ली कूच'

मोदीनगर के फफराना गांव निवासी किसान सरनबीर सिंह ने बताया कि जो किसान कृषि कानून के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे हैं. वह बिल्कुल सही विरोध कर रहे हैं. क्योंकि सरकार किसानों की मांग बिल्कुल भी नहीं सुन रही है. किसान सरनबीर का कहना है कि उनकी मजबूरी है कि वह दिल्ली के बॉर्डर पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. क्योंकि उनके मील लेट चले हैं और उनको अभी गेहूं की फसल भी बोनी है. लेकिन वह जल्द ही अपनी फसल का काम खत्म कर दिल्ली की ओर कूच करेंगे.

कृषि कानून के विरोध में ही सबका का फायदा

ईटीवी भारत को किसान चौधरी अमर पाल सिंह ने बताया कि कृषि कानून से किसानों को नुकसान ही है. क्योंकि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून नहीं बना रही है. जिसके कारण सरकार या पूंजीपति अपनी मर्जी के मुताबिक उनकी फसल को खरीदेगा.

किसान लखन सिंह ने बताया कि देश में किसान कृषि कानून का सही विरोध कर रहे हैं. कृषि कानून का विरोध होना ही चाहिए. इसमें सब का फायदा है. किसान ने बताया कि उनको गन्ने की फसल की सही कीमत नहीं मिल पा रही है. क्योंकि इतनी तो उनकी लागत आ जाती है. इसीलिए वह चाहते हैं कि जैसे उनकी 325 रुपये क्विंटल गन्ने की फसल की बुवाई पड़ती है. तो उनको 425 रुपये क्विंटल गन्ने का दाम मिलना चाहिए. इसके साथ ही कृषि कानून आ जाने से उन पर और अधिक फर्क पड़ेगा.

नई दिल्ली/गाजियाबादः कृषि कानून के विरोध में तकरीबन 16 दिन से किसान दिल्ली के तमाम बॉर्डरों पर डटे हुए हैं. वहीं दूसरी ओर इस समय ईख (गन्ने) की कटाई (छोल) का समय भी चल रहा है. ऐसे में गन्ने की खेती करने वाले किसानों की कृषि कानून के साथ ही बॉर्डर पर बैठे किसानों को लेकर क्या है राय! इसी को लेकर ईटीवी भारत ने गन्ने की खेती करने वालें किसानों से की खास बातचीत की.

'फसल का काम निपटा कर जल्द करेंगे दिल्ली कूच'

मोदीनगर के फफराना गांव निवासी किसान सरनबीर सिंह ने बताया कि जो किसान कृषि कानून के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे हैं. वह बिल्कुल सही विरोध कर रहे हैं. क्योंकि सरकार किसानों की मांग बिल्कुल भी नहीं सुन रही है. किसान सरनबीर का कहना है कि उनकी मजबूरी है कि वह दिल्ली के बॉर्डर पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. क्योंकि उनके मील लेट चले हैं और उनको अभी गेहूं की फसल भी बोनी है. लेकिन वह जल्द ही अपनी फसल का काम खत्म कर दिल्ली की ओर कूच करेंगे.

कृषि कानून के विरोध में ही सबका का फायदा

ईटीवी भारत को किसान चौधरी अमर पाल सिंह ने बताया कि कृषि कानून से किसानों को नुकसान ही है. क्योंकि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून नहीं बना रही है. जिसके कारण सरकार या पूंजीपति अपनी मर्जी के मुताबिक उनकी फसल को खरीदेगा.

किसान लखन सिंह ने बताया कि देश में किसान कृषि कानून का सही विरोध कर रहे हैं. कृषि कानून का विरोध होना ही चाहिए. इसमें सब का फायदा है. किसान ने बताया कि उनको गन्ने की फसल की सही कीमत नहीं मिल पा रही है. क्योंकि इतनी तो उनकी लागत आ जाती है. इसीलिए वह चाहते हैं कि जैसे उनकी 325 रुपये क्विंटल गन्ने की फसल की बुवाई पड़ती है. तो उनको 425 रुपये क्विंटल गन्ने का दाम मिलना चाहिए. इसके साथ ही कृषि कानून आ जाने से उन पर और अधिक फर्क पड़ेगा.

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