नई दिल्ली: हिन्दी फिल्में देखते हुए हम बड़े हुए हैं. लिहाज़ा वारंट शब्द सुनते ही जेल की चक्की याद आना लाजमी है, लेकिन कानून की किताब (Kanoon ki kitab) के मुताबिक ऐसा जरूरी नहीं कि हर बार वारंट जारी होने पर जेल की चक्की पीसनी पड़ेगी. इसे समझने के लिए सबसे पहले आपको समझना होगा कि वारंट शब्द के मायने क्या है.
दरअसल, वारंट एक कानूनी आदेश होता है जिसे जज या मजिस्ट्रेट जारी करते हैं. वारंट का मतलब किसी व्यक्ति को पकड़ना ही नहीं, बल्कि घर की तलाशी, घर जब्त करने और अन्य जरूरी कानूनी अधिकार मिलना है. जाहिर है वारंट किसी आम आदमी के लिए नहीं बल्कि उन्हीं लोगों को वारंट की तामील करवाने का अधिकार दिया जाता है, जो कानूनन उस ओहदे पर हों. ऐसे ओहदेदारों के लिए भी जरूरी शर्त यही है कि पहले अदालत से अनुमति पत्र यानी वारंट लेना होगा. अगर पुलिस अदालत से अनुमति लिए बिना किसी व्यक्ति के घर की तलाशी लेती है या उसकी संपत्ति को जब्त कर लेती है तो इस प्रकार के काम को उस व्यक्ति में मूल अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है. इसलिये वारंट जारी करने का अधिकार कोर्ट के पास ही होता है.
चलिए अब आपको बताते हैं कि वारंट जारी कैसे होता है...
फिल्मों में पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाते किरदारों से ये डायलॉग हमने अक्सर सुना है कि - 'आपके खिलाफ हमारे पास वारंट है...'
दरअसल, वारंट लिखित रूप में निर्धारित प्रारूप है. इसके ऊपर जारी करने वाले की मुहर, नाम और पद का नाम दिया होने के साथ-साथ जिस व्यक्ति के लिए जारी किया जाता है और जिस अपराध के लिए जारी किया जाता है, सबका नाम दिया गया होता है. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में वारंट शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण शब्द है. सहिंता में वारंट की परिभाषा प्राप्त नहीं होती है, लेकिन कानून की किताब में अध्याय 6 के भीतर वारंट से संबंधित धाराएं दी गई हैं.
वारंट जारी करना या ना करना, अदालत पर निर्भर करता है और अदालतें केस की गंभीरता देखती हैं. वारंट एक तरह से वो आदेश होता है जो व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत में पेश करने का फरमान होता है. सोचिए अगर अदालतों को वारंट का अधिकार नहीं मिलता तो फिर अदालतें सिर्फ पंगु संस्थाएं बन जाती, लेकिन संविधान बनाने वालों ने भारतीय दंड संहिता वारंट के जरिए अदालतों को एक तरह से ब्रह्मास्त्र दे दिया है. इसकी शक्ति तब भी क्षीण हो सकती है, जब जारी करने वाली अदालत से ऊपर की अदालत कोई आदेश दे दे. न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट को वारंट जारी करने का अधिकार, जज को मिलने वाली शक्तियों में सबसे ज्यादा प्रभावी है.
वारंट कब जारी किया जाता है
सबसे पहले तो अदालत जिस व्यक्ति को हाजिर करवाना चाहता है, उस व्यक्ति को सम्मन जारी करता है. सम्मन के जरिए अदालत में हाजिर करवाने का प्रयास किया जाता है, परंतु यदि व्यक्ति सम्मन से बच रहा है और सम्मन तामील होने के बाद भी अदालत के सामने हाजिर नहीं होता है और ऐसे कृत्य अगर न्याय में बाधा बनता है तो उस सिचुएशन में अदालत उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर पेश करने का वारंट जारी कर देती है.
वारंट कब तक लागू रहता है ?
वारंट की वैसे कोई एक्पायरी डेट नहीं होती. वारंट या तो तामील होता है या फिर जारी करने वाली या इससे ऊपर की अदालत इसे निरस्त करती है. कानून की किताब में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 70 में इसके बारे में पूरी जानकारी है. कोई भी वारंट जब किसी अदालत के जज की ओर से जारी कर दिया जाता है तो इसकी पालना करना अनिवार्य हो जाता है. अगर जारी करने वाली अदालत या उससे ऊपरी अदालत वारंट जारी करने के आदेश को बदल दे तो बात अलग है, लेकिन ऐसा न हो तो वारंट की तामील बदली नहीं जा सकती. व्यक्ति जिसके खिलाफ वारंट जारी हुआ है, उससे संबंधित थाना पुलिस से लेकर पूरा पुलिस महकमा एक तरह से इस वारंट की तामील के लिए जवाबदेह हो जाता है. कई बार सालों तक वारंट की तामील नहीं हो पाती, क्योंकि संबंधित व्यक्ति मिल ही नहीं पाता, लेकिन ऐसी स्थिति में भी वारंट जीवित रहता है. इसीलिए हम सुनते हैं कि पुराना वारंटी, अचानक पुलिस के हत्थे चढ़ गया और उसे अदालत में पेश किया गया.
वारंट कितने तरह के होते हैं-
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के तहत वारंट के प्रकार तो नहीं दिए गए हैं, लेकिन धारा 71 में अदालतों को यह अधिकार दिया गया है कि वो स्व-विवेक से जिस व्यक्ति के नाम पर वारंट जारी किया गया है, उसे लेकर निर्णय कर सके. यानी अगर वो वह व्यक्ति नियत तारीख तक अदालत के सामने मौजूद रहने का वचन दे रहा है या फिर कोई लिखित कमिटमेंट जिसे बंधपत्र कहते हैं, ऐसी परिस्थिति में अदालतें वारंट की तामील के बाद कुछ राहत दे सकती हैं.
वारंट की धाराओं को कुछ यूं समझिए
जमानतीय वारंट: जमानतीय वारंट का मतलब नाम से ही साफ है कि जेल जाने की तब तक नौबत नहीं, जब तक आप तय नियमों और आदेशों की पालना करते हुए अदालती प्रक्रिया को निभाएं. प्रतिभूओं की संख्या या फिर कोई बंधपत्र की एक निश्चित धनराशि के आधार पर जिस व्यक्ति को वारंट जारी हुआ है,उसे यह निर्देश होता है कि उसे छोड़ा जा सकता है और नियत तिथि को अदालत में मौजूद रहने का वचन लिया जा सकता है. यानी आसान शब्दों में, अदालत जिस व्यक्ति को वारंट निर्दिष्ट करती है वह व्यक्ति बंधपत्र पर जमानत लेकर नियत तारीख को अदालत के सामनेे हाजिर होने का निर्देश ही उस व्यक्ति को दे देता है जिसे वारंट जारी किया गया है.
हम आपको विभिन्न चर्चित केस की जानकारी देते हुए बताते हैं कि किन मामलों में वारंट जारी हुआ लेकिन ये वारंट जमानतीय था...
गैर जमानतीय वारंट: चलिए अब बात करते हैं गैर जमानतीय वारंट की. नाम से स्पष्ट हैं कि समन के मुताबिक काम नहीं किया तो सीधे जेल जाओगे. कोर्ट पहले आरोपी को समन जारी करता है. समन के बाद अगर आरोपी कोर्ट में पेश नहीं होता, तो उसके नाम जमानती वारंट जारी किया जाता है. जमानती वारंट भी कोर्ट जारी करता है.जमानती वारंट के तहत कोर्ट एक अमाउंट तय करता है. साथ ही तारीख तय करती है और उक्त तारीख तक वारंट को तामिल करना होता है. आरोपी को जब पुलिस गिरफ्तार करती है, तो आरोपी अदालत द्वारा तय अमाउंट का बॉन्ड भरता है और वह अदालत द्वारा तय तारीख पर पेश होता है. इसके बाद भी अगर वह अदालत में पेश न हो, तो उसके नाम गैर जमानती वारंट जारी किया जाता है. गैर जमानती वारंट के बाद पुलिस सीधे तौर पर आरोपी को गिरफ्तार करती है और कोर्ट में पेश करती है, लेकिन गैर जमानती वारंट के बाद भी अगर कोई आरोपी पेश न हो, तो उसकी संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई की जाती है.
जानिए वो चर्चित केस जिनमें अदालतों ने गैर जमानती वारंट जारी किया-
तो ये तो रही बात वारंट की. अब आपको बताते हैं कि किन व्यक्तियों की वारंट की पूरी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
1. वारंट को जारी करने वाली अदालतें
2. वारंट की तामील करवाने वाला
3.जिसके खिलाफ वारंट जारी हुआ है
रामप्रवेश सिंह बनाम जिला मजिस्ट्रेट देवरिया के मामले में कहा गया है कि- किसी भी मामले में धारा 80 के उपबंध तब लागू होंगे जब गिरफ्तार किए जाने वाला व्यक्ति जेल में निरोधक नहीं है. यह उपबंध उस दशा में लागू नहीं होंगे यदि व्यक्ति पहले से ही जेल में बंद है.
एक अन्य सम्राट बनाम करीम बख्श सिंध के मामले में यह भी कहा गया है कि धारा 78 में वर्णित उपबंधों की प्रकृति निदेशात्मक है ना कि आदेशात्मक.
कानून की किताब में वारंट की सारी जानकारी आपको हमने बताई. कानून की किताब से सहज और सरल तरीके से फिर किसी पेचीदा कानूनी इबारत को समझाएंगे.