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गाजियाबाद : यहां ई-रिक्शा कर रहे मजदूरों को इंतजार - ickshaw business closed

ई-रिक्शा चलाने वालों की संख्या काफी कम हो गई है. एक अनुमान के मुताबिक इनमें से ज्यादातर चालक बाहर से आकर एनसीआर में ई-रिक्शा चला रहे थे. लॉकडाउन में दिल्ली-एनसीआर के ज्यादातर प्रवासी अपने-अपने घरों में चले गए हैं.

E-rickshaw business closed due to migrant laborers leaving ghaziabad
गाजियाबाद : यहां ई-रिक्शा कर रहे मजदूरों को इंतजार
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Published : May 30, 2020, 10:09 PM IST

Updated : May 31, 2020, 7:33 AM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद : गाजियाबाद में इन दिनों ई-रिक्शा अपने चालकों का इंतजार कर रहे हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं उन प्रवासियों की जो कभी इन ई-रिक्शा को चलाया करते थे, लेकिन अब इन ई-रिक्शा को चलाने वाले नहीं मिल रहे हैं. ई-रिक्शा किराए पर देने वाले गोविंद का कहना है कि पहले जहां एक दिन में 16 ई-रिक्शा किराए पर जाते थे.

ई-रिक्शा कर रहे मजदूरों को इंतजार

अब सिर्फ तीन ही रिक्शा जा रहे हैं. इसकी एक वजह ये है कि रिक्शा चलाने वाले ज्यादातर प्रवासी अपने घर जा चुके हैं. दूसरी वजह यह भी है कि ई-रिक्शा चालकों को सिर्फ एक या दो ही सवारी बैठाने के लिए कहा गया है.

इससे उनका खर्चा नहीं निकल पा रहा है. इसलिए मजदूर ई-रिक्शा किराए पर नहीं ले रहे हैं. ऐसे में ये ई-रिक्शा पार्किंग में अपने चालक का इंतजार कर रहे हैं. ई-रिक्शा किराए पर देने वालों का काम इससे ठप होता जा रहा है.

150 रुपए में होती है चार्जिंग

ई-रिक्शा बैटरी से चलते हैं और बैटरी चार्ज करने के लिए 150 रुपये रोजाना का खर्चा आता है. ई-रिक्शा चलाने वाले रिक्शा किराए पर ले जाते हैं तो किराया अलग होता है, लेकिन जो चालक अपना रिक्शा खरीद लेते हैं उन्हें भी रिक्शा को पार्किंग में खड़ा करना पड़ता है. पार्किंग का शुल्क भी उन्हें अदा करना पड़ता है. इससे रोजमर्रा के कई खर्चे होते हैं, जिनको निकाल पाना फिलहाल ई-रिक्शा चालकों के लिए नामुमकिन साबित हो रहा है. ऐसे में उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

संख्या हुई काफी कम

दरअसल रोड पर ई-रिक्शा चलाने वालों की संख्या काफी कम हो गई है. एक अनुमान के मुताबिक इनमें से ज्यादातर चालक बाहर से आकर एनसीआर में ई-रिक्शा चला रहे थे. लॉकडाउन में दिल्ली-एनसीआर के ज्यादातर प्रवासी अपने-अपने घरों में चले गए हैं और अभी उनके वापस आने की कोई उम्मीद नजर भी नहीं आ रही है.

इसलिए अगर हालात पूरी तरह से सामान्य हो भी जाते हैं तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का एक बड़ा हिस्सा माने जाने वाले ई-रिक्शा सड़कों पर काफी कम नजर आएंगे. इससे आवाजाही की समस्या बढ़ेगी.

देखना यह होगा कि कब तक इस समस्या से दिल्ली और आसपास के इलाके उभर पाते हैं. एक रिक्शा चालक से हमने बात की तो उसका कहना है कि हालात यह है कि पंचर लगवाने के लिए 60 तक नहीं बचे हैं.

नई दिल्ली/गाजियाबाद : गाजियाबाद में इन दिनों ई-रिक्शा अपने चालकों का इंतजार कर रहे हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं उन प्रवासियों की जो कभी इन ई-रिक्शा को चलाया करते थे, लेकिन अब इन ई-रिक्शा को चलाने वाले नहीं मिल रहे हैं. ई-रिक्शा किराए पर देने वाले गोविंद का कहना है कि पहले जहां एक दिन में 16 ई-रिक्शा किराए पर जाते थे.

ई-रिक्शा कर रहे मजदूरों को इंतजार

अब सिर्फ तीन ही रिक्शा जा रहे हैं. इसकी एक वजह ये है कि रिक्शा चलाने वाले ज्यादातर प्रवासी अपने घर जा चुके हैं. दूसरी वजह यह भी है कि ई-रिक्शा चालकों को सिर्फ एक या दो ही सवारी बैठाने के लिए कहा गया है.

इससे उनका खर्चा नहीं निकल पा रहा है. इसलिए मजदूर ई-रिक्शा किराए पर नहीं ले रहे हैं. ऐसे में ये ई-रिक्शा पार्किंग में अपने चालक का इंतजार कर रहे हैं. ई-रिक्शा किराए पर देने वालों का काम इससे ठप होता जा रहा है.

150 रुपए में होती है चार्जिंग

ई-रिक्शा बैटरी से चलते हैं और बैटरी चार्ज करने के लिए 150 रुपये रोजाना का खर्चा आता है. ई-रिक्शा चलाने वाले रिक्शा किराए पर ले जाते हैं तो किराया अलग होता है, लेकिन जो चालक अपना रिक्शा खरीद लेते हैं उन्हें भी रिक्शा को पार्किंग में खड़ा करना पड़ता है. पार्किंग का शुल्क भी उन्हें अदा करना पड़ता है. इससे रोजमर्रा के कई खर्चे होते हैं, जिनको निकाल पाना फिलहाल ई-रिक्शा चालकों के लिए नामुमकिन साबित हो रहा है. ऐसे में उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

संख्या हुई काफी कम

दरअसल रोड पर ई-रिक्शा चलाने वालों की संख्या काफी कम हो गई है. एक अनुमान के मुताबिक इनमें से ज्यादातर चालक बाहर से आकर एनसीआर में ई-रिक्शा चला रहे थे. लॉकडाउन में दिल्ली-एनसीआर के ज्यादातर प्रवासी अपने-अपने घरों में चले गए हैं और अभी उनके वापस आने की कोई उम्मीद नजर भी नहीं आ रही है.

इसलिए अगर हालात पूरी तरह से सामान्य हो भी जाते हैं तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का एक बड़ा हिस्सा माने जाने वाले ई-रिक्शा सड़कों पर काफी कम नजर आएंगे. इससे आवाजाही की समस्या बढ़ेगी.

देखना यह होगा कि कब तक इस समस्या से दिल्ली और आसपास के इलाके उभर पाते हैं. एक रिक्शा चालक से हमने बात की तो उसका कहना है कि हालात यह है कि पंचर लगवाने के लिए 60 तक नहीं बचे हैं.

Last Updated : May 31, 2020, 7:33 AM IST
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