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स्पेशल: रैन बसेरों की सीटें हैं खाली, फिर भी बेघर लोग आने को नहीं तैयार - new delhi news

दिल्ली में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है. बेघर लोग खुले आसमान में रात बिता रहे हैं. लेकिन जब बात रैन बसेरे की आती है तो पता चलता है कि बनाए गए 253 रैन बसेरों में आज भी दो तिहाई सीटें खाली पड़ी हैं. इन खाली पड़ी सीटों के कारण जानने के लिए ईटीवी भारत पहुंचा डूसिब के पास.

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Published : Dec 18, 2019, 10:09 PM IST

नई दिल्ली. दिल्ली में पड़ रही कड़ाके की ठंड से सामान्य जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. ऐसे में बेघरों पर मुसीबत की दोहरी मार पड़ रही है. बेघर लोगों को आश्रय देने के जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के अधीन आने वाली संस्था दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) के पास है.

रैन बसेरे हैं खाली, बैघर आने को तैयार नहीं

बोर्ड के सदस्य विपिन राय ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि बेघर लोगों के लिए बनाए गए 253 रैन बसेरे में तकरीबन 22000 लोगों के रहने की सुविधा है. मगर आज भी दो तिहाई सीटें खाली होती हैं. खाली सीटों को भरना बोर्ड के लिए भी चुनौती है.


रैन बसेरे में आने की बजाय बेघर लोग खुले आसमान के नीचे क्यों रात गुजारते हैं? यह पूछे जाने पर बोर्ड के सदस्य ने कहा कि रैन बसेरे में नहीं आने की भी अपनी- अपनी वजह है.

खुले में रात बिताने की अलग-अलग वजहें

इस संबंध में बोर्ड ने पिछले दिनों सर्वे कराया था, जिसमें खुले आसमान में रात बिताने वाले लोग कहते हैं कि वे जिन जगहों पर महीनों और वर्षों से सो रहे हैं, अगर वह छोड़ कर के रैन बसेरे में चले जाएंगे तो उनकी वह जगह छिन जाएगी. कौन, कब कब्जा कर लेगा पता नहीं. अभी वे उनका ठिया बन चुका है. कुछ लोग रोड किनारे इसलिए रहते हैं ताकि दिल्ली वाले जो कोई दान देना चाहते हैं, किसी की मदद करना चाहते हैं वह उन्हें मिल पाए. तो कई बेघर जो बीड़ी, सिगरेट या अन्य नशा का सेवन करते हैं वह रैन बसेरे में इस पर प्रतिबंध होने के चलते वहां जाना नहीं चाहते हैं.

बेहतर सुविधा से अधिक बेघरों को अपने सामान की चिंता

इसके अलावा भी रैन बसेरे में बेहतर सुविधा होने के बाद भी वहां नहीं आने को लेकर बताते हैं कि कई और भी कारण हैं, जिसमें कई लोग खुले आसमान में रात बिताना पसंद करते हैं जो, रिक्शा, ठेला आदि चलाते हैं. उन्हें अपने सामान की चिंता होती है. दिल्ली में जितने बेघर हैं, उनमें ऐसे लोगों की संख्या अधिक है. रैन बसेरा में कोई सामान रखने की उपयुक्त जगह नहीं होने से वे नहीं आते.

इस वर्ष रैन बसेरा में इंतजाम को लेकर विपिन राय ने कहा कि इस बार जर्मन टेंट की व्यवस्था की गई है. जिसमें सोने के लिए बेघर लोगों को वेडिंग दी जाती है कि उन्हें ठंड ना लगे. इसके अलावा सप्ताह में 2 दिन वहां डॉक्टर जाते हैं. बेघर लोगों के स्वास्थ्य की जांच करते हैं. ठंड से किसी की मौत ना हो इसके लिए17 टीमें प्रतिदिन रात में 10 से सुबह 5 बजे तक सड़कों पर निकलती हैं.

बता दें कि दिल्ली में एक अनुमान के मुताबिक बेघर लोगों की तादाद दो लाख से अधिक है. वहीं, 22 हजार बेघरों को आश्रय देने के लिए सरकार ने इंतजाम किए हैं. पूस की रात सर्दी के लिए मशहूर है. दिल्ली में भी इस समय कड़ाके की ठंड पड़ रही है. मगर सरकार की ओर से किए गए इंतजाम के बाद भी निःशुल्क सुविधा का लाभ उठाने एक तिहाई लोग भी रेन बसेरे में नहीं पहुंच रहे हैं.

नई दिल्ली. दिल्ली में पड़ रही कड़ाके की ठंड से सामान्य जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. ऐसे में बेघरों पर मुसीबत की दोहरी मार पड़ रही है. बेघर लोगों को आश्रय देने के जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के अधीन आने वाली संस्था दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) के पास है.

रैन बसेरे हैं खाली, बैघर आने को तैयार नहीं

बोर्ड के सदस्य विपिन राय ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि बेघर लोगों के लिए बनाए गए 253 रैन बसेरे में तकरीबन 22000 लोगों के रहने की सुविधा है. मगर आज भी दो तिहाई सीटें खाली होती हैं. खाली सीटों को भरना बोर्ड के लिए भी चुनौती है.


रैन बसेरे में आने की बजाय बेघर लोग खुले आसमान के नीचे क्यों रात गुजारते हैं? यह पूछे जाने पर बोर्ड के सदस्य ने कहा कि रैन बसेरे में नहीं आने की भी अपनी- अपनी वजह है.

खुले में रात बिताने की अलग-अलग वजहें

इस संबंध में बोर्ड ने पिछले दिनों सर्वे कराया था, जिसमें खुले आसमान में रात बिताने वाले लोग कहते हैं कि वे जिन जगहों पर महीनों और वर्षों से सो रहे हैं, अगर वह छोड़ कर के रैन बसेरे में चले जाएंगे तो उनकी वह जगह छिन जाएगी. कौन, कब कब्जा कर लेगा पता नहीं. अभी वे उनका ठिया बन चुका है. कुछ लोग रोड किनारे इसलिए रहते हैं ताकि दिल्ली वाले जो कोई दान देना चाहते हैं, किसी की मदद करना चाहते हैं वह उन्हें मिल पाए. तो कई बेघर जो बीड़ी, सिगरेट या अन्य नशा का सेवन करते हैं वह रैन बसेरे में इस पर प्रतिबंध होने के चलते वहां जाना नहीं चाहते हैं.

बेहतर सुविधा से अधिक बेघरों को अपने सामान की चिंता

इसके अलावा भी रैन बसेरे में बेहतर सुविधा होने के बाद भी वहां नहीं आने को लेकर बताते हैं कि कई और भी कारण हैं, जिसमें कई लोग खुले आसमान में रात बिताना पसंद करते हैं जो, रिक्शा, ठेला आदि चलाते हैं. उन्हें अपने सामान की चिंता होती है. दिल्ली में जितने बेघर हैं, उनमें ऐसे लोगों की संख्या अधिक है. रैन बसेरा में कोई सामान रखने की उपयुक्त जगह नहीं होने से वे नहीं आते.

इस वर्ष रैन बसेरा में इंतजाम को लेकर विपिन राय ने कहा कि इस बार जर्मन टेंट की व्यवस्था की गई है. जिसमें सोने के लिए बेघर लोगों को वेडिंग दी जाती है कि उन्हें ठंड ना लगे. इसके अलावा सप्ताह में 2 दिन वहां डॉक्टर जाते हैं. बेघर लोगों के स्वास्थ्य की जांच करते हैं. ठंड से किसी की मौत ना हो इसके लिए17 टीमें प्रतिदिन रात में 10 से सुबह 5 बजे तक सड़कों पर निकलती हैं.

बता दें कि दिल्ली में एक अनुमान के मुताबिक बेघर लोगों की तादाद दो लाख से अधिक है. वहीं, 22 हजार बेघरों को आश्रय देने के लिए सरकार ने इंतजाम किए हैं. पूस की रात सर्दी के लिए मशहूर है. दिल्ली में भी इस समय कड़ाके की ठंड पड़ रही है. मगर सरकार की ओर से किए गए इंतजाम के बाद भी निःशुल्क सुविधा का लाभ उठाने एक तिहाई लोग भी रेन बसेरे में नहीं पहुंच रहे हैं.

Intro:- एक्सक्लूसिव -

नई दिल्ली. दिल्ली में पड़ रही कड़ाके की ठंड से सामान्य जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. तो ऐसे में खुले आसमान में रात बिताने बेघरों पर मुसीबत की दोहरी मार पड़ रही है. बेघर लोगों को आश्रय देने के जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के अधीन आने वाली संस्था दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डुसिब) के पास है. बोर्ड के सदस्य विपिन राय ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि बेघर लोगों के लिए बनाए गए 253 रैन बसेरे में तकरीबन 22000 लोगों के रहने की सुविधा है. मगर आज भी दो तिहाई सीटें खाली होती हैं. खाली सीटों को भरना बोर्ड के लिए भी चुनौती है.


Body:रैन बसेरे में आने की बजाय बेघर लोग खुले आसमान के नीचे क्यों रात गुजारते हैं? यह पूछे जाने पर बोर्ड के सदस्य ने कहा कि रैन बसेरे में नहीं आने की भी अपनी अपनी वजह है.

खुले में रात बिताने की भी अलग-अलग वजहें

जैसा कि बोर्ड ने ही पिछले दिनों सर्वे कराया तो खुले आसमान में रात बिताने वाले लोग कहते हैं कि वे जिन जगहों पर महीनों और वर्षों से सो रहे हैं, अगर वह छोड़ कर के रैन बसेरे में चले जाएंगे तो उनकी वह जगह छिन जाएगी. कौन, कब कब्जा कर लेगा पता नहीं. अभी वे उनका ठिया बन चुका है. कुछ लोग रोड किनारे इसलिए रहते हैं ताकि दिल्ली वाले जो कोई दान देना चाहते हैं, किसी की मदद करना चाहते हैं वह उन्हें मिल पाए. तो कई बेघर जो बीड़ी, सिगरेट या अन्य नशा का सेवन करते हैं वह रैन बसेरे में इस पर प्रतिबंध होने के चलते वहां जाना नहीं चाहते हैं.

बेहतर सुविधा से अधिक बेघरों को अपने सामान की चिंता

इसके अलावा भी रैन बसेरे में बेहतर सुविधा होने के बाद भी वहां नहीं आने को लेकर बताते हैं कि कई और भी कारण हैं. खुले आसमान में और वे बेघर रात बिताना पसंद करते हैं जो, रिक्शा, ठेला आदि चलाते हैं. उन्हें अपने सामान की चिंता होती है. दिल्ली में जितने बेघर हैं उनमें ऐसे लोगों की संख्या अधिक है. रैन बसेरा में कोई सामान रखने की उपयुक्त जगह नहीं होने से वे नहीं आते.

इस वर्ष रैन बसेरा में इंतजाम को लेकर विपिन राय ने कहा कि इस बार जर्मन टेंट की व्यवस्था की गई है. जिसमें सोने के लिए बेघर लोगों को वेडिंग दी जाती है कि उन्हें ठंड ना लगे. इसके अलावा सप्ताह में 2 दिन वहां डॉक्टर जाते हैं. बेघर लोगों के स्वास्थ्य की जांच करते हैं. ठंड से किसी की मौत ना हो देखने के लिए 17 टीमें प्रतिदिन रात में 10 से सुबह 5 बजे तक सड़कों पर निकलती है.


Conclusion:बता दें कि दिल्ली में एक अनुमान के मुताबिक बेघर लोगों की तादाद दो लाख से अधिक है. तो वहीं 22 हज़ार बेघरों को आश्रय देने के लिए सरकार ने इंतजाम किए हैं. पूस की रात सर्दी के लिए मशहूर है. दिल्ली में भी इस समय कड़ाके की ठंड पड़ रही है. मगर सरकार द्वारा किए गए इंतजाम के बाद भी अभीसरकार द्वारा प्रदत्त निःशुल्क सुविधा का लाभ उठाने एक तिहाई लोग भी रेन बसेरे में नहीं पहुंच रहे हैं.

समाप्त, आशुतोष झा
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