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इंडोनेशिया और थाईलैंड में भी रामायण-महाभारत का है गहरा प्रभाव- प्रो. जगदीश कुमार

कोरोना वायरस के दौरान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा अलग-अलग विषयों पर कई वेबीनार आयोजित किए जा रहे हैं. जिससे महामारी के समय में भी सकारात्मक सोच को बढ़ावा दिया जा सके. इसी कड़ी में आज रामायण और महाभारत कैसे सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने में सक्षम है इस पर वेबीनार आयोजित किया गया.

Ramayana-Mahabharata has deep influence In Indonesia and Thailand also says Prof. Jagdish Kumar
रामायण और महाभारत पर आयोजित हुआ वेबिनार
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Published : Jun 6, 2020, 7:53 PM IST

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर चाइनीस एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज, स्कूल ऑफ़ लैंग्वेज लिटरेचर एंड कल्चरल स्टडीज द्वारा रामायण महाभारत और भारतीय और दक्षिण पूर्वी एशियाई के संदर्भ में सामाजिक एकता को लेकर वेबीनार आयोजित किया गया. वहीं इस वेबीनार को लेकर जेएनयू के कुलपति प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि रामायण और महाभारत केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि साउथईस्ट एशिया के नृत्य, नाट्य, पोशाक,कला आदि में भी इसकी झलकियां मिलती है और धर्म से ऊपर उठकर देखें तो यह दोनों महान ग्रंथ प्राचीन काल से ही सामाजिक एकता को बढ़ाने और अनेकता में भी एकता बनाए रखने की प्रेरणा देते आ रहे हैं.

रामायण और महाभारत पर आयोजित हुआ वेबिनार
रामायण और महाभारत पर आयोजित हुआ वेबिनार

कोरोना वायरस के दौरान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा अलग-अलग विषयों पर कई वेबीनार आयोजित किए जा रहे हैं. जिससे महामारी के समय में भी सकारात्मक सोच को बढ़ावा दिया जा सके. इसी कड़ी में आज रामायण और महाभारत कैसे सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने में सक्षम है इस पर वेबीनार आयोजित किया गया. वहीं दो घंटे चले इस वेबिनार को लेकर जेएनयू कुलपति प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने बताया कि रामायण और महाभारत को कई भाषाओं में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में लिखा और माना जाता है. उन्होंने बताया कि कई धर्मों के प्रचलन के बावजूद दक्षिण पूर्व एशिया विशेष रूप से इंडोनेशिया और थाईलैंड में इन महाकाव्यों का गहरा प्रभाव लोगों के विवेक पर दिखता है.

'ये महाकाव्य आज भी मनुष्य के विवेक पर कर रहे हैं राज'

प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने बताया कि इस वेबीनार में इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे यह दो महाकाव्य सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने में सक्षम है और इतना समय बीत जाने पर भी माननीय विवेक पर राज कर रहे हैं. उनका कहना है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्र में इन दो महाकाव्यों की शुरुआत केवल संजोग नहीं है बल्कि हजारों वर्षों से पोषित ज्ञान परंपरा की झलक है.

'पौराणिक कहानी कहना गलत है'

वहीं प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि कोरोना वायरस ने इस समय मानव समाज के सामने कई अनदेखी समस्याएं खड़ी कर दी है. ऐसे में इस चुनौतीपूर्ण समय के दौरान सामाजिक सद्भाव बनाए रखने और मानव को मानव से जोड़े रखने में यह दोनों महाकाव्य अहम भूमिका निभाएंगे. उन्होंने कहा कि इन महाकाव्यों को महज़ पौराणिक कथाएं कहना सही नहीं. अब समय आ गया है कि हमारे इतिहासकार इस बारे में विचार करें.

'यह महाकाव्य सकारात्मक जीवन शैली के गुर सिखाता है'

वहीं प्रोफेसर जगदीश कुमार ने स्पष्ट किया है कि इस तरह के वेबीनार का मकसद किसी एक धर्म को बढ़ावा देवा देना नहीं, बल्कि हमारे इतिहास और संस्कृति से उन सभी बातों को छात्रों तक पहुंचाना है जो उन्हें सकारात्मक जीवन शैली में मदद कर सकती हैं. खासतौर पर इस कोरोना महामारी के समय में जब मानवता पर जीवन का संकट मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि इन दोनों महाकाव्यों में जीवन का सार है. जीवन की हर उलझन का हल इंसान को इन्हीं में मिलता है.


बता दें कि रामायण और महाभारत पर पहले भी जेएनयू द्वारा वेबीनार आयोजित किया जा चुका है जिस पर कई लोगों ने आपत्ति भी जताई थी. वहीं इस बार प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि इन दोनों महाकाव्यों को अगर धर्म की दृष्टि से ऊपर उठकर देखें तो यह मानव जीवन जीने का सही तरीका सिखाती हैं.

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर चाइनीस एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज, स्कूल ऑफ़ लैंग्वेज लिटरेचर एंड कल्चरल स्टडीज द्वारा रामायण महाभारत और भारतीय और दक्षिण पूर्वी एशियाई के संदर्भ में सामाजिक एकता को लेकर वेबीनार आयोजित किया गया. वहीं इस वेबीनार को लेकर जेएनयू के कुलपति प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि रामायण और महाभारत केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि साउथईस्ट एशिया के नृत्य, नाट्य, पोशाक,कला आदि में भी इसकी झलकियां मिलती है और धर्म से ऊपर उठकर देखें तो यह दोनों महान ग्रंथ प्राचीन काल से ही सामाजिक एकता को बढ़ाने और अनेकता में भी एकता बनाए रखने की प्रेरणा देते आ रहे हैं.

रामायण और महाभारत पर आयोजित हुआ वेबिनार
रामायण और महाभारत पर आयोजित हुआ वेबिनार

कोरोना वायरस के दौरान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा अलग-अलग विषयों पर कई वेबीनार आयोजित किए जा रहे हैं. जिससे महामारी के समय में भी सकारात्मक सोच को बढ़ावा दिया जा सके. इसी कड़ी में आज रामायण और महाभारत कैसे सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने में सक्षम है इस पर वेबीनार आयोजित किया गया. वहीं दो घंटे चले इस वेबिनार को लेकर जेएनयू कुलपति प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने बताया कि रामायण और महाभारत को कई भाषाओं में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में लिखा और माना जाता है. उन्होंने बताया कि कई धर्मों के प्रचलन के बावजूद दक्षिण पूर्व एशिया विशेष रूप से इंडोनेशिया और थाईलैंड में इन महाकाव्यों का गहरा प्रभाव लोगों के विवेक पर दिखता है.

'ये महाकाव्य आज भी मनुष्य के विवेक पर कर रहे हैं राज'

प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने बताया कि इस वेबीनार में इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे यह दो महाकाव्य सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने में सक्षम है और इतना समय बीत जाने पर भी माननीय विवेक पर राज कर रहे हैं. उनका कहना है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्र में इन दो महाकाव्यों की शुरुआत केवल संजोग नहीं है बल्कि हजारों वर्षों से पोषित ज्ञान परंपरा की झलक है.

'पौराणिक कहानी कहना गलत है'

वहीं प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि कोरोना वायरस ने इस समय मानव समाज के सामने कई अनदेखी समस्याएं खड़ी कर दी है. ऐसे में इस चुनौतीपूर्ण समय के दौरान सामाजिक सद्भाव बनाए रखने और मानव को मानव से जोड़े रखने में यह दोनों महाकाव्य अहम भूमिका निभाएंगे. उन्होंने कहा कि इन महाकाव्यों को महज़ पौराणिक कथाएं कहना सही नहीं. अब समय आ गया है कि हमारे इतिहासकार इस बारे में विचार करें.

'यह महाकाव्य सकारात्मक जीवन शैली के गुर सिखाता है'

वहीं प्रोफेसर जगदीश कुमार ने स्पष्ट किया है कि इस तरह के वेबीनार का मकसद किसी एक धर्म को बढ़ावा देवा देना नहीं, बल्कि हमारे इतिहास और संस्कृति से उन सभी बातों को छात्रों तक पहुंचाना है जो उन्हें सकारात्मक जीवन शैली में मदद कर सकती हैं. खासतौर पर इस कोरोना महामारी के समय में जब मानवता पर जीवन का संकट मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि इन दोनों महाकाव्यों में जीवन का सार है. जीवन की हर उलझन का हल इंसान को इन्हीं में मिलता है.


बता दें कि रामायण और महाभारत पर पहले भी जेएनयू द्वारा वेबीनार आयोजित किया जा चुका है जिस पर कई लोगों ने आपत्ति भी जताई थी. वहीं इस बार प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि इन दोनों महाकाव्यों को अगर धर्म की दृष्टि से ऊपर उठकर देखें तो यह मानव जीवन जीने का सही तरीका सिखाती हैं.

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