---- ऋषि कांत
नई दिल्ली : ये वाकिया हिन्दी में छायावाद की ख्यातनाम कवियित्री और साहित्यकार महादेवी वर्मा और राजस्थान में उस समय के मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया का है. आज 'लेखनी' में साहित्य और राजनीति के उस टकराव के बारे में बता रहे हैं, जिसमें श्रेष्ठता में साहित्य का परचम और बुलंद हो गया. महादेवी वर्मा छायावादी युग की प्रमुख कवयित्री मानी जाती हैं. आधुनिक गीत काव्य में महादेवी वर्मा जी का स्थान सर्वोपरि रहा और उन्होंने एक गद्य लेखिका के रूप में भी अपनी ख्याति प्राप्त की. उन्हें आधुनिक साहित्य की मीराबाई भी कहा जाता है.
निराला और पंत को राखी बांधती थीं महादेवी
महादेवी जी का संबंध पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी था और वे आनंद भवन आया-जाया करती थीं. इस दौरान उनके निजी रिश्ते कमला नेहरू से भी हुए. वो इतनी मृदुभाषी थीं कि मैथिली शरण गुप्त और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत जैसे बड़े लेखक उन्हें बहन मानते थे. इतना ही नहीं महादेवी जी उन्हें राखी भी बांधती थीं. ऐसा कहा जाता है कि निराला को महादेवी पर इतना विश्वास था कि उन्हें कहीं से भी रुपये मिलते थे तो वो उन्हें सुरक्षित रखने और फिजूलखर्ची से रोकने के लिए महादेवी जी के हाथों में ही रख देते थे.
जब मुख्यमंत्री पहाड़िया ने कर दी थी टिप्पणी ...
10 जनवरी, 1981. यह वो तारीख है, इस दिन राजस्थान के मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया और साहित्यकार महादेवी वर्मा दोनों एक मंच साझा कर रहे थे . मौका था राजस्थान की राजधानी जयपुर के 'रविन्द्र मंच' पर चल रहा लेखकों का सम्मेलन...
इस सम्मेलन में महादेवी वर्मा जी पहुंची हुईं थीं. वह इस सम्मेलन की मुख्य अतिथि थीं. इस सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया जी. अध्यक्ष के तौर पर बोलते हुए पहाड़िया ने कहा कि महादेवी वर्मा की कविताएं मेरे कभी समझ में नहीं आईं कि वे आखिर कहना क्या चाहती हैं. उनकी कविताएं आम लोगों के सिर के ऊपर से निकल जाती हैं, मुझे भी कुछ समझ में नहीं आतीं. आज का साहित्य जन-जन को समझ आए ऐसा होना चाहिए.
टिप्पणी से चली गई पहाड़िया की कुर्सी
पहाड़िया की महादेवी वर्मा के लेखन पर इस तरह की टिप्पणी से वहां मौजूद लेखकों की मंडली भड़क गई. बताया जाता है कि पहाड़िया की शिकायत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से की गई. इसके बाद जगन्नाथ पहाड़िया से इस्तीफा ले लिया गया.
मुख्यधारा में नहीं लौट सके पहाड़िया
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि पहाड़िया को सीएम की कुर्सी से हटाने का असली कारण उनका विरोध था. उनके पैरोकार संजय गांधी भी दुनिया में नहीं रहे थे. कई दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन वे महज 13 महीने ही राजस्थान के मुख्यमंत्री रह पाए. इस घटना के बाद पहाड़िया राजनीति की मुख्यधारा में नहीं आ पाए. बाद में उन्हें बिहार और हरियाणा का राज्यपाल बनाया गया . हालांकि पहाड़िया के समर्थक मानते हैं कि वो राजनीतिक घटनाक्रम था, जिसमें लेखकों के विरोध को भी जोड़ दिया गया.
आज महादेवी वर्मा और जगन्नाथ पहाड़िया दोनों इस दुनिया में नहीं हैं. मगर उन दोनों की जिदंगी से जुड़ा ये किस्सा राजनीति और साहित्य के एक मंच पर आने और फिर टकराने का ऐसा उदाहरण है. जो कहीं और नहीं मिलता. ख़ासकर इस टकराव का ऐसा नतीजा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जाए. आज कई बार लगता है कि साहित्यिक 'लेखनी' सत्ता दरबारों के यहां स्थान चाहती है, वैसे माहौल में किसी साहित्यकार की वजह से नेता की कुर्सी चले जाने का ये किस्सा वाकई किसी अजूबे से कम नहीं... 'लेखनी' में इसी तरह के किस्सों से फिर आपको रूबरू करवाते रहेंगे...