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बिजली की मांग बढ़ने से भारत में कोयला संकट, कुछ दिनों का स्टॉक शेष - सिर्फ तीन दिनों का कोयला बचा

कच्चा तेल भी 80 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है. इस संकट की वजह कई हैं. जल और पवन टरबाइन से बिजली उत्पादन में गिरावट, कोयले और प्राकृतिक गैस की सप्लाई में कमी और इनकी आसमान छूती कीमतें ऊर्जा संकट को ऊंचे स्तर पर पहुंचा चुकी हैं. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का भी इस संकट में योगदान है.

भारत में कोयला संकट
भारत में कोयला संकट
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Published : Oct 1, 2021, 1:09 PM IST

Updated : Oct 3, 2021, 11:50 AM IST

नई दिल्ली: दुनिया इन दिनों भारी ऊर्जा संकट ( Industrial Production) का सामना कर रही है. चीन और यूरोप (China andEurope) बिजली (Electricity less) की कमी से बुरी तरह प्रभावित हैं. औद्योगिक उत्पादन घट गया है, घंटों तक बिजली सप्लाई काटी जा रही है. कोयले, गैस, तेल की तेजी से बढ़ती कीमतों का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है. कोयले के दाम इन दिनों 13 साल के उच्चतम स्तर पर हैं.

कच्चा तेल भी 80 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है. इस संकट की वजह कई हैं. जल और पवन टरबाइन से बिजली उत्पादन में गिरावट, कोयले और प्राकृतिक गैस की सप्लाई में कमी और इनकी आसमान छूती कीमतें ऊर्जा संकट को ऊंचे स्तर पर पहुंचा चुकी हैं. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का भी इस संकट में योगदान है.

चौंकाने वाली बात है कि देश में कोयले से चलने वाले करीब 135 बिजली संयंत्रों में से आधे से अधिक के पास कोयला कुछ दिनों का ही बचा है. वहीं, कोविड-19 महामारी से आर्थिक सुधार भी धीमी गति से बढ़ रहे हैं.

भारत पर असर

दुनिया में कोयले के दाम बढ़ने से कोल इंडिया लिमिटेड जैसे घरेलू सप्लायर्स ने अपना आउटपुट बढ़ा कर स्थिति कुछ हद तक संभाली है, लेकिन सप्लाई तब भी पूरी नहीं हो पा रही है. इस वजह से कोयले का इम्पोर्ट करना पड़ा है. राशनिंग भी की गई है. जिसके तहत एल्युमिनियम और अन्य उत्पादकों को कोयले की सप्लाई बंद कर दी गई है. भारत का एलएनजी इम्पोर्ट अब बहुत महंगा हो गया है. दाम थमने के आसार नहीं हैं. अच्छी बात यह है कि भारत में बिजली उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा कोयला आधारित संयंत्रों से होता है. जबकि बिजली उत्पादन में प्राकृतिक गैस का हिस्सा सिर्फ 5 फीसदी है. गैस के दाम बढ़ने का इम्पैक्ट बिजली उत्पादन पर नहीं होने वाला है, लेकिन कोयले पर स्थिति ठीक नहीं है. अगस्त में बिजली संयत्रों में कोयले का स्टॉक बहुत नीचे चला गया था. ऐसे में अन्य उद्योगों को मिलने वाला कोयला बिजली संयत्रों में डाइवर्ट करना पड़ा था.

बता दें, पिछले तीन महीनों में ऑस्ट्रेलिया के न्यूकैसल में कीमतें लगभग 50% और इंडोनेशियाई निर्यात की कीमतों में 30% की वृद्धि हुई है. सितंबर में इंडोनेशिया कोयले का मूल्य बेंचमार्क कोल इंडिया द्वारा भारतीय केपनियों को बेचे जाने वाले समान गुणवत्ता वाले ईंधन की तुलना में सात गुना अधिक था. एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि नीलामी में कोल इंडिया से कोयला खरीदने वाले व्यापारी 50-100% प्रीमियम पर बेच रहे हैं.

वहीं,राज्य द्वारा संचालित कोल इंडिया ने कहा कि इस सप्ताह कोयले की उच्च वैश्विक कीमतों और माल ढुलाई दरों ने बिजली उत्पादन को कम करने के लिए आयातित कोयले पर निर्भर कंपनियों को धक्का लगा है, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू कोयले से चलने वाले संयंत्रों पर निर्भरता बढ़ गई है. चौथा सबसे बड़ा भंडार होने के बावजूद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला आयातक है. उपयोगिताएँ इसकी कुल खपत का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा हैं, जिसमें कोल इंडिया का देश के उत्पादन का 80% से अधिक हिस्सा है.

पीटीआई

नई दिल्ली: दुनिया इन दिनों भारी ऊर्जा संकट ( Industrial Production) का सामना कर रही है. चीन और यूरोप (China andEurope) बिजली (Electricity less) की कमी से बुरी तरह प्रभावित हैं. औद्योगिक उत्पादन घट गया है, घंटों तक बिजली सप्लाई काटी जा रही है. कोयले, गैस, तेल की तेजी से बढ़ती कीमतों का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है. कोयले के दाम इन दिनों 13 साल के उच्चतम स्तर पर हैं.

कच्चा तेल भी 80 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है. इस संकट की वजह कई हैं. जल और पवन टरबाइन से बिजली उत्पादन में गिरावट, कोयले और प्राकृतिक गैस की सप्लाई में कमी और इनकी आसमान छूती कीमतें ऊर्जा संकट को ऊंचे स्तर पर पहुंचा चुकी हैं. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का भी इस संकट में योगदान है.

चौंकाने वाली बात है कि देश में कोयले से चलने वाले करीब 135 बिजली संयंत्रों में से आधे से अधिक के पास कोयला कुछ दिनों का ही बचा है. वहीं, कोविड-19 महामारी से आर्थिक सुधार भी धीमी गति से बढ़ रहे हैं.

भारत पर असर

दुनिया में कोयले के दाम बढ़ने से कोल इंडिया लिमिटेड जैसे घरेलू सप्लायर्स ने अपना आउटपुट बढ़ा कर स्थिति कुछ हद तक संभाली है, लेकिन सप्लाई तब भी पूरी नहीं हो पा रही है. इस वजह से कोयले का इम्पोर्ट करना पड़ा है. राशनिंग भी की गई है. जिसके तहत एल्युमिनियम और अन्य उत्पादकों को कोयले की सप्लाई बंद कर दी गई है. भारत का एलएनजी इम्पोर्ट अब बहुत महंगा हो गया है. दाम थमने के आसार नहीं हैं. अच्छी बात यह है कि भारत में बिजली उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा कोयला आधारित संयंत्रों से होता है. जबकि बिजली उत्पादन में प्राकृतिक गैस का हिस्सा सिर्फ 5 फीसदी है. गैस के दाम बढ़ने का इम्पैक्ट बिजली उत्पादन पर नहीं होने वाला है, लेकिन कोयले पर स्थिति ठीक नहीं है. अगस्त में बिजली संयत्रों में कोयले का स्टॉक बहुत नीचे चला गया था. ऐसे में अन्य उद्योगों को मिलने वाला कोयला बिजली संयत्रों में डाइवर्ट करना पड़ा था.

बता दें, पिछले तीन महीनों में ऑस्ट्रेलिया के न्यूकैसल में कीमतें लगभग 50% और इंडोनेशियाई निर्यात की कीमतों में 30% की वृद्धि हुई है. सितंबर में इंडोनेशिया कोयले का मूल्य बेंचमार्क कोल इंडिया द्वारा भारतीय केपनियों को बेचे जाने वाले समान गुणवत्ता वाले ईंधन की तुलना में सात गुना अधिक था. एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि नीलामी में कोल इंडिया से कोयला खरीदने वाले व्यापारी 50-100% प्रीमियम पर बेच रहे हैं.

वहीं,राज्य द्वारा संचालित कोल इंडिया ने कहा कि इस सप्ताह कोयले की उच्च वैश्विक कीमतों और माल ढुलाई दरों ने बिजली उत्पादन को कम करने के लिए आयातित कोयले पर निर्भर कंपनियों को धक्का लगा है, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू कोयले से चलने वाले संयंत्रों पर निर्भरता बढ़ गई है. चौथा सबसे बड़ा भंडार होने के बावजूद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला आयातक है. उपयोगिताएँ इसकी कुल खपत का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा हैं, जिसमें कोल इंडिया का देश के उत्पादन का 80% से अधिक हिस्सा है.

पीटीआई

Last Updated : Oct 3, 2021, 11:50 AM IST
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