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1साल से डटे हुए हैं फ्रंटलाइन वर्कर, लोग हो गए हैं लापरवाह- सिविल डिफेंस वालंटियर

ईटीवी भारत ने दक्षिणी दिल्ली, डीएम ऑफिस की महिला सिविल डिफेंस वालंटियर टीम से खास बातचीत की. साथ ही जानने की कोशिश की कि इस पूरे 1 साल में किन-किन चुनौतियों के साथ इन्होंने अपने काम को अंजाम दिया और अब कितना बदलाव आया है.

discussion with the Women's Civil Defense Volunteer Team of South Delhi
1 साल से लगातार डटे हुए हैं फ्रंटलाइन वर्कर, लॉकडाउन के दौरान आसानी से क्वारंटाइन हो जाते थे संक्रमित - सिविल डिफेंस वालंटियर
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Published : Mar 26, 2021, 4:51 PM IST

नई दिल्ली: हेल्थ इमरजेंसी को लेकर लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को 1 साल पूरे हो गये हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च 2020 को यह घोषणा की थी कि रात 12 बजे से यानी कि 25 मार्च से देश में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया जाएगा. इस लॉकडाउन के साथ ही शुरू हो गई थी. वैश्विक महामारी से जंग और इस जंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. हमारे फ्रंटलाइन वकर्स जो दिन रात कोरोना इमरजैंसी में अपनी ड्यूटी दे रहे थे, चाहे लॉकडाउन का पालन करवाना हो या फिर संक्रमितों को अस्पताल पहुचाने का. जगह-जगह सिविल डिफेंस के वालंटियर अपनी ड्यूटी देते हुए नजर आ रहे थे.

फ्रंटलाइन वर्कर से बातचीत
दक्षिणी दिल्ली स्थित एडीएम ऑफिस में तैनात हैं

महिला सिविल डिफेंस वालंटियर और इस टीम में न केवल पुरुष सिविल डिफेंस बल्कि महिला सिविल डिफेंस भी अपनी भूमिका बखूबी निभा रही थी, इस पूरे 1 साल में किन-किन चुनौतियों के साथ इन्होंने अपने काम को अंजाम दिया और अब कितना बदलाव आया है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने दक्षिणी दिल्ली, डीएम ऑफिस की महिला सिविल डिफेंस वालंटियर टीम से खास बातचीत की.

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संक्रमित को क्वॉरेंटाइन करवाने का करते हैं काम

करोना कंट्रोल रूम में तैनात महिला सिविल डिफेंस वालंटियर मोनिका शर्मा ने बताया कि कोरोना काल की शुरुआत से ही वह संक्रमितों को क्वॉरेंटाइन कराने का काम कर रही है, उन्होंने बताया कि जब उन्हें जानकारी मिलती है कि कोई व्यक्ति संक्रमित है तो यदि उसके घर पर होम क्वारंटाइन होने की सुविधा होती है, तो हम उसे होम क्वॉरेंटाइन करते हैं, लेकिन यदि उसके घर पर यह सुविधा नहीं होती है तो फिर हम उसे नजदीकी अस्पताल भेजते हैं.

1 साल बाद कोरोना को लेकर लापरवाह हो गए हैं लोग

मोनिका शर्मा ने बताया कि किसी भी संक्रमित को घर से लेकर अस्पताल तक पहुंचाने की पूरी जिम्मेदारी उनकी होती है, इस दौरान कई बार संक्रमित अस्पताल जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं, कई तरीके के सवाल करते हैं जिसको लेकर उन्हें समझाना काफी मुश्किल हो जाता है. वही शुरुआत में जब लॉकडाउन लगाया गया था तो लोगों में कोरोनावायरस का डर था लोग आसानी से क्वारंटाइन होने के लिए राजी हो जाते थे, लेकिन अब लोग लापरवाह होते हुए नजर आ रहे हैं, अस्पताल जाने के लिए तैयार नहीं होते, जो हमारे लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहता है.

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क्वॉरेंटाइन के लिए अस्पताल भेजना रहता है चुनौतीपूर्ण

इसके साथ ही वालंटियर विना शर्मा ने बताया कि उनका काम संक्रमित मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस अरेंजमेंट का होता है, जिसके लिए जब वह संक्रमित को अस्पताल भेजते हैं तो वह तैयार नहीं होते ऐसे में उन्हें समझाना पड़ता है, कि यह आप के भले के लिए ही है और यदि आप अस्पताल जाएंगे तो संक्रमण नहीं चलेगा आप का परिवार सुरक्षित रहेगा.

इसके साथ ही वालंटियर सविका ने कहा कि वह शादीशुदा है और घर के साथ साथ-साथ अपनी ड्यूटी भी बखूबी निभा रही है, इसके साथ ही वालंटियर लवली ने कहा कि पूरी साउथ दिल्ली में कहीं पर भी कोई भी व्यक्ति संक्रमित होता है, तो उनके पास उसकी सूचना आ जाती है, जिसके बाद उसे अस्पताल भेजने का काम उनका होता है, अलग-अलग अस्पतालों में संक्रमित को भेजा जाता है, और यदि संक्रमित की हालत ज्यादा खराब होती है तो उसे इमरजेंसी में एलएनजेपी अस्पताल भेजा जाता है.

नई दिल्ली: हेल्थ इमरजेंसी को लेकर लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को 1 साल पूरे हो गये हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च 2020 को यह घोषणा की थी कि रात 12 बजे से यानी कि 25 मार्च से देश में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया जाएगा. इस लॉकडाउन के साथ ही शुरू हो गई थी. वैश्विक महामारी से जंग और इस जंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. हमारे फ्रंटलाइन वकर्स जो दिन रात कोरोना इमरजैंसी में अपनी ड्यूटी दे रहे थे, चाहे लॉकडाउन का पालन करवाना हो या फिर संक्रमितों को अस्पताल पहुचाने का. जगह-जगह सिविल डिफेंस के वालंटियर अपनी ड्यूटी देते हुए नजर आ रहे थे.

फ्रंटलाइन वर्कर से बातचीत
दक्षिणी दिल्ली स्थित एडीएम ऑफिस में तैनात हैं

महिला सिविल डिफेंस वालंटियर और इस टीम में न केवल पुरुष सिविल डिफेंस बल्कि महिला सिविल डिफेंस भी अपनी भूमिका बखूबी निभा रही थी, इस पूरे 1 साल में किन-किन चुनौतियों के साथ इन्होंने अपने काम को अंजाम दिया और अब कितना बदलाव आया है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने दक्षिणी दिल्ली, डीएम ऑफिस की महिला सिविल डिफेंस वालंटियर टीम से खास बातचीत की.

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संक्रमित को क्वॉरेंटाइन करवाने का करते हैं काम

करोना कंट्रोल रूम में तैनात महिला सिविल डिफेंस वालंटियर मोनिका शर्मा ने बताया कि कोरोना काल की शुरुआत से ही वह संक्रमितों को क्वॉरेंटाइन कराने का काम कर रही है, उन्होंने बताया कि जब उन्हें जानकारी मिलती है कि कोई व्यक्ति संक्रमित है तो यदि उसके घर पर होम क्वारंटाइन होने की सुविधा होती है, तो हम उसे होम क्वॉरेंटाइन करते हैं, लेकिन यदि उसके घर पर यह सुविधा नहीं होती है तो फिर हम उसे नजदीकी अस्पताल भेजते हैं.

1 साल बाद कोरोना को लेकर लापरवाह हो गए हैं लोग

मोनिका शर्मा ने बताया कि किसी भी संक्रमित को घर से लेकर अस्पताल तक पहुंचाने की पूरी जिम्मेदारी उनकी होती है, इस दौरान कई बार संक्रमित अस्पताल जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं, कई तरीके के सवाल करते हैं जिसको लेकर उन्हें समझाना काफी मुश्किल हो जाता है. वही शुरुआत में जब लॉकडाउन लगाया गया था तो लोगों में कोरोनावायरस का डर था लोग आसानी से क्वारंटाइन होने के लिए राजी हो जाते थे, लेकिन अब लोग लापरवाह होते हुए नजर आ रहे हैं, अस्पताल जाने के लिए तैयार नहीं होते, जो हमारे लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहता है.

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क्वॉरेंटाइन के लिए अस्पताल भेजना रहता है चुनौतीपूर्ण

इसके साथ ही वालंटियर विना शर्मा ने बताया कि उनका काम संक्रमित मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस अरेंजमेंट का होता है, जिसके लिए जब वह संक्रमित को अस्पताल भेजते हैं तो वह तैयार नहीं होते ऐसे में उन्हें समझाना पड़ता है, कि यह आप के भले के लिए ही है और यदि आप अस्पताल जाएंगे तो संक्रमण नहीं चलेगा आप का परिवार सुरक्षित रहेगा.

इसके साथ ही वालंटियर सविका ने कहा कि वह शादीशुदा है और घर के साथ साथ-साथ अपनी ड्यूटी भी बखूबी निभा रही है, इसके साथ ही वालंटियर लवली ने कहा कि पूरी साउथ दिल्ली में कहीं पर भी कोई भी व्यक्ति संक्रमित होता है, तो उनके पास उसकी सूचना आ जाती है, जिसके बाद उसे अस्पताल भेजने का काम उनका होता है, अलग-अलग अस्पतालों में संक्रमित को भेजा जाता है, और यदि संक्रमित की हालत ज्यादा खराब होती है तो उसे इमरजेंसी में एलएनजेपी अस्पताल भेजा जाता है.

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