नई दिल्ली/गाजियाबाद : स्वतंत्रता दिवस के इस खास मौके पर आज हम आपको सेना के ऐसे जांबाज से रूबरू करवा रहे हैं, जो अपनी नई नवेली दुल्हन को घर पर छोड़कर जंग के मैदान में पहुंच गया था, जिसने करगिल युद्ध के दौरान जंग के मैदान में पाकिस्तानी दुश्मन को हराने के लिए अपने शरीर पर 17 गोलियां खाईं, लेकिन 5 रुपये के सिक्के ने उनकी जिंदगी बचा ली. अपने पराक्रम के लिये इस जांबाज को परमवीर चक्र से भी नवाजा गया है. ईटीवी भारत ने ऐसे वीर सिपाही योगेंद्र यादव से बातचीत की और उनसे करगिल युद्ध के दौरान उनके संघर्षों के बारे में जाना.
अभी योगेंद्र यादव की तैनाती बरेली में है. एक बार फिर 15 अगस्त पर उन्हें प्रमोशन मिलने वाला है. ईटीवी भारत ने उनसे गाज़ियाबाद स्थित उनके आवास पर बातचीत की. योगेंद्र यादव से हमने खास बातचीत की. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हमने कई युद्ध लड़े. करगिल के युद्ध को याद करते हुए योगेंद्र बताते हैं कि यह युद्ध ऐसे धरातल पर हुआ, जहां पर जीवन-यापन करना काफी मुश्किल था. उन्होंने कहा कि उस समय भी पाकिस्तान हुक्मरान नहीं चाहते थे कि शांति बनी रहे, इसलिए करगिल युद्ध हुआ.
उन्होंने बताया कि समझौते के तहत सर्दी के समय दोनों सेनाओं को करगिल से वापस होना था. भारत की सेना तो पीछे हट गई, लेकिन पाकिस्तान की सेना पीछे नहीं हटी बल्कि भारत की चौकियों पर कब्जा कर लिया. मुशर्रफ हाईवे को जाम कर लेह सहित कई इलाकों में कब्जा कर लेना चाहता था, जिसके तहत उसने कई इलाकों में कब्जा भी कर लिया, लेकिन भारतीय सेना के जांबाज सिपाहियों ने अपने साहस से दुश्मनों के बंकरों को धूल में मिला दिया.
सबसे अहम बात यह योगेंद्र यादव को युद्ध के दौरान 17 गोलियां लगी थीं, लेकिन एक भी गोली उनका बाल बांका नहीं कर सकी और वह दुश्मन के सामने डटे रहे. योगेंद्र यादव ने बताया कि राष्ट्रभक्ति की भावना के सामने कोई गोली असर नहीं कर सकती. इसलिए वह जंग के मैदान में दुश्मन का सामना कर रहे थे. उन्होंने कहा कि मैंने सोच रखा था कि जब तक सांस चलेगी तब तक लड़ाई लड़ता रहूंगा.
योगेंद्र यादव की 20 दिन पहले ही शादी हुई थी, लेकिन वह अपनी नई नवेली दुल्हन को बिना बताये जंग के मैदान में पहुंच गये थे. उनका कहना है कि जिस समय वो जंग के मैदान में थे, उस समय घर परिवार कुछ याद नहीं आया. भले ही उनकी नई-नई शादी हुई थी, लेकिन दिमाग में सिर्फ देशभक्ति चल रही थी. उस समय सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि अगर देश रहेगा तभी हम रहेंगे.
करगिल में योगेंद्र यादव ने अपनी आंखों के सामने कई अपनों को खोया है. वह अपने साथियों को याद करते हुए कहते हैं कि जिनके काफी दिन तक साथ रहे खेले-खाये उनको अपनी आंख के समय शहीद होते देखना काफी दर्दनाक पल था, लेकिन कहते हैं कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. अगर हमने अपनी सेना के साथियों को खोया है, तो हमने दुश्मन के मंसूबों को पानी में मिला दिया है.
उन्होंने कहा हमारे किसानों, मजदूरों, डॉक्टरों, वैज्ञानिक और शिक्षकों ने मिलकर देश का गौरव बढ़ाया है. आज हमारा देश दुनिया के किसी भी देश से आंख से आंख मिलाकर बात करने के काबिल है. उपलब्धियां हमें गौरवान्वित महसूस करवाती हैं. उन्होंने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि अपनी सोच को और आगे बढ़ाएं. सेना एक ऐसी संस्था है, जो हर एक युवा को आगे बढ़ने के लिए प्लेटफार्म देती है. उन्होंने नीरज चोपड़ा का भी जिक्र किया और उनकी तारीफ की.
उन्होंने बताया कि सेना में जाने की प्रेरणा उन्हें उनके पिता से मिली थी. उन्होंने कहा मेरे पिता ने 1965 का युद्ध लड़ा था. वह एक किसान भी थे,बाद में देश के लिए सेना का हिस्सा रहे. उन्हीं का जीवन मेरे लिए एक बहुत महत्वपूर्ण प्रेरणा है. उसके बाद उनके भाई भी सेना में भर्ती हुए. घर में ऐसा मौहाल था कि वो भी सेना में शामिल होकर देश की सेवा में जुट गये.
उन्होंने बताया कि जब कोई जवान सेना में जाता है तो उसका पूरा परिवार भी देश की सेवा के लिए समर्पित हो जाता है और जब सैनिक किसी युद्ध में जाता है तो पूरा देश उस सैनिक के साथ खड़ा होता है. योगेंद्र यादव के दो बेटे हैं. दोनों सेना में जाना चाहते हैं. योगेंद्र यादव की भी यही इच्छा है कि उनके दोनों बेटे देश की सेवा करें.