नई दिल्ली/गाजियाबाद : उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में नगर निगम द्वारा संचालित नदी पार्क गौशाला में तकरीबन डेढ़ हजार से अधिक गोवंश रहते हैं. सड़क पर घूम रहे आवारा और निराश्रित गोवंशों को पकड़कर नगर निगम की टीम नंदी पार्क गौशाला पहुंचाती है. गौशाला में गोवंशों के रख-रखाव के लिए तमाम व्यवस्था मौजूद है. नंदी पार्क गौशाला प्रदेश में चल रही गौशालाओं से खासा अलग है. नंदी पार्क गौशाला में ना सिर्फ गोवंशों को खासा ख्याल रखा जाता है बल्कि गोवंशों के गोबर को भी प्रयोग में लाया जाता है.
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नंदी पार्क गौशाला में तक़रीबन डेढ़ हजार गौवंश हैं. जिनमे 400 देसी गाय और 1100 नंदी हैं. ऐसे में पशुओं से हर रोज़ कई क्विंटल गोबर निकलता है. गोबर को ठिकाने लगाना भी नगर निगम के लिए बड़ी चुनौती होती थी लेकिन अब गोवंश का गोबर खाद बनाने में प्रयोग किया जाता है.
कामधेनु अवतरण अभियान गौशाला, शाहजहांपुर के सदस्य आलोक मिश्रा की देखरेख में गोवंशों के गोबर से बर्मी कम्पोस्ट खाद ( केंचुआ खाद) बनाया जा रहा है. आलोक मिश्रा बताते हैं बर्मी कम्पोस्ट खाद को बनाने में 50 दिन से दो महीने का समय लगता है. गोवंश के गोबर से बना खाद बाजार में मिलने वाले खाद की तुलना में अधिक जैविक (organic) होता है. आमतौर पर जैविक वर्मी कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल नर्सरी, किचन गार्डन आदि में होता है. शुरुआती दौर में दस टन केंचुआ खाद बनाया जा रहा है. जो कि आने वाले 10 दिन बाद बनकर तैयार हो जाएगा.
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मिश्रा ने बताया गोवंशों के गोबर को इकठ्ठा किया जाता है, जिसके बाद गोबर को फैलाया जाता है और गोबर में पानी छोड़ा जाता है क्योंकि गोबर में काफी गर्मी होती है ऐसे में गोबर को ठंडा करना जरूरी हो जाता है क्योंकि गर्म गोबर में केंचुए डालते ही तुरन्त मर जाते हैं. गोबर को ठंडा होने के बाद पिट में भरा जाता है और केंचुए डाले जाते है. जिसके बाद खाद बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
नगर आयुक्त महेंद्र सिंह तंवर के मुताबिक गौशाला पर प्रतिमाह होने लाखों रुपए के व्यय की पूर्ति, गौशाला के गोबर से बनाए गए खाद को बाजार में बेचने से प्राप्त आय से हो सकेगी. जिससे गाजियाबाद नगर निगम की गौशाला नंदी पार्क स्वावलंबी बनेगी.