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सपेरा जाति लड़ रही अस्तित्व की लड़ाई, वाइल्ड एक्ट 1952 को भी खत्म करने की मांग

हरियाणा के जिले फरीदाबाद में घुमंतु सपेरा जाति ने प्रतियोगिता का आयोजन किया. इन सपेरों का कहना है कि इनकी जाति पतन की तरफ बढ़ती जा रही है. उन्होंने वाइल्ड एक्ट 1952 को भी खत्म करने की मांग की.

सपेरा जाति लड़ रही है अपने अस्तित्व की लड़ाई, ETV BHARAT
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Published : Aug 6, 2019, 11:06 AM IST

नई दिल्ली/फरीदाबाद: जिले के गांव मोहना में अखिल भारतीय घुमन्तु सपेरा विकास महासंघ ने राष्ट्रीय स्तरीय ओपन सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन किया. इस आयोजन में देश के कोने-कोने से सैकड़ों सपेरों ने हिस्सा लिया. इस आयोजन में सपेरों ने बीन और तुम्बे की धुन पर लोगों को नाचने पर मजबूर कर दिया.

सपेरा जाति लड़ रही है अपने अस्तित्व की लड़ाई

संस्कृति बचाने की पहल!
इस कार्यक्रम के आयोजन का मकसद सदियों से चली आ रही सपेरा जाति की बीन और तुम्बा बजाकर रोजी रोटी कमाने वाली संस्कृति की तरफ ध्यान लाना है. इस संस्कृति को विमुक्त होने से रोकने के लिये इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें सपेरा जाति के उत्कृष्ट शिक्षावान बच्चों को भी सम्मानित किया गया.

'वाइल्ड एक्ट 1952 ने छीन ली रोजी रोटी'
कार्यक्रम में सपेरों ने घंटों बीन और तुम्बा बजाकर कम्पटीशन किया. प्रतियोगिता में दूर दराज से पहुंचे सपेरा जाति के पदाधिकारियों ने कहा कि सरकार ने सपेरा जाति पर वाइल्ड एक्ट 1952 लगाकर उनकी रोजी रोटी छीन ली है, सपेरे बीन की धुन पर सांप दिखाकर अपने बच्चों का पेट पालने का काम करते थे, जिसे सरकार ने बंद कर दिया है.

अस्तित्व बचाने के लिए सपेरों की सरकार से गुहार
सपेरों की मांग है कि चिड़िया घरों में सिर्फ सपेरा जति के ही लोगों को सांपों की देखरेख करने की नौकरी मिलनी चाहिए. ताकि सांपों की मौत ना हो. वहीं पूरे देश में सपेरा जाति के लिए कही भी समाधि स्थल नहीं बनावाए गए हैं. जहां सपेरा जाति के लोग रहते हैं उनके आसपास उनके लिये समाधि स्थल बनवाए जाएं.

नई दिल्ली/फरीदाबाद: जिले के गांव मोहना में अखिल भारतीय घुमन्तु सपेरा विकास महासंघ ने राष्ट्रीय स्तरीय ओपन सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन किया. इस आयोजन में देश के कोने-कोने से सैकड़ों सपेरों ने हिस्सा लिया. इस आयोजन में सपेरों ने बीन और तुम्बे की धुन पर लोगों को नाचने पर मजबूर कर दिया.

सपेरा जाति लड़ रही है अपने अस्तित्व की लड़ाई

संस्कृति बचाने की पहल!
इस कार्यक्रम के आयोजन का मकसद सदियों से चली आ रही सपेरा जाति की बीन और तुम्बा बजाकर रोजी रोटी कमाने वाली संस्कृति की तरफ ध्यान लाना है. इस संस्कृति को विमुक्त होने से रोकने के लिये इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें सपेरा जाति के उत्कृष्ट शिक्षावान बच्चों को भी सम्मानित किया गया.

'वाइल्ड एक्ट 1952 ने छीन ली रोजी रोटी'
कार्यक्रम में सपेरों ने घंटों बीन और तुम्बा बजाकर कम्पटीशन किया. प्रतियोगिता में दूर दराज से पहुंचे सपेरा जाति के पदाधिकारियों ने कहा कि सरकार ने सपेरा जाति पर वाइल्ड एक्ट 1952 लगाकर उनकी रोजी रोटी छीन ली है, सपेरे बीन की धुन पर सांप दिखाकर अपने बच्चों का पेट पालने का काम करते थे, जिसे सरकार ने बंद कर दिया है.

अस्तित्व बचाने के लिए सपेरों की सरकार से गुहार
सपेरों की मांग है कि चिड़िया घरों में सिर्फ सपेरा जति के ही लोगों को सांपों की देखरेख करने की नौकरी मिलनी चाहिए. ताकि सांपों की मौत ना हो. वहीं पूरे देश में सपेरा जाति के लिए कही भी समाधि स्थल नहीं बनावाए गए हैं. जहां सपेरा जाति के लोग रहते हैं उनके आसपास उनके लिये समाधि स्थल बनवाए जाएं.

Intro:

एंकर - फरीदाबाद के गांव मोहना में अखिल भारतीय घुमन्तु सपेरा विकास महासंघ ने राष्ट्रीय स्तरीय ओपन सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसमें देश के कोने - कोने से सैंकडों सपेरों ने हिस्सा लिया और विमुक्त हो रही बीन एवं तुम्बा की संस्कृति को बचाने के लिये बीन व तुम्बा पर सबको नचाया। कार्यक्रम में सपेरो ने घंटों बीन और तुम्बा बजाकर कम्पटीशन किया। बता दें कि बर्षो से चली आ रही है सपेरा जाति की बीन और तुम्बा बजाकर रोजी रोटी कमाने वाली संस्कृति अब खत्म होती जा रही है, इस संस्कृति को विमुक्त होने से रोकने के लिये इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें सपेरा जाति के उत्कृष्ट शिक्षावान बच्चो को भी सम्मानित किया गया।
Body:वीओ ।- प्रतियोगिता में दूर दराज से पहुंचे सपेरा जाति के पदाधिकारियों ने कहा कि सरकार ने सपेरा जाति के उपर वाईल्ड एक्ट1952 लगाकर उनकी रोजी रोटी छीन ली है, सपेरे बीन की धुन पर सांप दिखाकर अपने बच्चो का पेट पालने का काम करते थे जिसे सरकार ने बंद कर दिया है। वहीं सरकार ने यह काम चिडिया घरों में खोल दिया है जहां हर बर्ष कई हजार सांपों की देखभाल न होने के चलते मौत हो जाती है, उनकी मांग है कि चिडिया घरों में सिर्फ सपेरा जति के ही लोगों को सांपों की देखरेख करने की नोकरी मिलनी चाहिये ताकि सर्पो की मौत न हो। वहीं पूरे देश में सपेरा जाति के लिये कही भी समाधि स्थल नहीं बनावाये गये हैं जहां जहां सपेरा जाति के लो रहते हैं उनके आसपास उनके लिये समाधि स्थल बनवाये जायें।

बाईट - सपेरा जाति के पधिकाारी।Conclusion:फ़रीदाबाद।स्टोरी - सपेरों में हुआ बीन और तुम्बा का कम्पटीशन, बीन और तुम्बा की धुन पर जमकर नाचे सपेरे, अपनी संस्कृति को बचाने के लिये हुई प्रतियोगिता
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