नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने लॉ के फाईनल ईयर की ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने के बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के दिशानिर्देश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. जस्टिस हीमा कोहली की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता पूरे देश के छात्रों की चिंता जता रहे हैं तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहिए.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील गुंजन सिंह ने कहा कि ऑनलाइन परीक्षा उन लोगों के लिए विफल साबित होगी जिनके पास लैपटॉप और इंटरनेट नहीं है. उन्होंने कहा कि मामला केवल परीक्षा का ही नहीं है हकीकत ये है कि क्लास भी नहीं हुए हैं. तब कोर्ट ने कहा कि आप अंतिम समय में नहीं आ सकते हैं. कोर्ट हमेशा खुले रहते हैं.
हम एक-एक कालेज की तहकीकात नहीं कर सकते-कोर्ट
सुनवाई के दौरान जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि कई लॉ कॉलेजों ने इंटर्नल असेसमेंट भी नहीं कराया है. केवल नेशनल लॉ युनिवर्सिटी ने ही इंटर्नल असेसमेंट कराया है. ये प्रोफेशनल कोर्स हैं ये अंडरग्रेजुएट कोर्स नहीं हैं. जब याचिकाकर्ता ये बताने में असफल रहा कि लॉ स्कूलों में कितने क्लास हुए हैं तो कोर्ट ने कहा कि हम एक-एक कालेज की तहकीकात नहीं कर सकते हैं.
दूसरा याचिकाकर्ता कर्नाटक युनिवर्सिटी का
सुनवाई के दौरान बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के वकील प्रीत पी सिंह ने कहा कि लॉ कॉलेज ऑनलाइन परीक्षा के अलावा भी दूसरे मोड में परीक्षा ले सकते हैं. बीसीआई का नोटिफिकेशन छात्रों के हित में है. क्लास आयोजित किए गए हैं कि नहीं ये केवल कॉलेज ही बता सकते हैं. तब कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपने दिल्ली युनिवर्सिटी को ही पक्षकार क्यों बनाया है जबकि दूसरा याचिकाकर्ता कर्नाटक युनिवर्सिटी में पढ़ता है. तब वकील गुंजन सिंह ने कहा कि हम बीसीआई के नोटिफिकेशन को चुनौती दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब क्लास ही नहीं हुए तो परीक्षाएं कैसे हो सकती हैं.
'दूसरे याचिका के मामले पर सुप्रीम कोर्ट जाएं'
सुनवाई के दौरान यूजीसी की ओर से वकील अपूर्व कुरुप ने कहा कि छात्रों को प्रमोट करने का अधिकार कॉलेजों को दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि हम दूसरे याचिकाकर्ता की याचिका पर विचार नहीं करेंगे. अगर आप चाहें तो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं. तब वकील गुंजन सिंह ने कहा कि हम दूसरे याचिकाकर्ता के मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाएंगे. कोर्ट पहले याचिकाकर्ता की याचिका पर विचार करे. तब कोर्ट ने कहा कि हम आपको पूरी याचिका वापस लेने की अनुमति देते हैं.
'केवल 25 फीसदी लॉ स्टूडेंट के पास इंटरनेट कनेक्शन'
याचिका लॉ के दो छात्रों विशाल त्रिपाठी और पुरबयान चक्रवर्ती ने दायर किया था. याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील गुंजन सिंह और प्रज्ञा गंजू ने याचिका में कहा था कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने पिछले 27 मई को एक दिशानिर्देश जारी करते हुए देश भर के सभी लॉ युनिवर्सिटीज को ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने का दिशानिर्देश जारी किया था. याचिका में कहा गया था कि दिल्ली युनिवर्सिटी ने भी 27 जून को एक नोटिफिकेशन के जरिये कहा था कि सभी परीक्षाएं ओपन बुक एग्जाम मोड में होंगी. याचिका में कहा गया था कि केवल 25 फीसदी लॉ स्टूडेंट के पास ही इंटरनेट कनेक्शन है जिनके पास स्मार्टफोन और कंप्युटर है.
'75 फीसदी छात्रों के साथ भेदभाव'
याचिका में कहा गया था कि अगर ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया जाता है तो 75 फीसदी छात्रों के साथ भेदभाव होगा. यहां तक कि परीक्षा के लिए जो ऑनलाइन ट्रेनिंग दी गई थी उसमें भी कई दिक्कतें सामने आई, लेकिन कई ऐसे गरीब छात्र हैं जिन्हें इंटरनेट तक की पहुंच नहीं है. इसका मतलब ये है कि अगर ऑनलाइन परीक्षा होती है तो गरीब छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी बल्कि उन छात्रों को उनके पहले की परीक्षा के आधार पर केवल औसत अंक दिए जाएंगे.