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Ghaziabad Unlock: दिहाड़ी मजदूरों काे नहीं मिल पा रहा रोजगार, देखें ग्राउंड रिपोर्ट - nasirpur fatak

गाजियाबाद में अनलॉक (Ghaziabad unlock) के चार दिन बीत जाने के बाद भी दिहाड़ी मज़दूरों (Daily wages labourers) को रोजगार के लिए भटकना (not getting employment) पड़ रहा है. लेबर चौक पर घंटों इंतज़ार करने के बाद भी दिहाड़ी नहींं लग पा रही है. देखें ग्राउंड रिपोर्ट...

गाजियाबाद अनलॉक
गाजियाबाद अनलॉक
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Published : Jun 10, 2021, 5:25 PM IST

नई दिल्ली/गाज़ियाबाद: कोरोना के बढ़ते संक्रमण (Corona Infection) के चलते उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सभी जिलों में कर्फ्यू (Curfew) लगाया गया था. गाजियाबाद में सोमवार से अनलॉक (Ghaziabad Unlock) की शुरुआत की गई. कोरोना कर्फ्यू के दौरान दिहाड़ी मजदूरों (Daily Wage labourers) को खासा परेशानी उठानी पड़ी.

दिहाड़ी मजदूरों को उम्मीद थी कि कोरोना कर्फ्यू समाप्त होने के बाद रोज़गार पटरी पर लौटेगा, लेकिन अनलॉक के चार दिन बीत जाने के बाद भी दिहाड़ी मज़दूरों को रोजगार के लिए भटकना (not getting employment) पड़ रहा है. लेबर चौक पर घंटों इंतज़ार करने के बाद भी दिहाड़ी नहींं लग पा रही है.

गाज़ियाबाद के नासिरपुर फाटक स्थित लेबर चौक (labour chowk) पर हर दिन सैकड़ों की संख्या की में दिहाड़ी मज़दूर काम की तलाश में आते हैं. सुबह सात बजे से ही लेबर चौक पर मज़दूर इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं. लेबर चौक पर अधिकतर प्रवासी मज़दूर और ग़ाज़ियाबाद के आसपास के ग्रामीण इलाक़ों से मज़दूर काम ढूंढने आते हैं, लेकिन दिहाड़ी मज़दूरों को काम नहीं मिल पा रहा है. आलम यह है कि लेबर चौक पर दिहाड़ी नहीं लग पा रही है. ऐसे में सामाजिक संस्था मजदूरों को खाना आदि उपलब्ध करा रही है, जिससे मजदूर पेट भर रहे हैं.

दिहाड़ी मजदूरों काे नहीं मिल पा रहा रोजगार

दिहाड़ी मजदूर धीरज ने बताया कि हालात बद से बदतर हो चुके हैं. कहीं, पर भी दिहाड़ी नहीं लग पा रही है. काम ढूंढने के लिए विभिन्न ठियों (लेबर चौक) पर जा चुके हैं, लेकिन हालात सभी ठियों की एक जैसी ही है. काम कहीं नहीं मिल रहा है. काम की तलाश में सुबह 8 बजे नासिरपुर फाटक स्थित लेबर चौक पर पहुंचे थे, लेकिन दोपहर 12 बजे तक भी धीरज को काम नहीं मिल पाया.


ये भी पढ़ें- गाजियाबाद: कोरोना मुक्त हुआ डासना जेल, पेश की मिसाल

धीरज ने बताया कि दोपहर का खाना तो भंडारे में हो जाता है, लेकिन घर का किराया और परिवार का पेट उधार लेकर भर रहे हैं. धीरज का कहना था कि काम न मिलने पर दोपहर बाद घर वापस लौट जाते हैं. दिहाड़ी मजदूर सलमान ने बताया गांव से काम की तलाश में शहर आए थे, लेकिन शहर के हालात भी गांव की तरह ही नजर आ रहे हैं. काम न के बराबर है. ऐसे में अपना और परिवार का पेट कैसे भरा जाए. दोपहर तक उम्मीद रहती है कि शायद दिहाड़ी लग जाए, लेकिन दोपहर के बाद निराश होकर घर वापस लौट जाते हैं.

नई दिल्ली/गाज़ियाबाद: कोरोना के बढ़ते संक्रमण (Corona Infection) के चलते उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सभी जिलों में कर्फ्यू (Curfew) लगाया गया था. गाजियाबाद में सोमवार से अनलॉक (Ghaziabad Unlock) की शुरुआत की गई. कोरोना कर्फ्यू के दौरान दिहाड़ी मजदूरों (Daily Wage labourers) को खासा परेशानी उठानी पड़ी.

दिहाड़ी मजदूरों को उम्मीद थी कि कोरोना कर्फ्यू समाप्त होने के बाद रोज़गार पटरी पर लौटेगा, लेकिन अनलॉक के चार दिन बीत जाने के बाद भी दिहाड़ी मज़दूरों को रोजगार के लिए भटकना (not getting employment) पड़ रहा है. लेबर चौक पर घंटों इंतज़ार करने के बाद भी दिहाड़ी नहींं लग पा रही है.

गाज़ियाबाद के नासिरपुर फाटक स्थित लेबर चौक (labour chowk) पर हर दिन सैकड़ों की संख्या की में दिहाड़ी मज़दूर काम की तलाश में आते हैं. सुबह सात बजे से ही लेबर चौक पर मज़दूर इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं. लेबर चौक पर अधिकतर प्रवासी मज़दूर और ग़ाज़ियाबाद के आसपास के ग्रामीण इलाक़ों से मज़दूर काम ढूंढने आते हैं, लेकिन दिहाड़ी मज़दूरों को काम नहीं मिल पा रहा है. आलम यह है कि लेबर चौक पर दिहाड़ी नहीं लग पा रही है. ऐसे में सामाजिक संस्था मजदूरों को खाना आदि उपलब्ध करा रही है, जिससे मजदूर पेट भर रहे हैं.

दिहाड़ी मजदूरों काे नहीं मिल पा रहा रोजगार

दिहाड़ी मजदूर धीरज ने बताया कि हालात बद से बदतर हो चुके हैं. कहीं, पर भी दिहाड़ी नहीं लग पा रही है. काम ढूंढने के लिए विभिन्न ठियों (लेबर चौक) पर जा चुके हैं, लेकिन हालात सभी ठियों की एक जैसी ही है. काम कहीं नहीं मिल रहा है. काम की तलाश में सुबह 8 बजे नासिरपुर फाटक स्थित लेबर चौक पर पहुंचे थे, लेकिन दोपहर 12 बजे तक भी धीरज को काम नहीं मिल पाया.


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धीरज ने बताया कि दोपहर का खाना तो भंडारे में हो जाता है, लेकिन घर का किराया और परिवार का पेट उधार लेकर भर रहे हैं. धीरज का कहना था कि काम न मिलने पर दोपहर बाद घर वापस लौट जाते हैं. दिहाड़ी मजदूर सलमान ने बताया गांव से काम की तलाश में शहर आए थे, लेकिन शहर के हालात भी गांव की तरह ही नजर आ रहे हैं. काम न के बराबर है. ऐसे में अपना और परिवार का पेट कैसे भरा जाए. दोपहर तक उम्मीद रहती है कि शायद दिहाड़ी लग जाए, लेकिन दोपहर के बाद निराश होकर घर वापस लौट जाते हैं.

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