नई दिल्ली: शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन आदि शक्ति मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है. मां कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग शोक मिट जाते हैं. झंडेवालान मंदिर के पुजारी अंबिका प्रसाद पंत के अनुसार सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवता की पूजा करनी चाहिए.
उसके बाद माता के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए. इसके बाद माता कुष्मांडा की पूरी विधि विधान से पूजा करनी चाहिए. पूजा शुरू करने से पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करना चाहिए. इसके बाद व्रत पूजन का संकल्प लेना चाहिए और वैदिक और सप्तशती मंत्रो से मां कुष्मांडा सहित समस्त देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए.
मां कुष्मांडा की हैं आठ भुजाएं
माता कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. माता कुष्मांडा अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं. माता के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा विराजमान है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जाप माला होती है. माता का वाहन सिंह है. देवी को कुम्हड़े की बलि चढ़ाई जाती है. संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांडा कहते हैं. इसलिए भी माता को कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है.
माता का भक्तों पर प्रभाव
माता की उपासना से भक्तों के समस्त रोग शोक मिट जाते हैं. माता की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. मां कुष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली माता हैं. यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाता है, तो फिर उसे आसानी से परम पद की प्राप्ति होती है. माता की पूजा आराधना करने से तप, बल, ज्ञान और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. माता कुष्मांडा की पूजा करने से साधकों को उचित फल की प्राप्ति होती है.